बाहर तेज बारिश हो रही थी। मेघों की गर्जना के साथ ही"रूप..रूप..!"शिल्पा अतीत को याद कर चीखती हुई घुटनों में मुँह छुपाकर रोने लगी।
"शिल्पा हमें रूम मिल गया है..!"रूपेश खुश होते हुए बोला।
"सच्ची रूप..?"
"हाँ शिल्पा... और सुनो वहाँ किसी को यह मत बताना कि हम लोग किस गाँव से आए हैं,या घर छोड़कर आए हैं..!"
"नहीं बताऊंँगी,पर क्यों क्या हो जाएगा रूप..?"
"शिल्पा हम गाँव के सीधे-सादे लोग,पता नहीं पास- पडोस में कैसे लोग हों..?मुझे तो दिनभर इधर-उधर मजदूरी करने जाना है। ऐसे में किसी को यह पता चला कि हम यहाँ छुपकर रह रहे हैं तो मुसीबत हो सकती है..!"
"रूप हम कब तक छुपकर रहेंगे..? माई बाबू और गाँव वाले जानते हैं हम दोनों एक ही बिरादरी के हैं फिर भी इतना विरोध क्यों..?"शिल्पा और रूपेश एक-दूसरे से प्यार करते थे और घरवालों का विरोध उनके मिलन में बाधा बना हुआ था।
"छोड़ो यह सब बातें करके क्या फायदा..?हम साथ हैं तो सब ठीक हो जाएगा,चल अब हाथों में छोटा-सा बैग लिए धर्मशाला छोड़ नए आशियाने की ओर दोनों पैदल चल दिए।
"शिल्पा मुझे एक बात का बहुत संतोष है..!"रूपेश ने कहा।
"किस बात का रूप..?"
"यही कि मेरे घर में कोई नहीं है जिसे तुम्हारे घरवालों का अत्याचार सहना पड़े।माई तो बीमारी से दो साल पहले ही छोड़कर चली गई।बचे बाबा और बाबू उन्हें पिछली बार खलिहान में आग लील गई।तू न होती तो शायद मैं यह सदमे झेलकर मर जाता शिल्पा..!"
"ऐसा मत कहो रूप.. तुम्हें मेरी उम्र लग जाए तड़पकर शिल्पा बोली।
"यह रही खोली नंबर बारह..हमारी नयी ज़िंदगी की नींव यहीं से रखी जाएगी शिल्पा,बता कैसी लगी..?" रूप ने पूछा।
" यह तो बहुत छोटी सी और कितनी गन्दी सी है रूप?आठ वाई आठ की छोटी सी खोली देखकर शिल्पा ने नाक-भौंह सिकोड़ी। शिल्पा के पिता गाँव में सरपंच थे तो रहन-सहन आलीशान था।रूपेश के पिता उनके दोस्त थे और उन्होंने एकबार उनके काले कारनामों के खिलाफ,सच का साथ देते हुए कचहरी में गवाही दे दी थी तब से यह दुश्मनी शुरू हो गई थी ।
"कुछ दिन गुजर-बसर कर लो, फिर कहीं काम मिलते ही दूसरे घर का बंदोबस्त करता हूँ..!"
"कैसे? इसमें तो रसोईघर नहीं,शौचालय नहीं, इससे बड़ा तो हमारे नौकर का कमरा है रूप और यहाँ तो हवा के लिए खिड़की भी नहीं है..?"शिल्पा को बेचैनी होने लगी।
"हमारे पास पैसे कहाँ हैं जो बड़ा रूम लेते? फिर वहाँ धर्मशाला में किसी ने पहचान लिया तो..? शौचालय है वो वहाँ सार्वजनिक है।खाना हम यहाँ बना लेंगे..!"एक कोने में इशारा करते हुए रूपेश ने कहा।
"ठीक है रूप.. कुछ दिन ऐसे ही सही,पर हम जल्दी ही किसी खुले हवादार घर में रहने जाएंगे..!"शिल्पा झाड़ू लेकर जाले निकालने लगी।
"मैं गृहस्थी का कुछ सामान लेकर आता हूँ..!"रूपेश ने एक सस्ती दरी,पानी का मटका और राशन आदि लेकर थोड़ी देर में वापस आ गया।
"शिल्पा...तुम यहाँ बैठो,आज मैं खाना बनाता हूँ...!"
