Monday, February 27, 2023

ज़िंदगी का पाठ

चाची मेरी सफेद रंग की शर्ट नहीं मिल रही,जरा ढूँढ दो.!सूरज चिल्लाते हुए बोला।

"खुद ढूँढ लो,मैं छोटू को दूध पिला रही हूँ।सारे दिन कोई बहू तो कोई चाची करके काम बताता रहता है। ऊपर से शीला दीदी अपनी फरमाइश लेकर आ जाती हैं जैसे मैं इंसान नहीं मशीन हूँ...!"रमा बड़बड़ाने लगी।

"राघव पहन गया तेरी शर्ट सूरज..आज से उसकी परीक्षा शुरू हो गई है। सुबह सुबह ड्रेस की शर्ट पर कौवे ने बीट कर दी, मुझे दूसरी मिली नहीं तो तेरी पहना दी..! शीला ने आँगन से चिल्लाकर कहा।

"क्यों दीदी.. आज बस राघव की परीक्षा है। सूरज की परीक्षा नहीं है ? आपने एक बार भी नहीं सोचा वो क्या पहनकर जाएगा..?"सीमा यह सुनते ही चिढ़कर बोली।

"मुझे पता है सूरज की भी परीक्षा है।मैंने सोचा वो दोपहर में जाएगा,तब तक तो मैं राघव की शर्ट धोकर सुखा दूँगी। वैसे उसकी दूसरी शर्ट भी मिल गई है।तुम वो सूरज को पहना सकती हो.!"

"कहाँ राघव कहाँ सूरज?सूरज की शर्ट उसको कहाँ बनी होगी? आपने पूछने की भी जरूरत नहीं समझी।बेचारा बच्चा कसे कपड़ों में कैसे तीन चार घंटे निकाल रहा होगा? उसकी दूसरी गन्दी पड़ी है, नहीं तो पहना देती..!सीमा बड़बड़ाई।

"तुम्हारे कहने का मतलब मेरा राघव मोटा है?" शीला चिढ़कर बोली।

"मैंने तो ऐसा नहीं कहा..!

"मैं सब समझती हूँ सीमा. तुम मुझे नीचा दिखाने का एक मौका नहीं छोड़ती। तुम मेरे बेटे को तो ताने मत दो..!शीला ने आँसू बहाने शुरू कर दिए।

"आपको सही हमेशा ही गलत लगता है दीदी। मैंने कुछ भी ऐसा नहीं कहा जो रोना धोना शुरू कर दिया।आप हर बात का उल्टा ही मतलब निकालती हो..!

"मैं सब समझती हूँ, पागल नहीं हूँ..!"

"ठीक है अब आपको जो समझना हो समझती रहो ।चल सूरज इस क्लेश में तेरी परीक्षा छूट जाएगी हुंह..! सीमा मुँह बिचकाकर चली गई।

"एक सीमा दीदी ही हैं इस घर में जो शीला दीदी की दादागिरी का मुँहतोड़ जवाब देतीं हैं।वो जब से यह यहाँ आईं हैं,हम सबका जीना हराम कर रखा है। पता नहीं कौनसी घड़ी में इनसे पीछा छूटेगा..!रमा कमरे से सारा वार्तालाप सुन मन ही मन बोली।

"अब चुप क्यों हो अम्मा..तुम्हारी बहू रोज किसी न किसी बहाने से मुझे चार बातें सुनाती है।और तुम चुपचाप बैठी रहती हो।जब मेरी सास मुझे कुछ कहती थी तब तो तुम रोज मुझे ज्ञान देतीं थीं। ऐसा कर, वैसा कर,अब तुम्हारा ज्ञान कहाँ गया..!

