Friday, September 13, 2024

अपराधी



बाहर तेज बारिश हो रही थी। मेघों की गर्जना के साथ ही"रूप..रूप..!"शिल्पा अतीत को याद कर चीखती हुई घुटनों में मुँह छुपाकर रोने लगी।

"शिल्पा हमें रूम मिल गया है..!"रूपेश खुश होते हुए बोला।

"सच्ची रूप..?"

"हाँ शिल्पा... और सुनो वहाँ किसी को यह मत बताना कि हम लोग किस गाँव से आए हैं,या घर छोड़कर आए हैं..!"

"नहीं बताऊंँगी,पर क्यों क्या हो जाएगा रूप..?"

"शिल्पा हम गाँव के सीधे-सादे लोग,पता नहीं पास- पडोस में कैसे लोग हों..?मुझे तो दिनभर इधर-उधर मजदूरी करने जाना है। ऐसे में किसी को यह पता चला कि हम यहाँ छुपकर रह रहे हैं तो मुसीबत हो सकती है..!"

"रूप हम कब तक छुपकर रहेंगे..? माई बाबू और गाँव वाले जानते हैं हम दोनों एक ही बिरादरी के हैं फिर भी इतना विरोध क्यों..?"शिल्पा और रूपेश एक-दूसरे से प्यार करते थे और घरवालों का विरोध उनके मिलन में बाधा बना हुआ था।

"छोड़ो यह सब बातें करके क्या फायदा..?हम साथ हैं तो सब ठीक हो जाएगा,चल अब हाथों में छोटा-सा बैग लिए धर्मशाला छोड़ नए आशियाने की ओर दोनों पैदल चल दिए।

"शिल्पा मुझे एक बात का बहुत संतोष है..!"रूपेश ने कहा।

"किस बात का रूप..?"

"यही कि मेरे घर में कोई नहीं है जिसे तुम्हारे घरवालों का अत्याचार सहना पड़े।माई तो बीमारी से दो साल पहले ही छोड़कर चली गई।बचे बाबा और बाबू उन्हें पिछली बार खलिहान में आग लील गई।तू न होती तो शायद मैं यह सदमे झेलकर मर जाता शिल्पा..!"

"ऐसा मत कहो रूप.. तुम्हें मेरी उम्र लग जाए तड़पकर शिल्पा बोली।

"यह रही खोली नंबर बारह..हमारी नयी ज़िंदगी की नींव यहीं से रखी जाएगी शिल्पा,बता कैसी लगी..?" रूप ने पूछा।

" यह तो बहुत छोटी सी और कितनी गन्दी सी है रूप?आठ वाई आठ की छोटी सी खोली देखकर शिल्पा ने नाक-भौंह सिकोड़ी। शिल्पा के पिता गाँव में सरपंच थे तो रहन-सहन आलीशान था।रूपेश के पिता उनके दोस्त थे और उन्होंने एकबार उनके काले कारनामों के खिलाफ,सच का साथ देते हुए कचहरी में गवाही दे दी थी तब से यह दुश्मनी शुरू हो गई थी ।

"कुछ दिन गुजर-बसर कर लो, फिर कहीं काम मिलते ही दूसरे घर का बंदोबस्त करता हूँ..!"

"कैसे? इसमें तो रसोईघर नहीं,शौचालय नहीं, इससे बड़ा तो हमारे नौकर का कमरा है रूप और यहाँ तो हवा के लिए खिड़की भी नहीं है..?"शिल्पा को बेचैनी होने लगी।

"हमारे पास पैसे कहाँ हैं जो बड़ा रूम लेते? फिर वहाँ धर्मशाला में किसी ने पहचान लिया तो..? शौचालय है वो वहाँ सार्वजनिक है।खाना हम यहाँ बना लेंगे..!"एक कोने में इशारा करते हुए रूपेश ने कहा।

"ठीक है रूप.. कुछ दिन ऐसे ही सही,पर हम जल्दी ही किसी खुले हवादार घर में रहने जाएंगे..!"शिल्पा झाड़ू लेकर जाले निकालने लगी।

"मैं गृहस्थी का कुछ सामान लेकर आता हूँ..!"रूपेश ने एक सस्ती दरी,पानी का मटका और राशन आदि लेकर थोड़ी देर में वापस आ गया।

"शिल्पा...तुम यहाँ बैठो,आज मैं खाना बनाता हूँ...!"