"मैं बनाती हूँ रूप.. तुम बैठो,सुबह से भाग रहे हो..!" शिल्पा ने बड़ी मुश्किल से स्टोव जलाया और खिचड़ी चढ़ा दी।
"रूपेश भाई..!"बाहर से आवाज़ आई। शिल्पा ने देखा एक हट्टा-कट्टा खूबसूरत नौजवान द्वार पर खड़ा था।
"अरे ओंकार भाई आप.?मैं बस खाना खाकर आपके पास ही आने वाला था।यह लीजिए आपका दो महीने का किराया..!"रूपेश रुपए देते हुए कहा।
"कोई बात नहीं,इस बहाने भाभीजी से भी मुलाकात हो गई।भाभी जी रूम पसंद आया आपको..?"ओंकार ने भद्दी हँसी हँसते हुए पूछा।
"पसंद का यहाँ क्या है,बस काम चलाऊ है..!"शिल्पा ने उसकी हँसी से तुनक कर कहा।
"हे हे हे सही बात है।आपके हिसाब का तो बिल्कुल नहीं है। वैसे आपको देखकर लगता नहीं कि आप कभी ऐसे घर में रही होंगी...खैर छोड़ो कोई जरूरत हो तो बोलना बाजू वाला बड़ा घर मेरा ही है। मैं सुबह दस बजे तक रहता हूँ,बाकी समय ताला रहता है क्योंकि परिवार के सभी सदस्य गाँव में रहते हैं।..!"
"जी जरूर ओंकार जी. रूपेश ने हाथ जोड़ते हुए कहा।ओंकार चला गया।
"क्या ज़रूरत थी कुछ कहने की..?पता नहीं कैसा इंसान हो..?"रूपेश ने कुण्डी लगाते हुए कहा।
"क्या ग़लत कहा..? ऐसे पूछ रहा था कि महल किराए पर दिया है।आओ बैठो खाना ठंडा हो रहा है..!"शिल्पा का ध्यान बार-बार ओंकार की ओर जा रहा था। दोनों खाना खाकर सो गए।सुबह रूपेश नाश्ता करके काम ढूँढने चला गया और शिल्पा गली में बने नल से पानी भरने लगी।
"लाइए बाल्टी में वजन है,मैं रूम में रख देता हूँ..!"तभी ओंकार वहाँ आ गया।
"मैं ले जा सकती हूँ ..!"शिल्पा बाल्टी लेकर चलने लगी तो ओंकार ने उसकी बाल्टी लेकर रूम में लाकर रख दी।
"आपकी नाजुक कलाईयाँ वजन उठाएंगी तो मोच आ जाएगी..! शिल्पा ने उसकी इस हरक़त से घबराकर इधर उधर देखा तो सभी दरवाजे बंद हो गए थे।
"यह क्या अभी सब बाहर थे अब..?"शिल्पा बुरी तरह घबरा गई।
"अरे डरिए नहीं भाभी जी..इस गली में जब ओंकार सिंह घर से बाहर कदम रखता है तो सब घर के अंदर हो जाते हैं। आपको कोई पानी भरने या किसी के लिए भी परेशान करे तो मुझे बता देना। दुबारा आपको तंग करने से पहले सौ बार सोचेगा..!"ओंकार ने शिल्पा के शरीर पर नज़र गड़ाते हुए कहा।
"आप जाइए यहाँ से, मैं मेरा देख लूँगी..!"शिल्पा कुण्डी लगाने लगी।
"अरे आप तो नाराज हो गईं। मैं आपसे यह कहने आया था कि आपको यहाँ कोई असुविधा हो तो मेरा घर है ना,वो वहाँ बँगला नंबर चार सौ बाहर,उसमें एक बड़ा कमरा खाली करवा देता हूँ।आप आइए देख लीजिए , शौचालय और नल सब अंदर है।आप दोनों वहाँ रहिए, मेरे पीछे मेरे घर की देखरेख होती रहेगी।...!"