"क्या कोहराम मचा रखा है घर में? दीदी तुम अपना घर तो सँभाल नहीं पाईं,हमें तो चैन से रहने दो।

"वाह बलदेव तुम भी मुझे ही दोष दे रहे हो ? तुमने सुना? अभी अभी सीमा मेरे राघव को मोटा बोलकर गई है..!"शीला तेज आवाज में बोली।

"सब सुना दीदी..सीमा ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो आप क्लेश करने लगो? आपने अपना घर तो बर्बाद कर दिया अब हमारे घर की शांति को क्यों ग्रहण लगा रही हो..?

"शांत हो जा बलदेव..जा जाकर खाना खाले..! यमुना ने बीच में रोकते हुए कहा।

"ऐसे क्लेश में कौर भी गले से न उतरेगा अम्मा। मेरा खाना तुम दुकान पर ही खाना भिजवा देना। और हाँ दीदी अब यह शोर वहाँ तक न आए,ध्यान रहे। तमाशा बना दिया मोहल्ले में हमारा..!"बलदेव घर का झगड़ा देख गुस्से से तमतमाता वापस चला गया।

"देख लो अम्मा..जोरू का गुलाम हो गया है तुम्हारा बेटा। एक बार भी नहीं कहा कि सीमा ने जो कहा गलत कहा।तू भी अब कैसे अनजान बनी बैठी हो, जैसे तुमने कुछ किया ही नहीं...!

"तूने जो कहा वही मैंने सुना और माना।सच क्या, झूठ क्या,यह तो तू जाने शीला?तू मुझे क्यों दोष दे रही है..?

"तुझे नहीं दू तो किसे दूँ दोष?तू ही तो रोज एक एक घंटे मुझे फोन पर नया ज्ञान देती थीं..!

"तू ही रोज सास की बुराई,ननद की शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जाती थी। मैंने तो बस उनसे निपटने के तरीके बताए थे। मैंने तो तुझसे कभी नहीं कहा कि घर छोड़कर चली आ और यहीं रहो..? शीला की माँ यमुना बोली।

"वाह अम्मा पहले चिंगारी लगाओ फिर कहो कि हमने क्या किया? अम्मा तुमने पहले दिन से मेरे कान भरने शुरू किए। शुरू से मेरे मन में सास के खिलाफ जहर भरा। रत्ना तो कुछ भी नहीं कहती थी फिर भी तुमने मुझे उसमें गलतियाँ दिखाई और कह रही हो मैंने क्या किया..?"

"अम्मा ने कहा सो कहा दीदी..आपका दिमाग कहाँ गया था..? चप्पल उतारते सीमा बोली। फिर राघव को अंदर भेजते हुए कहा "जाओ छोटी मामी से खाना लेलो..!"सीमा रोज स्कूल में सूरज को छोड़कर राघव को साथ लेकर आती थी।

"क्या कहा, फिर से कहना सीमा..? शीला ने पूछा।

"दीदी आपकी और हमारी शादी एक साल के अंतर से हुई।हम चार लोग,रमा तीन, अम्मा बाबू और दो जने आप,हम लोग तो इतना बड़ा परिवार देख मायके जाकर नहीं बैठे..?आपके घर हर सुविधा, हमें सब काम हाथों से करना पड़ता है फिर भी घर छोड़कर नहीं गए..? अपने सुखों को चिंगारी आपने लगाई है..!"सीमा गुस्से से बोली।

"चार दिन मायके में क्या बैठ गई, मैं तुम सबको बोझ लगने लगी। अभी मेरे अम्मा बाबू जिंदा है और मैं उनके दम पर हूँ यहाँ..!

"उसके बाद?उसके बाद क्या करोगी ,यह सोचा आपने..? दीदी यह रोज रोज का कलह हमारे रिश्तों में कड़वाहट बढ़ा रहा है..!

"कड़वाहट तुम लोगों के दिल में भरी हुई है। तुम दोनों ने मेरे भाइयों को मेरे खिलाफ भड़काया और अम्मा को भी न जाने कौनसी पट्टी पढ़ा दी जो बेटी बोझ लगने लगी..!