"मैं बनाती हूँ रूप.. तुम बैठो,सुबह से भाग रहे हो..!" शिल्पा ने बड़ी मुश्किल से स्टोव जलाया और खिचड़ी चढ़ा दी।

"रूपेश भाई..!"बाहर से आवाज़ आई। शिल्पा ने देखा एक हट्टा-कट्टा खूबसूरत नौजवान द्वार पर खड़ा था।

"अरे ओंकार भाई आप.?मैं बस खाना खाकर आपके पास ही आने वाला था।यह लीजिए आपका दो महीने का किराया..!"रूपेश रुपए देते हुए कहा।

"कोई बात नहीं,इस बहाने भाभीजी से भी मुलाकात हो गई।भाभी जी रूम पसंद आया आपको..?"ओंकार ने भद्दी हँसी हँसते हुए पूछा।

"पसंद का यहाँ क्या है,बस काम चलाऊ है..!"शिल्पा ने उसकी हँसी से तुनक कर कहा।

"हे हे हे सही बात है।आपके हिसाब का तो बिल्कुल नहीं है। वैसे आपको देखकर लगता नहीं कि आप कभी ऐसे घर में रही होंगी...खैर छोड़ो कोई जरूरत हो तो बोलना बाजू वाला बड़ा घर मेरा ही है। मैं सुबह दस बजे तक रहता हूँ,बाकी समय ताला रहता है क्योंकि परिवार के सभी सदस्य गाँव में रहते हैं।..!"

"जी जरूर ओंकार जी. रूपेश ने हाथ जोड़ते हुए कहा।ओंकार चला गया।

"क्या ज़रूरत थी कुछ कहने की..?पता नहीं कैसा इंसान हो..?"रूपेश ने कुण्डी लगाते हुए कहा।

"क्या ग़लत कहा..? ऐसे पूछ रहा था कि महल किराए पर दिया है।आओ बैठो खाना ठंडा हो रहा है..!"शिल्पा का ध्यान बार-बार ओंकार की ओर जा रहा था। दोनों खाना खाकर सो गए।सुबह रूपेश नाश्ता करके काम ढूँढने चला गया और शिल्पा गली में बने नल से पानी भरने लगी।

"लाइए बाल्टी में वजन है,मैं रूम में रख देता हूँ..!"तभी ओंकार वहाँ आ गया।

"मैं ले जा सकती हूँ ..!"शिल्पा बाल्टी लेकर चलने लगी तो ओंकार ने उसकी बाल्टी लेकर रूम में लाकर रख दी।

"आपकी नाजुक कलाईयाँ वजन उठाएंगी तो मोच आ जाएगी..! शिल्पा ने उसकी इस हरक़त से घबराकर इधर उधर देखा तो सभी दरवाजे बंद हो गए थे।

"यह क्या अभी सब बाहर थे अब..?"शिल्पा बुरी तरह घबरा गई।

"अरे डरिए नहीं भाभी जी..इस गली में जब ओंकार सिंह घर से बाहर कदम रखता है तो सब घर के अंदर हो जाते हैं। आपको कोई पानी भरने या किसी के लिए भी परेशान करे तो मुझे बता देना। दुबारा आपको तंग करने से पहले सौ बार सोचेगा..!"ओंकार ने शिल्पा के शरीर पर नज़र गड़ाते हुए कहा।

"आप जाइए यहाँ से, मैं मेरा देख लूँगी..!"शिल्पा कुण्डी लगाने लगी।

"अरे आप तो नाराज हो गईं। मैं आपसे यह कहने आया था कि आपको यहाँ कोई असुविधा हो तो मेरा घर है ना,वो वहाँ बँगला नंबर चार सौ बाहर,उसमें एक बड़ा कमरा खाली करवा देता हूँ।आप आइए देख लीजिए , शौचालय और नल सब अंदर है।आप दोनों वहाँ रहिए, मेरे पीछे मेरे घर की देखरेख होती रहेगी।...!"