"इस मेहरबानी का कारण..?"शिल्पा ने पूछा।
"आपकी फिक्र और कुछ नहीं, पता नहीं पर कल जब से आपको स्टोव पर काम करते देखा है, तबसे एक ही चीज मन में खटक रही है..!"ओंकार ने स्वर में मिठास और चेहरे पर उदासी ओढ़ते हुए कहा।
"क्या खटक रहा है..?"शिल्पा मन ही मन डर गई कि कहीं इसको शक तो नहीं हो गया।
"भाभीजी यहाँ सब मुझे बुरा इंसान समझते हैं पर मैं ऐसा नहीं हूँ।सबके लिए दया है मेरे अंदर।आपके नाजुक हाथ स्टोव पर काले होने लायक तो बिल्कुल नहीं हैं।आप दोनों जरूर मुसीबत के मारे हैं जो ऐसी हालत में रहने को मजबूर हैं। मैं आज ही आपके पति से बात करके अपने बंगले के एक हिस्से में आपके रहने का इंतजाम कर देता हूँ।
"इतनी दया की जरूरत नहीं,हम इससे ज्यादा किराया नहीं दे सकते..!"
भाभीजी किराया उतना ही जितना इस रूम का है।इसे मेरा स्वार्थ समझिए,इस बहाने मुझे घर का खाना मिल जाया करेगा।अब बदले में इतना तो कर ही सकतीं हैं आप..?"
"वो मैं.. शिल्पा कुछ कहती उससे पहले ही ओंकार बोल पड़ा।
"देखिए आपकी क्या समस्या है? आप दोनों इस हालत में क्यों..?यह सब मुझे कुछ नहीं जानना, ओर न मुझे इस सब से मतलब। आपके पति को अगर काम की तलाश है तो मैं अपनी कपड़ों की होलसेल दुकान पर लगा देता हूँ।बस सामान पँहुचाने के लिए इधर-उधर भागना पड़ेगा.?उसको हर महीने पंद्रह हजार पगार दूँगा..!"
"पंद्रह हजार..?"शिल्पा खुश होकर बोली।
"चलता हूँ भाभीजी..!"ओंकार चला गया।
यह दिखने में जितना सुंदर है,उतना ही दिल का भी धनी लग रहा है।रूपेश को समझाती हूँ।हम इतनी जल्दी बड़ा घर नहीं ले सकते तो क्या बुराई है इतने ही किराए में उस खुले हवादार बंगले में रहने में..? मुझे उसके लिए दो वक्त का खाना ही तो बनाना पड़ेगा?" शिल्पा रूपेश को छोड़कर पूरे दिन ओंकार के बारे में सोचती रही।शाम हो गई तो उसने खाना बनाना शुरू कर दिया।
"रूप आ गए..!" रूपेश के हाथ से दूध का पेकेट लेकर शिल्पा बोली "आप हाथ-मुँह धोकर आराम करो, मैं अभी आपके लिए चाय बना देती हूँ..!"