"आपको सभी गलत क्यों लगते हैं दीदी?
कभी अकेले में खुद की गलतियों पर सोचा आपने? दीदी महेश जी अभी भी आपको बार बार बुला रहे हैं..!

"मैंने कहा ना कि जब तक वो मेरी शर्तें नहीं मानते, मैं वापस नहीं जाऊँगी..!"

"मत जाओ..हमें क्या,कल को उन्होंने भी मुँह मोड़ लिया तो फिर रहना जीवन भर अकेली और राघव को भी हर चीज के लिए तरसाना।मेरी मानो अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा,लौट जाओ अपने घर दीदी..?"सीमा कहते हुए अंदर चली गई।

"अम्मा तुमने तो बड़ी ठसक से कहा था कि मेरी बेटी हम पर भार नहीं,हम उसे जीवन भर खिला सकते हैं।आज सीमा इतना कुछ सुना गई फिर भी तुम चुप बैठी हो..?

"बेटी जब अपने भाईयों की खुशी पर ग्रहण लगाए तो माँ को अपना फैसला बदलना पड़ता है शीला। सीमा की बात मानकर चली जा वापस..!

"यह तू कह रही है अम्मा..?माँ के बर्ताव से दुखी हो शीला कमरे में जाकर फूट फूटकर रो पड़ी।उसे आज अपने घर की याद आने लगी।

"महेश मेरी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश पूरी करते थे। मेरे परिवार ने मुझे दिल से अपनाया और मैंने उस सुख को ठोकर मार दी,यह कहकर कि रत्ना घर में रहेगी तो मैं नहीं रहूँगी..!"अब जब मेरे भाई भाभी मुझे रखने को तैयार नहीं।तब मुझे रत्ना की पीड़ा समझ आ रही है..!

शीला की ननद रत्ना का पति शराब की लत से असमय काल की भेंट चढ़ गया था। बेटे की इस गलत आदत को उसकी मौत का जिम्मेदार न मान ससुराल वाले रत्ना को दोषी मानकर मायके छोड़ गए कि उनकी बेटी के पैर पड़ते ही उन्होंने अपना बेटा खो दिया।

"मैं उस मासूम लड़की को घर से निकालने की ज़िद ठानकर अपना घर छोड़कर आज सबकुछ होते हुए इनकी दुत्कार सुन रही हूँ।आज मेरे कारण राघव सबकुछ होते हुए भी यहाँ सबका उपेक्षित व्यवहार सह रहा है।बस अब नहीं, अपने सुखों को मैंने चिंगारी लगाई और मेरी माँ ने उसे हवा दिया। अब उस आग में मेरी खुशियाँ पूरी तरह स्वाहा हो, उससे पहले मुझे माँजी से, महेश से अपने किए की माफी माँगनी होगी..! काफी देर तक रोने के बाद शीला ने कुछ सोचते हुए आँसू पोंछ लिए और अपने पति महेश को फोन लगा दिया।

"हैलो...!

"महेश...!"शीला महेश की आवाज सुनकर रोने लगी।

"क्या हुआ शीला..रो क्यों रही हो? राघव कैसा है?घर पर सब ठीक है...?"

"मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई जो अपना घर छोड़कर चली आई। मुझे माफ कर दो महेश..! शीला सिसकते हुए बोली।

"क्यों किसी ने कुछ कहा क्या?घर पर किसी से झगड़ा हुआ है क्या..?"महेश ने पूछा।

"नहीं महेश आज मेरा हकीकत से सामना हुआ है।अब मुझे यहाँ नहीं रहना,मुझे अभी अपने घर आना है महेश। तुम मुझे आकर ले जाओ। मैं समझ गई कि शादी के बाद लड़की की इज्जत उसके ससुराल में रहने से होती है।मायका तो फेरे होते ही पराया हो जाता है..!

"तो फिर देर किस बात की, अटैची उठाओ और बाहर आ जाओ। मैं अम्मा के पास बैठा हूँ..!