"इस मेहरबानी का कारण..?"शिल्पा ने पूछा।

"आपकी फिक्र और कुछ नहीं, पता नहीं पर कल जब से आपको स्टोव पर काम करते देखा है, तबसे एक ही चीज मन में खटक रही है..!"ओंकार ने स्वर में मिठास और चेहरे पर उदासी ओढ़ते हुए कहा।

"क्या खटक रहा है..?"शिल्पा मन ही मन डर गई कि कहीं इसको शक तो नहीं हो गया।

"भाभीजी यहाँ सब मुझे बुरा इंसान समझते हैं पर मैं ऐसा नहीं हूँ।सबके लिए दया है मेरे अंदर।आपके नाजुक हाथ स्टोव पर काले होने लायक तो बिल्कुल नहीं हैं।आप दोनों जरूर मुसीबत के मारे हैं जो ऐसी हालत में रहने को मजबूर हैं। मैं आज ही आपके पति से बात करके अपने बंगले के एक हिस्से में आपके रहने का इंतजाम कर देता हूँ। 

"इतनी दया की जरूरत नहीं,हम इससे ज्यादा किराया नहीं दे सकते..!"

भाभीजी किराया उतना ही जितना इस रूम का है।इसे मेरा स्वार्थ समझिए,इस बहाने मुझे घर का खाना मिल जाया करेगा।अब बदले में इतना तो कर ही सकतीं हैं आप..?"

"वो मैं.. शिल्पा कुछ कहती उससे पहले ही ओंकार बोल पड़ा।

"देखिए आपकी क्या समस्या है? आप दोनों इस हालत में क्यों..?यह सब मुझे कुछ नहीं जानना, ओर न मुझे इस सब से मतलब। आपके पति को अगर काम की तलाश है तो मैं अपनी कपड़ों की होलसेल दुकान पर लगा देता हूँ।बस सामान पँहुचाने के लिए इधर-उधर भागना पड़ेगा.?उसको हर महीने पंद्रह हजार पगार दूँगा..!"

"पंद्रह हजार..?"शिल्पा खुश होकर बोली।

"चलता हूँ भाभीजी..!"ओंकार चला गया।

यह दिखने में जितना सुंदर है,उतना ही दिल का भी धनी लग रहा है।रूपेश को समझाती हूँ।हम इतनी जल्दी बड़ा घर नहीं ले सकते तो क्या बुराई है इतने ही किराए में उस खुले हवादार बंगले में रहने में..? मुझे उसके लिए दो वक्त का खाना ही तो बनाना पड़ेगा?" शिल्पा रूपेश को छोड़कर पूरे दिन ओंकार के बारे में सोचती रही।शाम हो गई तो उसने खाना बनाना शुरू कर दिया।

"रूप आ गए..!" रूपेश के हाथ से दूध का पेकेट लेकर शिल्पा बोली ‌"आप हाथ-मुँह धोकर आराम करो, मैं अभी आपके लिए चाय बना देती हूँ..!"

"नहीं शिल्पा यह तुम्हारे पीने के लिए है।इस भाग-दौड़ में तुम्हें कई दिनों से दूध नहीं मिला। मैं जानता हूँ बिना दूध पिए तुम्हें अच्छी नींद नहीं आती..!"रूपेश ने शिल्पा के चेहरे पर आई लट को सँवारते हुए कहा।

"रूप तुम्हारा साथ ही मेरे हर सुख की वजह है। तुम बैठो मैं चाय बनाती हूँ..!"शिल्पा ने दो कप चाय बनाई और रूपेश के करीब बैठ गई।धीरे-धीरे उसने ओंकार के साथ हुईं सारी बातें बता दीं।

"शिल्पा कुछ न कुछ काम मिल ही जाएगा। फिर पैसे हाथ में आते ही दूसरा घर ढूँढ लेंगे।हम यहाँ नए हैं।हम ऐसे ही भले हैं। मैं अनजान लोगों पर भरोसा नहीं कर सकता..!"

"इसमें भरोसा नहीं करने जैसी कोई बात ही नहीं रूप। ओंकार जी तुम्हें अपने यहाँ काम दे रहे हैं तो तनख्वाह भी अच्छी दे रहे हैं।वो बाहर का खाना खाते हैं इसलिए उन्होंने कहा की किराया उतना ही बस मेरे लिए सुबह शाम खाना बना देना।दो की जगह तीन लोगों का खाना बनाने में मुझे कोई दिक्कत नहीं है..!"

"पर मुझे है..!मेरी बीबी दूसरों के लिए खाना बनाएगी? यह कैसे सोच लिया शिल्पा..? तुमने कभी काम नहीं किया आज मेरे कारण तुम..लानत है मुझपे तुम्हें सुख नहीं दे पा रहा हूँ..!"रुपेश की आँखें नम हो गईं।

"ऐसा मत कहो रूप..तुम ही मेरा सबसे बड़ा सुख हो। मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही बोल रही थी। दो-तीन महीने में ही हमारे पास अच्छी धनराशि जमा हो जाएगी फिर हम अच्छी जगह रहने चले जाएंगे। ओंकार जी भी यही कह रहे थे। अपनी पहचान में उनकी दुकान के पास ही घर दिलवा देंगे..!"