"नहीं शिल्पा यह तुम्हारे पीने के लिए है।इस भाग-दौड़ में तुम्हें कई दिनों से दूध नहीं मिला। मैं जानता हूँ बिना दूध पिए तुम्हें अच्छी नींद नहीं आती..!"रूपेश ने शिल्पा के चेहरे पर आई लट को सँवारते हुए कहा।
"रूप तुम्हारा साथ ही मेरे हर सुख की वजह है। तुम बैठो मैं चाय बनाती हूँ..!"शिल्पा ने दो कप चाय बनाई और रूपेश के करीब बैठ गई।धीरे-धीरे उसने ओंकार के साथ हुईं सारी बातें बता दीं।
"शिल्पा कुछ न कुछ काम मिल ही जाएगा। फिर पैसे हाथ में आते ही दूसरा घर ढूँढ लेंगे।हम यहाँ नए हैं।हम ऐसे ही भले हैं। मैं अनजान लोगों पर भरोसा नहीं कर सकता..!"
"इसमें भरोसा नहीं करने जैसी कोई बात ही नहीं रूप। ओंकार जी तुम्हें अपने यहाँ काम दे रहे हैं तो तनख्वाह भी अच्छी दे रहे हैं।वो बाहर का खाना खाते हैं इसलिए उन्होंने कहा की किराया उतना ही बस मेरे लिए सुबह शाम खाना बना देना।दो की जगह तीन लोगों का खाना बनाने में मुझे कोई दिक्कत नहीं है..!"
"पर मुझे है..!मेरी बीबी दूसरों के लिए खाना बनाएगी? यह कैसे सोच लिया शिल्पा..? तुमने कभी काम नहीं किया आज मेरे कारण तुम..लानत है मुझपे तुम्हें सुख नहीं दे पा रहा हूँ..!"रुपेश की आँखें नम हो गईं।
"ऐसा मत कहो रूप..तुम ही मेरा सबसे बड़ा सुख हो। मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही बोल रही थी। दो-तीन महीने में ही हमारे पास अच्छी धनराशि जमा हो जाएगी फिर हम अच्छी जगह रहने चले जाएंगे। ओंकार जी भी यही कह रहे थे। अपनी पहचान में उनकी दुकान के पास ही घर दिलवा देंगे..!"
"सोचते हैं क्या करना है।अभी खाना खिलाओ यार बहुत भूख लगी है..!"रूपेश ने शिल्पा के उत्साह को देखते हुए बात बदलते हुए कहा।
सुबह काम ढूँढने जाते समय ही रूपेश को ओंकार घर के बाहर मिल गया।
"और रूपेश भाई!कहाँ फिर से काम की तलाश में?अरे अपनी कई दुकानें और कपड़ों का होलसेल का व्यापार है।मुझे तीन-चार आदमियों की तलाश है जो ग्राहकों तक माल पहुँचा सकें।तुम क्यों नहीं आ जाते..? और कोई पहचान के बंदे हों तो एक-दो ले आओ तो और बढ़िया हो।दीवाली पास है और ऑर्डर बहुत सारे, पंद्रह हजार दूँगा।
"नहीं ओंकार जी मेरी पहचान में यहाँ कोई नहीं है।कब और कहाँ आना है, वो बता दीजिए मैं आ जाऊँगा। वैसे भी मैं नए काम की तलाश में था। आपने मेरी मुश्किल हल कर दी, आपका हार्दिक आभार ओंकार जी..!"
"अरे आभार कैसा..? तुम मुझे भले आदमी लगे। मुझे ऐसे ही सीधे-सादे लोग चाहिए जो पूरी ईमानदारी से काम करें। चलो साथ में चलो दुकान पर सबसे मिलवा देता हूँ।वहाँ प्रकाश जी हैं काम समझा देंगे..!"
"जी चलिए..!"रूपेश मन ही मन खुश हो गया पर ऊपर से गम्भीर बना रहा।
"चलो बैठो, ओंकार ने कार में बैठने का इशारा किया। फिर अचानक "एक मिनट रूपेश भाई.. बात बस इतनी ही नहीं थी।भाभीजी से कहा था कि वो सुबह और रात को अपने साथ ही मेरे लिए भी खाना बना लें तो बड़ी मेहरबानी होगी। क्या हुआ उन्होंने मना कर दिया..?"