"तुम यहाँ ?शीला ने खिड़की से झाँका तो महेश अम्मा के साथ चाय पी रहा था और सीमा राघव को खाना खिला रही थी।

"तुम यहाँ कब आए..?

"जब आप रोते हुए अंदर चली गईं तो मैंने इन्हें फोन करके बुला लिया था। मुझे समझ आ गया था कि आज आपको सही गलत समझ आ गया है।

"तो यह सब तुम लोगों की चाल थी..?शीला ने पूछा।

"दीदी चाल नहीं,बस आपको यह अहसास दिलाना था कि अब यह घर आपका नही बल्कि जहाँ आपका पति वो घर आपका है। दीदी हमारी बदतमीजियों को क्षमा कर देना..! हमें आपको आपकी गलतियों का अहसास करवाना था। दीदी आप बुरी नहीं बस आपके देखने का नजरिया गलत था..!

"हाँ बिटिया सीमा बहू के समझाने पर मुझे भी अपनी गलतियों का अहसास हुआ। मुझे समझ आ गया कि बिटिया को ससुराल वालों के खिलाफ भड़काना, उसके सुख में चिंगारी लगाने जैसा है..!

"अम्मा.. तुम ही नहीं,गलत तो मैंने भी किया है। मैंने रत्ना के दुख को नहीं समझा।अब जब खुद को एक एक चीज के लिए भाईयों के आगे हाथ फैलाने की बारी आई तो मुझे अहसास हुआ कि मेरी तो ऐसी कोई मजबूरी नहीं,रत्ना की तो मजबूरी है।महेश मुझे मेरी गलती समझ आ गई। अब मैं रत्ना को कभी कुछ नहीं कहूँगी..!

"दीदी हम लोगों से जो भी गलती हुई माफ कर देना।तीज-त्यौहारों पर हक से आते रहना..!रमा ने पैर छुते हुए कहा तो शीला ने रमा और सीमा को गले से लगा लिया।

"मैं बड़ी होने का फर्ज भूल गई थी।आज मेरी छोटी भाभियों ने सही मायने में ज़िंदगी का पाठ पढ़ा दिया। मैं तुम दोनों की सदैव आभारी रहूँगी।चलती हूँ अम्मा..! शीला को गृहस्थ जीवन में फिर से प्रवेश करते देख यमुना की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे।

*©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित




Thursday, February 16, 2023

स्वार्थ की आँधी


 "उफ यह आँधी..! 


"काकी द्वार बंद करलो, बहुत तेज आँधी  आने वाली है..!"आवाज सुनकर कामना चौंक कर देखती है तो सामने की छत से कपड़े समेटती बंशीलाल की बेटी निर्मला चिल्ला रही थी।


"काकी कहाँ खोई हो? बहुत तेज आँधी आने वाली है। आसमान धूल से भर गया है।घर गंदा हो जाएगा ...!


"आने दे निर्मला,तू भीतर जा...!


"काकी मैं तो कपड़े लेकर भीतर ही जा रही थी।आपको आँगन में बैठा देख रुक गई।आप पहले द्वार तो बंद कर लो, फिर मैं चली जाऊँगी।देखो तेज हवाएं चलने भी लगीं..!


"यह हवाएं मन की आँधी से तो तेज ना होगी बिटिया..? 


"क्या कहा काकी..?"


"कुछ नहीं तू जा अंदर जा, कहीं कुछ उड़ उड़कर न लग जाए..!


"जा ही रही हूँ..!"निर्मला कपड़े समेट कर अंदर चली गई। कामना दरवाजा बंद करते हुए मन में सोचने लगी।"जब ज़िंदगी की खुशियों को ही स्वार्थ की आँधी उड़ा ले गई ,तो इस आँधी से कैसा डर..?