"सोचते हैं क्या करना है।अभी खाना खिलाओ यार बहुत भूख लगी है..!"रूपेश ने शिल्पा के उत्साह को देखते हुए बात बदलते हुए कहा।

सुबह काम ढूँढने जाते समय ही रूपेश को ओंकार घर के बाहर मिल गया।

"और रूपेश भाई!कहाँ फिर से काम की तलाश में?अरे अपनी कई दुकानें और कपड़ों का होलसेल का व्यापार है।मुझे तीन-चार आदमियों की तलाश है जो ग्राहकों तक माल पहुँचा सकें।तुम क्यों नहीं आ जाते..? और कोई पहचान के बंदे हों तो एक-दो ले आओ तो और बढ़िया हो।दीवाली पास है और ऑर्डर बहुत सारे, पंद्रह हजार दूँगा।

"नहीं ओंकार जी मेरी पहचान में यहाँ कोई नहीं है।कब और कहाँ आना है, वो बता दीजिए मैं आ जाऊँगा। वैसे भी मैं नए काम की तलाश में था। आपने मेरी मुश्किल हल कर दी, आपका हार्दिक आभार ओंकार जी..!"

"अरे आभार कैसा..? तुम मुझे भले आदमी लगे। मुझे ऐसे ही सीधे-सादे लोग चाहिए जो पूरी ईमानदारी से काम करें। चलो साथ में चलो दुकान पर सबसे मिलवा देता हूँ।वहाँ प्रकाश जी हैं काम समझा देंगे..!"

"जी चलिए..!"रूपेश मन ही मन खुश हो गया पर ऊपर से गम्भीर बना रहा।

"चलो बैठो, ओंकार ने कार में बैठने का इशारा किया। फिर अचानक "एक मिनट रूपेश भाई.. बात बस इतनी ही नहीं थी।भाभीजी से कहा था कि वो सुबह और रात को अपने साथ ही मेरे लिए भी खाना बना लें तो बड़ी मेहरबानी होगी। क्या हुआ उन्होंने मना कर दिया..?"

"अरे नहीं ओंकार जी..वो क्यों मना करेंगी। मैं कह देता हूँ ,शाम को आपको खाना बना मिलेगा..!"रूपेश जैसे ही मुड़ा, ओंकार ने टोक दिया।

"नहीं रहने दो,उस छोटे से रूम में स्टोव पर खाना बनाते भाभी जी परेशान हो जाएंगी।तुम दोनों यहाँ आ जाते तो अच्छा भी लगता।पर तुम लोगों को नहीं पसंद तो कोई बात नहीं, चलो चलते हैं..!"ओंकार गाड़ी स्टार्ट करने लगा।

"ठहरिए..!" रूपेश ने बोला।

"क्या हुआ..?"ओंकार ने पूछा।

"लाइए चाबी दीजिए कमरे की, मैं शिल्पा और सामान यहाँ पहूँचा देता हूँ..!"यह सुनते ही ओंकार के चेहरे पर जहरीली मुस्कान फैल गई।भोला-भाला रूपेश उसके जाल में फँसने लगा था।ओंकार ने तुरंत बँगले का ताला खोल दिया।

उसने पीछे की तरफ़ बने कमरे दिखाते हुए रूपेश से कहा।"रूपेश भाई यह मैन गेट की चाबी है और यह रहा कमरा, इस वाले कमरे का एक दरवाजा पीछे की तरफ़ खुलता भी खुलता है।आप कभी रात को देर से आए तो बँगले के अंदर आए बिना आराम से कमरे में अंदर आ सकते हैं।

कमरा देखकर शिल्पा खुश हो गई। कमरे की खिड़की के नीचे बड़ा-सा किचन गार्डन बना हुआ था।कमरे सुख सुविधाओं से लैस था।रूपेश भी अचकचा गया यह सोचकर की कहीं मैं यहाँ आकर गलती तो नहीं कर रहा। 

"रसोई कहाँ है..?"शिल्पा ने पूछा।

ओंकार ने उस कमरे के अंदर वाले दरवाजे को खोला तो बँगले को देखकर शिल्पा और रूपेश ठगे से खड़े रह गए।"यह दाईं ओर किचन है।सब सामान मौजूद है आप देख लीजिएगा।चलें रूपेश भाई..?"