"अरे नहीं ओंकार जी..वो क्यों मना करेंगी। मैं कह देता हूँ ,शाम को आपको खाना बना मिलेगा..!"रूपेश जैसे ही मुड़ा, ओंकार ने टोक दिया।
"नहीं रहने दो,उस छोटे से रूम में स्टोव पर खाना बनाते भाभी जी परेशान हो जाएंगी।तुम दोनों यहाँ आ जाते तो अच्छा भी लगता।पर तुम लोगों को नहीं पसंद तो कोई बात नहीं, चलो चलते हैं..!"ओंकार गाड़ी स्टार्ट करने लगा।
"ठहरिए..!" रूपेश ने बोला।
"क्या हुआ..?"ओंकार ने पूछा।
"लाइए चाबी दीजिए कमरे की, मैं शिल्पा और सामान यहाँ पहूँचा देता हूँ..!"यह सुनते ही ओंकार के चेहरे पर जहरीली मुस्कान फैल गई।भोला-भाला रूपेश उसके जाल में फँसने लगा था।ओंकार ने तुरंत बँगले का ताला खोल दिया।
उसने पीछे की तरफ़ बने कमरे दिखाते हुए रूपेश से कहा।"रूपेश भाई यह मैन गेट की चाबी है और यह रहा कमरा, इस वाले कमरे का एक दरवाजा पीछे की तरफ़ खुलता भी खुलता है।आप कभी रात को देर से आए तो बँगले के अंदर आए बिना आराम से कमरे में अंदर आ सकते हैं।
कमरा देखकर शिल्पा खुश हो गई। कमरे की खिड़की के नीचे बड़ा-सा किचन गार्डन बना हुआ था।कमरे सुख सुविधाओं से लैस था।रूपेश भी अचकचा गया यह सोचकर की कहीं मैं यहाँ आकर गलती तो नहीं कर रहा।
"रसोई कहाँ है..?"शिल्पा ने पूछा।
ओंकार ने उस कमरे के अंदर वाले दरवाजे को खोला तो बँगले को देखकर शिल्पा और रूपेश ठगे से खड़े रह गए।"यह दाईं ओर किचन है।सब सामान मौजूद है आप देख लीजिएगा।चलें रूपेश भाई..?"
"जी..जी चलिए..!"रूपेश ने चौंककर कहा।
उन लोगों के जाने के बाद शिल्पा पूरे बँगले को घूमकर देखने लगी।"यह हमारी कोठी से बड़ा तो नहीं पर यहाँ सुविधाओं की कमी नहीं।कल्पना जिज्जी के घर जैसीं सब आधुनिक वस्तुएं हैं..!"
ओंकार जब कभी शिल्पा के खाने की तारीफ करता तो शिल्पा बहुत खुश हो जाती।"रूपेश खाना कैसा लगा? आप कुछ नहीं कहेंगे..?"
"क्या कहूँ…?तुम ही इतनी अच्छी हो तो खाने की क्या तारीफ़ करूँ..?"रूपेश शिल्पा को करीब खींचते हुए बोला।
"हूहहहूँ तुम भी..जब देखो शरारत..!"शिल्पा शरमाकर बर्तन लेकर किचन में चली गई। ओंकार उन दोनों की हरकतें देखकर मिसमिसा रहा था।
एक दिन"रूपेश तुम आज भीकमगढ़ जा सकते हो..? एक ग्राहक का फोन आया था उसे आज अर्जेंट कपड़ों की डिलीवरी चाहिए..!"
"हाँ चला जाऊँगा..!"
"ओंकार जी इतनी बारिश में कैसे..?रूप परेशान हो जाएगा..!"
"भाभीजी मैं जाने वाला था पर क्या करूँ सिर में असहनीय पीड़ा हो रही है। रूपेश अपनी गाड़ी से चला जाएगा।रूपेश ड्राइवर आने वाला है। तुम गोदाम में सौ-सौ ड्रेस मटेरियल के तीन गट्ठर बने रखें हैं लेकर निकल जाना।मैं उन्हें फोन कर देता हूँ..!"