धूल का गुबार लेकर चलती हवाएं दरवाजे से टकराकर अजीब सी आवाजें पैदा कर रहीं थीं।


"यह आँधी तो कुछ समय की है।थम जाएगी।जाते जाते अपने निशा पीछे छोड़ जाती हैं।लोग उन्हें पहले की तरह करने की कोशिश में लग जाएंगे और कर भी लेंगे।पर मैं क्या करूँ?मैं कैसे अपने स्वप्न महल से स्वार्थ के निशान मिटाऊँ, कैसे?" बीते कल की बातें याद कर कामना की आँखों से आँसू बहने लगे।


"कामना बहू...!"


"आई माँजी..! कामना साड़ी के पल्लू से हाँथ पोंछती हुई आई।


"कामना बहू इनसे मिलो मेरे भाभी के दूर के रिश्तेदार बैजनाथ हैं। मुकुल के रिश्ते की बात करने आए हैं...!"


"जी नमस्कार ..! कामना हाथ जोड़कर बोलीं।


"यह बिटिया पूर्वी का फोटो, आराम से देख लेना और सबको दिखा देना। अभी इनके लिए जलपान की व्यवस्था करो..!


"जी माँजी..!जलपान की व्यवस्था करती कामना ने एक नजर पूर्वी की तस्वीर पर डाली। लड़की तो बहुत सुंदर है।जगवीर और मुकुल की हाँ हो जाए तो जल्दी ही चांद सी बहू घर आ जाए..!


"चलता हूँ बहन जी..जो भी निर्णय हो बताना..!चाय पीकर बैजनाथ उठ खड़े हुए।


"जी भाईसाहब.. नकुल के लिए भी कोई लड़की देखे रहना। जगवीर और बच्चे देख लें,तो बात आगे बढ़े।बहू मुकुल की फोटो हो तो दे दो,नहीं तो मोबाइल पर भिजवा देना नंबर मेरी डायरी में लिखा है..!


"अभी लाई..!कामना ने मुकुल की फोटो लाकर दे दी।मुकुल को पूर्वी बहुत पसंद आई। दोनों पक्षों की हाँ होते ही एक अच्छा सा मुहूर्त देखकर शादी की तारीख तय हो गई और पूर्वी बहू बनकर घर में आ गई।


"कामना बहू से भी काम कराया कर।यह क्या जब भी वो कुछ करने जाती है,तू मना कर देती है..!"


"माँ काम के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है।बच्ची है,नई नई शादी हुई है। कुछ दिन आराम करले, फिर उसे ही सब करना है..!"


"अति हर बात की बुरी होती है। अभी तू आदत खराब कर रही है।बाद में देखना तेरा यही प्रेम इस स्वप्न महल की खुशियाँ लील जाएगा।नकुल भी यह सब देख रहा है।एक बार उसकी शादी होने दे तब तुझे पता चलेगा।काम को लेकर रोज घर में झगड़े होंगे...!"


"ऐसा कुछ नहीं होगा माँजी..! कामना बहू को बेटी की तरह लाड़ करती।पूर्वी ने भी अब काम करने की कोशिश करना बंद कर दिया।साल भर बाद ही नकुल की भी शादी हो गई।तारा घर में बहू बनकर आ गई।


"तुम दोनों मिलकर घर के काम संभालो।माँजी बीमार रहती हैं।मुझे उन्हें भी संभालना रहता है।अब मुझसे इतनी ज्यादा मेहनत नहीं होती..!"नकुल की शादी को अभी तीन महीने ही हुए थे। कामना ने बहुओं को काम करने के लिए कह दिया।


"माँ भाभी की शादी को एक साल हो गया।आप उनसे कहो कुछ दिन घर की पूरी जिम्मेदारी वो उठाएं।तारा को आए अभी तीन महीने ही हुए हैं।आपने भाभी को इतना आराम दिया तारा के साथ उपेक्षित व्यवहार क्यों..?"नकुल माँ का आदेश सुनते ही विरोध में बोला।