"जी..जी चलिए..!"रूपेश ने चौंककर कहा।

उन लोगों के जाने के बाद शिल्पा पूरे बँगले को घूमकर देखने लगी।"यह हमारी कोठी से बड़ा तो नहीं पर यहाँ सुविधाओं की कमी नहीं।कल्पना जिज्जी के घर जैसीं‌ सब आधुनिक वस्तुएं हैं..!"

ओंकार जब कभी शिल्पा के खाने की तारीफ करता तो शिल्पा बहुत खुश हो जाती।"रूपेश खाना कैसा लगा? आप कुछ नहीं कहेंगे..?"

"क्या कहूँ…?तुम ही इतनी अच्छी हो तो खाने की क्या तारीफ़ करूँ..?"रूपेश शिल्पा को करीब खींचते हुए बोला।

"हूहहहूँ तुम भी..जब देखो शरारत..!"शिल्पा शरमाकर बर्तन लेकर किचन में चली गई। ओंकार उन दोनों की हरकतें देखकर मिसमिसा रहा था।

एक दिन"रूपेश तुम आज भीकमगढ़ जा सकते हो..? एक ग्राहक का फोन आया था उसे आज अर्जेंट कपड़ों की डिलीवरी चाहिए..!"

"हाँ चला जाऊँगा..!"

"ओंकार जी इतनी बारिश में कैसे..?रूप परेशान हो जाएगा..!"

"भाभीजी मैं जाने वाला था पर क्या करूँ सिर में असहनीय पीड़ा हो रही है। रूपेश अपनी गाड़ी से चला जाएगा।रूपेश ड्राइवर आने वाला है। तुम गोदाम में सौ-सौ ड्रेस मटेरियल के तीन गट्ठर बने रखें हैं लेकर निकल जाना।मैं उन्हें फोन कर देता हूँ..!"

"जी ..!"ड्राइवर के साथ रूपेश निकल गया।

"भाभीजी अगर एक कप कॉफी मिल जाती तो सिरदर्द में राहत मिल जाती..!"

"जी अभी बना देती हूँ!"शिल्पा कॉफी बनाने चली गई। ओंकार अपने कमरे में चला गया।

"ओंकार जी आपकी कॉफी.. अरे कहाँ गए..? लगता है अपने कमरे में चले गए। वहीं दे आती हूँ..!"शिल्पा सीढ़ी चढ़ने लगी। कमरे में ओंकार आँखें बंद करें आराम कुर्सी पर बैठा था।पास में वाम की शीशी रखी थी। सामने तिजोरी खुली पड़ी थी जिसमें नोटों की गड्डियाँ और गहने भरे थे।

"आपकी कॉफी ओंकार जी..!"शिल्पा कॉफी देकर मुड़ी तो तिजोरी देखकर मुँह खुला रह गया। ओंकार तिरछी नज़र से सब देख रहा था।

"आहहहह..!"

"क्या हुआ ओंकार जी..?"

"सिर में असहनीय दर्द हो रहा है। पैन किलर लिया है पर कुछ असर नहीं।काश मेरे सिर में कोई वाम मलने वाला होता। भाभीजी बुरा न लगे तो वाम आप.. रहने दीजिए मैं भी पागलों सी बातें करने लगा..!"

"अरे पागलों सी बात क्या..?लाइए लगा देती हूँ..!" शिल्पा ओंकार के सिर में वाम मलने लगी। कुछ पल ही हुए थे कि ओंकार ने उसके हाथ पकड़ लिए।

"यह क्या कर रहे हैं आप..? छोड़िए मेरा हाथ..!" शिल्पा बोली।

"भाभीजी आप ग़लत समझ रहीं हैं।वो आपका नाखून लगा यहाँ..!"आँख के ऊपर इशारा करते हुए बोला।

"ओह सॉरी..!"

"भाभीजी आप न सच मैं बहुत कमाल हो,आपके हाथ में जादू है। रूपवती,गुणवती कोई कमी नहीं, आपको तो महलों की रानी होना चाहिए था..!"ओंकार शिल्पा की तारीफ करने लगा। शिल्पा भी मन ही मन खुश हो रही थी। ओंकार ने फिर हाथ पकड़ लिए।इस बार शिल्पा ने हौले से पूछा।

"अब क्या हुआ ओंकार जी..?"