"जी ..!"ड्राइवर के साथ रूपेश निकल गया।
"भाभीजी अगर एक कप कॉफी मिल जाती तो सिरदर्द में राहत मिल जाती..!"
"जी अभी बना देती हूँ!"शिल्पा कॉफी बनाने चली गई। ओंकार अपने कमरे में चला गया।
"ओंकार जी आपकी कॉफी.. अरे कहाँ गए..? लगता है अपने कमरे में चले गए। वहीं दे आती हूँ..!"शिल्पा सीढ़ी चढ़ने लगी। कमरे में ओंकार आँखें बंद करें आराम कुर्सी पर बैठा था।पास में वाम की शीशी रखी थी। सामने तिजोरी खुली पड़ी थी जिसमें नोटों की गड्डियाँ और गहने भरे थे।
"आपकी कॉफी ओंकार जी..!"शिल्पा कॉफी देकर मुड़ी तो तिजोरी देखकर मुँह खुला रह गया। ओंकार तिरछी नज़र से सब देख रहा था।
"आहहहह..!"
"क्या हुआ ओंकार जी..?"
"सिर में असहनीय दर्द हो रहा है। पैन किलर लिया है पर कुछ असर नहीं।काश मेरे सिर में कोई वाम मलने वाला होता। भाभीजी बुरा न लगे तो वाम आप.. रहने दीजिए मैं भी पागलों सी बातें करने लगा..!"
"अरे पागलों सी बात क्या..?लाइए लगा देती हूँ..!" शिल्पा ओंकार के सिर में वाम मलने लगी। कुछ पल ही हुए थे कि ओंकार ने उसके हाथ पकड़ लिए।
"यह क्या कर रहे हैं आप..? छोड़िए मेरा हाथ..!" शिल्पा बोली।
"भाभीजी आप ग़लत समझ रहीं हैं।वो आपका नाखून लगा यहाँ..!"आँख के ऊपर इशारा करते हुए बोला।
"ओह सॉरी..!"
"भाभीजी आप न सच मैं बहुत कमाल हो,आपके हाथ में जादू है। रूपवती,गुणवती कोई कमी नहीं, आपको तो महलों की रानी होना चाहिए था..!"ओंकार शिल्पा की तारीफ करने लगा। शिल्पा भी मन ही मन खुश हो रही थी। ओंकार ने फिर हाथ पकड़ लिए।इस बार शिल्पा ने हौले से पूछा।
"अब क्या हुआ ओंकार जी..?"
"बस कीजिए भाभीजी... कहीं इन नाजुक हाथों में छाले न पड़ जाएं..?"
"आप भी ओंकार जी..!"शिल्पा ने शरमाकर हाथ खींच लिए।
"आपने अपने लिए कॉफी नहीं बनाई..?"
"नहीं फिर नींद नहीं आएगी..!"शिल्पा उठने लगी।
"तो ठीक है ना,हम दोनों कुछ देर और बातें करते हैं।आप अपने बारे में बताइए हम अपने बारे में.. वैसे भी बारिश में सुहानी रात में नींद किसे आती है..!"
"नहीं बहुत रात हो गई,आप सो जाइए..!"शिल्पा जाने लगी।
"रुक जाओ ना प्लीज, कुछ देर,कोई मेरे साथ बैठने वाली होती तो आपको क्यों कहता..?"ओंकार ने जाती हुई शिल्पा का हाथ पकड़ लिया।
"रात बहुत हो रही है।मेरा यहाँ बैठना ठीक नहीं..!"
"कौन हमें देख रहा है भाभीजी..? फिर भी आपको कुछ ग़लत लग रहा है तो सॉरी,आप सो जाइए।मेरा क्या? मेरी तो अकेले रहने की आदत है..!"ओंकार ने धीमी आवाज में कहा।
जाती हुई शिल्पा ठिठक कर रुक गई।यह देख ओंकार के चेहरे पर मुस्कान तैर गई।
"आप जाइए सो जाइए भाभीजी..!"