"नकुल मुझे तारा भी उतनी ही प्रिय है जितनी पूर्वी, तेरी दादी की तबियत और मेरी बढ़ती उम्र क कारण अब मुझसे उतना काम नहीं होता..! कामना नकुल के व्यवहार से दुखी होकर बोली।


"मेरी बातों को नजरंदाज करने का देखा नतीजा? पहली कामचोर हो गई और दूसरी को उसके पति ने भड़का दिया। तेरे बेटे मेरे जगवीर से नहीं ,जो मां का सुख देखें।देखे रंग? उन्हें माँ नहीं पत्नियों की ज्यादा चिंता है...! कामना क्या कहती,माँ सच ही तो कह रही थीं।


ऐसे ही समय गुजरता गया। पहले माया देवी फिर जगवीर इस दुनिया को अलविदा कह गए। कामना एक के बाद एक दो प्रियजनों को खो देने से टूट गई।


अब उससे जितना होता काम करती और बहुओं पर छोड़ देती। शादी के बाद नकुल की कही बातें तारा के हृदय में घर कर गईं थीं‌। वो कामना की हर बात का उल्टा जबाव देती थी।


"तारा मेरे सिर में बहुत दर्द है। क्या चाय बना दोगी..?"


"आपकी लाड़ली आराम कर रही है उससे बनवा लीजिए..!


"तुम्हें नहीं बनानी मत बनाओ, मुझे क्यों बीच में घसीट रही हो..? पूर्वी अपना नाम सुनते ही बाहर आई।


"कोई मत बनाओ, शांत रहो, मुझे नहीं चाहिए चाय!मेरी ही गलती जो तुम दोनों को बेटी बनाने चली थी..! कामना की बात सुनकर तारा उठी और अपने कमरे में चली गई।कामना चुपचाप लेट गई।


"मुकुल माँ से कहो घर का बँटवारा कर दें।तारा अपना हिस्सा संभाले और हम अपना हिस्सा। मैं अब और ताने नहीं सुन सकती..!


"अच्छा बाबा पहले तुम शांत हो जाओ।मैं  अभी जाकर माँ से बात करता हूँ..! मुकुल ने पूर्वी को समझाते हुए कहा।


"माँ सिर दर्द हो रहा है..? मुकुल माँ के सिरहाने बैठकर सिर दबाते हुए बोला।


"हम्म..!"


"पूर्वी माँ के लिए अदरक वाली चाय बना लाओ...!मुकुल ने पूर्वी को आवाज दी तो तारा के कान खड़े हो गए।


"जी अभी लाई...!पूर्वी ने जबाव दिया।


"माँ तुम्हारी बहुएँ काम को लेकर बे बात उलझती रहती हैं।आप भी कब तक इन दोनों की चिक चिक बर्दाश्त करोगी?


"अचानक से तुम्हें यह सब कैसे दिखाई देने लगा बेटा..?


"अचानक नहीं माँ, मैं आपकी तकलीफ देखकर कई दिनों से आपसे बात करने की सोच रहा था..! 


"ऐसी कौनसी बात है जिसे करने के लिए तुम्हें सोचना पड़ रहा है..? कामना ने कुछ सोचते हुए पूछा।


"माँ क्यों न घर का बँटवारा कर ले, नकुल भी अपनी गृहस्थी में खुश, मैं भी अपनी गृहस्थी में खुश,ना कोई झगड़ा होगा न बिना बात बहस होगी..!"मुकुल ने अपनी बात रखी।


"और मैं ? मैं किसकी गृहस्थी के हिस्से में आ रही हूँ बेटा..? कामना ने शांत लहजे में पूछा।


"आपका क्या माँ,जब तक मेरे पास रहना है तो हमारी होकर रहना।जब नकुल के पास रहो तब तक उनकी होकर रहना..!