"बस कीजिए भाभीजी... कहीं इन नाजुक हाथों में छाले न पड़ जाएं..?"

"आप भी ओंकार जी..!"शिल्पा ने शरमाकर हाथ खींच लिए।

"आपने अपने लिए कॉफी नहीं बनाई..?"

"नहीं फिर नींद नहीं आएगी..!"शिल्पा उठने लगी।

"तो ठीक है ना,हम दोनों कुछ देर और बातें करते हैं।आप अपने बारे में बताइए हम अपने बारे में.. वैसे भी बारिश में सुहानी रात में नींद किसे आती है..!"

"नहीं बहुत रात हो गई,आप सो जाइए..!"शिल्पा जाने लगी।

"रुक जाओ ना प्लीज, कुछ देर,कोई मेरे साथ बैठने वाली होती तो आपको क्यों कहता..?"ओंकार ने जाती हुई शिल्पा का हाथ पकड़ लिया।

"रात बहुत हो रही है।मेरा यहाँ बैठना ठीक नहीं..!"

"कौन हमें देख रहा है भाभीजी..? फिर भी आपको कुछ ग़लत लग रहा है तो सॉरी,आप सो जाइए।मेरा क्या? मेरी तो अकेले रहने की आदत है..!"ओंकार ने धीमी आवाज में कहा।

जाती हुई शिल्पा ठिठक कर रुक गई।यह देख ओंकार के चेहरे पर मुस्कान तैर गई।

"आप जाइए सो जाइए भाभीजी..!"

"नहीं ठीक है,बैठती हूँ कुछ देर..यह तिजोरी क्यों खुली है। कोई देख लेगा तो..?"

"यहाँ मैं और आप हैं।आप तो मेरी अपनी है। आपसे क्या छुपाना..?आइए कुछ दिखाता हूँ..!"ओंकार उसे पकड़कर तिजोरी के पास ले गया। शिल्पा पर ओंकार के सम्मोहन का असर होने लगा था। उसने हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की।

"आप यहाँ खड़े होकर अपनी आँखे बंद कीजिए। मैं न कहूँ तब तक मत खोलना, ठीक है..!"

"हम्म..!"शिल्पा आँखें बंद करके खड़ी हो गई।उसे अपने गले, कानों और हाथों में वज़न महसूस हो रहा था। शायद ओंकार कुछ पहना रहा था। शिल्पा को ना जाने क्यों अब उसका स्पर्श अच्छा लगने लगा था।

"हो गया, खोलिए आँखें..!"आँखें खोलते ही शिल्पा का मुँह फटा रह गया।"इतने सारे जेवर..!" मन ही मन में सोचने लगी कि पूरे गाँव के जमा होंगे तब भी इतने नहीं होंगे।

"आज इन जेवरों की कीमत दोगुनी हो गई भाभीजी।सच कह रहा हूँ!काश आप सा कोई मिल जाए तो इनकी किस्मत सुधर जाए..!"

"बस अब और तारीफ न करें और इन्हें बंद करके रख दीजिए। शिल्पा गहने उतारने लगी।

"ऐसे नहीं भाभीजी,बहुत नाज़ुक हैं, मैं उतारता हूँ।ओह इसका कुंदा फँस गया।रानी हार के कुंदे को दाँत से खोलने के बहाने ओंकार शिल्पा के गले पर बार-बार होंठों को टच करने लगा।बाहर ज़ोरदार बादल गर्जने की आवाज के साथ बरसात तेज हो गई थी। जैसे ईश्वर भी शिल्पा को चेतावनी दे रहे हों।

अचानक कहीं जोर से बिजली कड़की और शिल्पा के मुँह से डर के मारे चीख निकल पड़ी।बस इसी मौके का फायदा उठाकर ओंकार ने उसे अपने बाहों में जकड़ लिया।शिल्पा कसमसाई फिर ढ़ीली पड़ गई। मेघों की गर्जना पवित्र रिश्ते को यूँ बिखरते देख तेज हो गई थी। रूपेश गाड़ी में बैठा पर्स में लगी शिल्पा की फोटो को निहारते हुए उसे याद कर रहा था।

"किसकी फोटो देखकर मुस्कुरा रहे हो साहब..?"कार चलाते हुए ड्राइवर ने पूछा।

"मेरी पत्नी की..!"रूपेश ने फोटो दिखाई।

"बहुत प्यारी बच्ची है।कहाँ गाँव में है..?"