"नहीं ठीक है,बैठती हूँ कुछ देर..यह तिजोरी क्यों खुली है। कोई देख लेगा तो..?"
"यहाँ मैं और आप हैं।आप तो मेरी अपनी है। आपसे क्या छुपाना..?आइए कुछ दिखाता हूँ..!"ओंकार उसे पकड़कर तिजोरी के पास ले गया। शिल्पा पर ओंकार के सम्मोहन का असर होने लगा था। उसने हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की।
"आप यहाँ खड़े होकर अपनी आँखे बंद कीजिए। मैं न कहूँ तब तक मत खोलना, ठीक है..!"
"हम्म..!"शिल्पा आँखें बंद करके खड़ी हो गई।उसे अपने गले, कानों और हाथों में वज़न महसूस हो रहा था। शायद ओंकार कुछ पहना रहा था। शिल्पा को ना जाने क्यों अब उसका स्पर्श अच्छा लगने लगा था।
"हो गया, खोलिए आँखें..!"आँखें खोलते ही शिल्पा का मुँह फटा रह गया।"इतने सारे जेवर..!" मन ही मन में सोचने लगी कि पूरे गाँव के जमा होंगे तब भी इतने नहीं होंगे।
"आज इन जेवरों की कीमत दोगुनी हो गई भाभीजी।सच कह रहा हूँ!काश आप सा कोई मिल जाए तो इनकी किस्मत सुधर जाए..!"
"बस अब और तारीफ न करें और इन्हें बंद करके रख दीजिए। शिल्पा गहने उतारने लगी।
"ऐसे नहीं भाभीजी,बहुत नाज़ुक हैं, मैं उतारता हूँ।ओह इसका कुंदा फँस गया।रानी हार के कुंदे को दाँत से खोलने के बहाने ओंकार शिल्पा के गले पर बार-बार होंठों को टच करने लगा।बाहर ज़ोरदार बादल गर्जने की आवाज के साथ बरसात तेज हो गई थी। जैसे ईश्वर भी शिल्पा को चेतावनी दे रहे हों।
अचानक कहीं जोर से बिजली कड़की और शिल्पा के मुँह से डर के मारे चीख निकल पड़ी।बस इसी मौके का फायदा उठाकर ओंकार ने उसे अपने बाहों में जकड़ लिया।शिल्पा कसमसाई फिर ढ़ीली पड़ गई। मेघों की गर्जना पवित्र रिश्ते को यूँ बिखरते देख तेज हो गई थी। रूपेश गाड़ी में बैठा पर्स में लगी शिल्पा की फोटो को निहारते हुए उसे याद कर रहा था।
"किसकी फोटो देखकर मुस्कुरा रहे हो साहब..?"कार चलाते हुए ड्राइवर ने पूछा।
"मेरी पत्नी की..!"रूपेश ने फोटो दिखाई।
"बहुत प्यारी बच्ची है।कहाँ गाँव में है..?"
"नहीं हम दोनों ओंकार साहब के बँगले में रह रहे हैं..!"
"क्या..?"ड्राइवर ने गाड़ी साइड में लेकर रोक दी।
"क्या हुआ काका..!"
"तुम अपनी बीवी को एक अय्याश के हवाले कर आए हो साहब..!"
"क्या..? नहीं तुम्हें गलतफहमी है। ओंकार जी बहुत अच्छे इंसान हैं..!"