"मतलब यह तुम्हारे साथ रहूँ तो छोटे से संबंध न रखूँ?उसके बच्चों से न बोलूँ? और उसके पास रहूँ तो तुमसे और तुम्हारे बच्चो से दूर रहूँ..?"कामना यह सुनकर हतप्रभ रह गई।


"आप तो बिना समझाए समझ गईं माँ.. मैं यही कहना चाह रहा था कि रोज रोज की वही बातें,वही किस्से अब खत्म हो, वही हम सबके लिए अच्छा है..!


"इस आर-पार वाले किस्से में मेरे हिस्से क्या आएगा...?


"आप नकुल के पास रहो या मेरे साथ, क्या फर्क पड़ता है?आप रहोगी अपने इसी घर में हमारे साथ, हमारे घर में..!" मुकुल ने कहा।


"बँटवारे की अवधि में एक बेटे के साथ रहकर दूसरे से अजनबी बनकर?अपनी ममता, अपने स्वाभिमान को मारकर टुकड़ों में ज़िंदगी मुझे नहीं जीना।बूढ़ी हूई हूँ, लाचार नहीं।जब मेरे बेटे ही पराए हो गए तो अपने स्वाभिमान की बलि चढ़ाकर खुश रहने का दिखावा क्यों करूँ ? 


"माँ आप हमें पराया कह रही हो। अपने बेटों को..?


"हाँ सही सुना,जो बच्चे अपने स्वार्थ के लिए माँ को बाँटे,वो पराए ही है। मैं भी परायों के साथ नहीं रहना चाहती और मेरे जीते जी मेरे स्वप्न महल का बँटवारा नहीं होगा।रही बात खर्चें की तो मेरा पति मेरे लिए अपनी पेंशन और  प्रॉपर्टी छोड़ गया है।मुझे तुम दोनों से वो भी नहीं चाहिए..!"


"रहने दीजिए मुकुल.. इन्हें इनकी संपत्ति का बहुत घमंड है,तो रहें अकेले।मैं अब  इस घर में नहीं रहूँगी।इन्हें अकेले इस घर में कुँडली मारकर बैठे रहने दो।अंत समय हम ही याद आएंगे..!"पुर्वी की हठ पर मुकुल अलग रहने चला गया।


"माँ भैया भाभी ने सही नहीं किया। आप दुखी मत हो! हम हैं ना,हम करेंगे आपकी सेवा। तारा अबसे माँ का ध्यान तुम्हें रखना है। और यह ध्यान रहे उन्हें कोई तकलीफ़ न हो..?"मुकुल के घर छोड़कर जाने के बाद नकुल ने कहा।


"अब से? क्यों बेटा इससे पहले तुम्हे माँ नहीं की तकलीफ नहीं दिखी?यह बदलाव अचानक कैसे ?


"माँ मुझे तो हमेशा ही आपकी चिंता रही है।आप ही हमेशा भैया भाभी के लिए मरती रहीं ..!"


"अच्छा तुम एक माँ की ममता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हो?"


"माँ मेरे कहने का यह मतलब नहीं था। मैं तो बस सच कह रहा था..!"कामना ने बीच में ही टोक दिया।


"बस बेटा और दिखावा सहन नहीं होता।जो बहू माँगने पर भी एक कप चाय नहीं देती। वो मेरी सेवा करेगी?जो बेटा माँ की परेशानी नजरंदाज कर अपनी खुशियों को पहले रखे, उससे क्या आशा?रहने दो बेटा, तुम्हें जाना है तो तुम भी जाओ, मुझे अकेला छोड़ दो..!


"माँ आप हमें क्यों दोष दे रही हो?यह जो हो रहा है,उसके लिए हम नहीं आप ही जिम्मेदार हैं..!


"वाह बेटा यह सही कहा..!आज मेरा घर ही नहीं टूटा,दिल भी टूट गया।पाँच साल पहले जिस क्लेश का तुमने बीज बोया, उसके काँटे मुझे चुभ रहे हैं..!"


"गलत क्या कहा था माँ। तुमने भाभी को इतना आराम दिया और तारा को आते ही काम सौंप दिया...!"