"साहब इतने अच्छे हैं तो उनका परिवार एक शहर में होते हुए भी उनसे क्यों नहीं मिलता..? कभी मोहल्ले वालों को उनसे बात करते देखा है..?साहब मेरी बात मानो और बचा लो अपनी पत्नी को,चलो वापस..!" गाड़ी तेजी से वापस लौट पड़ी। रूपेश के चेहरे पर पसीने की बूँदें छलछला उठी थी।
इधर शिल्पा ओंकार के मोहजाल में सब-कुछ भूल गई।सारे वादे ओंकार की सेज पर दम तोड़ने लगे थे कि तभी... शिल्पा..!! रूपेश के चिल्लाने की आवाज के साथ ही शिल्पा जैसे गहरी नींद से जागी हो।
"रूपेश..?"अपने आप को संभालते हुए शिल्पा बोली। मुझे माफ़ कर दो रूप.. मुझे नहीं पता यह सब कैसे हो गया..!"
"रूपेश भाई मेरी कोई गलती नहीं है। मैं तो अपने कमरे में सो रहा था। भाभीजी अचानक आकर बोली उन्हें डर लग रहा है। मैंने उन्हें यहाँ सोफे पर सोने की इजाजत दी तो यह नहीं मानी और जबरन मेरे साथ,मेरे ही बिस्तर पर लेट गई।मैं अपनी भावनाओं पर नहीं काबू कर पाया..!"
"नहीं रूप..यह झूठ बोल रहा है।इसने ही मुझे अपनी मीठी-मीठी बातों में उलझाए रखा और कब इसकी बातों में आ गई पता ही नहीं चला। रूप इसमें मेरी कोई गलती नहीं है..!"
और हमारा प्यार इतना कमजोर था कि ताश के महल की तरह ढह गया..है ना शिल्पा..?"
"नहीं रूप..मेरा यकीन करो..!"शिल्पा रोने लगी।
"क्या यकीन करूँ शिल्पा.. पहले दिन से तुम्हें ना जाने कौन-सा आकर्षण ओंकार की तरफ खींच रहा था। मैं ही पागल था जो तुम्हारे लिए सब मानता चला गया..!" रूपेश ने रोते हुए कहा
"तूने हमारे भोलेपन का फायदा उठाकर हमारी हँसती- खेलती ज़िंदगी बर्बाद कर दी ओंकार तुझे तो मैं छोड़ूँगा नहीं..!"कहकर रूपेश ओंकार के साथ हाथापाई करने लगा।
"अपनी हद में रहो रूपेश..!'ओंकार ने तकिए के नीचे से पिस्तौल निकाली और रूपेश के सीने में गोलियाँ दाग दी।
"शिल्पा आज तुमने जीते-जी हमारे प्यार का कत्ल कर दिया..!"कहते हुए रूपेश निष्प्राण होकर भूमि पर गिर पड़ा।
"नहीं..!! रूप उठो रूप..!ओंकार बचा लीजिए रूप को, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ..!"शिल्पा रोते हुए बोली।
ओंकार किसी को फोन पर बोल रहा था।" सुनो इसी समय आ जाओ।घर में एक पागल आ गया था। मैंने उसे ठिकाने लगा दिया है।अब उसकी बॉडी तुम ठिकाने लगा दो..!"
"नहीं तुम ऐसा नहीं करोगे। ओंकार बचा लीजिए रूपेश को..!"ओंकार के गुर्गे आए और रूपेश की लाश को ठिकाने लगाने के लिए ले गए।बरसात की भयानक रात में शिल्पा की चीखें बँगले में ही घुटकर रह गईं।
इस घटना ने शिल्पा को रूपेश का अपराधी बना दिया। रूपेश को गए एक साल हो गया। पश्चाताप की अग्नि में तिल-तिल जलती शिल्पा से ओंकार ने जबरदस्ती शादी कर ली।
रूप..!"आज फिर वैसी ही जोरदार बारिश हो रही थी। अचानक बिजली कड़कने की तेज आवाज के साथ शिल्पा रूपेश को पुकारती हुई कमरे में बुरी तरह चीख रही थी।
"कब तक चीखोगी..? एक दिन फिर खुद झुकोगी मेरे आगे.. ओंकार सिगरेट को पैरों से मसलते हुए बोला।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍
चित्र गूगल से साभार