"तुम्हें यह दिखाई दिया?दादी लकवाग्रस्त होकर पूरी तरह मेरे सहारे हो गईं,वो नहीं दिखाई दिया?मैं बहू को सुख देती या अपनी सास के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाती.. ? 


"वो मुझे नहीं पता,आप भाभी को भी तो काम के लिए कह सकती थीं..!


"माँ में और भाभी में फर्क होता है नकुल। मैंने जो पूर्वी के साथ किया,वो भला तारा के साथ कभी करती ? नहीं करती..!


"आप तो उन्हीं का पक्ष लेती रहीं और लेती रहोगी..!"


"मैं तुम्हें सफाई नहीं देना चाहती। मैं और तेरे पिता तुम लोगों की तरह स्वार्थी बेटा बहू नहीं थे।उस समय मैंने वही किया जो मुझे सही लगा।उस समय मेरी सास को मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी।मैंने उन्हें चुना...!


"देख लिया नकुल.. अभी भी अपने को ही सही ठहरा रहीं हैं।मुझे भी कोई शौक नहीं इनके साथ रहने का,तुम्हीं करो सेवा। इनके ऐसे एटिट्यूड से इनकी सेवा कौन करेगा..?


"सही कहा तारा... इनके साथ एडजस्ट करना बहुत मुश्किल है..! नकुल भी अलग रहने चला गया। अपने स्वाभिमान को जिंदा रखकर कामना उन्हें जाते देखती रही।


"काकी..!तभी दरवाजे पर दस्तक सुनकर कामना ख्यालों से बाहर निकली।


"निर्मला तू..?आँधी बंद हो गई..? कामना ने बाहर झाँका तो माटी की सौंधी महक उड़ रही थी।


"हाँ काकी ..बूँदाबाँदी हो गई।यह देखो कौन आया है..?


"कमला..? कामना खुश होकर अपनी छोटी बहन के गले लग गई।


"चलती हूँ काकी..! निर्मला चली गई।


"दीदी जैसे ही आपका फोन आया वैसे ही अटैची उठाकर चली आई।शायद आपकी सेवा के लिए इतने सालों से अकेले थी। मेरी किस्मत में तो सुख थे ही नहीं,पर आप की खुशियाँ को किसकी नजर लग गई..!"कमला बहन को देख रोने लगी।


"किसी की नजर नहीं लगी कमला.. मेरे बच्चों को ही में बोझ लगने लगी थी। मैंने ही उन्हें इस बोझ से आजाद कर दिया।तू अपनी सुना कैसी है..?


"आपको सब पता तो है दीदी..! कहते हुए कमला रो पड़ी।कमला की शादी आर्मी के कैप्टन रंजीत से हुई थी।शादी के छः महीने बाद ही एक आतंकी मुठभेड़ में उसके पति शहीद हो गए। ससुराल ने अपशगुनी कहकर घर से निकाल दिया।तब से मायके में रह रही थी।


"रो मत कमला..इस दुनिया में पूरी तरह सुखी कोई नहीं।तू ही देख लें, कहने को यह मेरा स्वप्न महल है। लेकिन आज अपने ही सपनों की लाश पर मेरी तरह यह भी अकेला तना खड़ा है।अपने स्वाभिमान के साथ..!"


"आप सही कह रही हैं दीदी..!"


"लोगों की नजर में मुझ जैसा सुखी कोई नहीं ।मेरे पास तो दो दो बेटे हैं । सच्चाई मैं ही जानती हूँ कि कितनी सुखी हूँ।स्वार्थ के आगे मेरी ममता हार गई कमला।अब हमें किसी की जरूरत नहीं।हम दोनों अपने स्वाभिमान को जिंदा रख एक दूसरे के सहारे जीवन बिता ही लेंगे..!


©® अनुराधा चौहान 'सुधी'स्वरचित 


चित्र गूगल से साभार