"नहीं हम दोनों ओंकार साहब के बँगले में रह रहे हैं..!"

"क्या..?"ड्राइवर ने गाड़ी साइड में लेकर रोक दी।

"क्या हुआ काका..!"

"तुम अपनी बीवी को एक अय्याश के हवाले कर आए हो साहब..!"

"क्या..? नहीं तुम्हें गलतफहमी है। ओंकार जी बहुत अच्छे इंसान हैं..!"

"साहब इतने अच्छे हैं तो उनका परिवार एक शहर में होते हुए भी उनसे क्यों नहीं मिलता..? कभी मोहल्ले वालों को उनसे बात करते देखा है..?साहब मेरी बात मानो और बचा लो अपनी पत्नी को,चलो वापस..!" गाड़ी तेजी से वापस लौट पड़ी। रूपेश के चेहरे पर पसीने की बूँदें छलछला उठी थी।

इधर शिल्पा ओंकार के मोहजाल में सब-कुछ भूल गई।सारे वादे ओंकार की सेज पर दम तोड़ने लगे थे कि तभी... शिल्पा..!! रूपेश के चिल्लाने की आवाज के साथ ही शिल्पा जैसे गहरी नींद से जागी हो।

"रूपेश..?"अपने आप को संभालते हुए शिल्पा बोली। मुझे माफ़ कर दो रूप.. मुझे नहीं पता यह सब कैसे हो गया..!"

"रूपेश भाई मेरी कोई गलती नहीं है। मैं तो अपने कमरे में सो रहा था। भाभीजी अचानक आकर बोली उन्हें डर लग रहा है। मैंने उन्हें यहाँ सोफे पर सोने की इजाजत दी तो यह नहीं मानी और जबरन मेरे साथ,मेरे ही बिस्तर पर लेट गई।मैं अपनी भावनाओं पर नहीं काबू कर पाया..!"

"नहीं रूप..यह झूठ बोल रहा है।इसने ही मुझे अपनी मीठी-मीठी बातों में उलझाए रखा और कब इसकी बातों में आ गई पता ही नहीं चला। रूप इसमें मेरी कोई गलती नहीं है..!"

और हमारा प्यार इतना कमजोर था कि ताश के महल की तरह ढह गया..है ना शिल्पा..?"

"नहीं रूप..मेरा यकीन करो..!"शिल्पा रोने लगी।

"क्या यकीन करूँ शिल्पा.. पहले दिन से तुम्हें ना जाने कौन-सा आकर्षण ओंकार की तरफ खींच रहा था। मैं ही पागल था जो तुम्हारे लिए सब मानता चला गया..!" रूपेश ने रोते हुए कहा ‌

"तूने हमारे भोलेपन का फायदा उठाकर हमारी हँसती- खेलती ज़िंदगी बर्बाद कर दी ओंकार तुझे तो मैं छोड़ूँगा नहीं..!"कहकर रूपेश ओंकार के साथ हाथापाई करने लगा।

"अपनी हद में रहो रूपेश..!'ओंकार ने तकिए के नीचे से पिस्तौल निकाली और रूपेश के सीने में गोलियाँ दाग दी।

"शिल्पा आज तुमने जीते-जी हमारे प्यार का कत्ल कर दिया..!"कहते हुए रूपेश निष्प्राण होकर भूमि पर गिर पड़ा।

"नहीं..!! रूप उठो रूप..!ओंकार बचा लीजिए रूप को, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ..!"शिल्पा रोते हुए बोली।

ओंकार किसी को फोन पर बोल रहा था।" सुनो इसी समय आ जाओ।घर में एक पागल आ गया था। मैंने उसे ठिकाने लगा दिया है।अब उसकी बॉडी तुम ठिकाने लगा दो..!"

"नहीं तुम ऐसा नहीं करोगे। ओंकार बचा लीजिए रूपेश को..!"ओंकार के गुर्गे आए और रूपेश की लाश को ठिकाने लगाने के लिए ले गए।बरसात की भयानक रात में शिल्पा की चीखें बँगले में ही घुटकर रह गईं।

इस घटना ने शिल्पा को रूपेश का अपराधी बना दिया। रूपेश को गए एक साल हो गया। पश्चाताप की अग्नि में तिल-तिल जलती शिल्पा से ओंकार ने जबरदस्ती शादी कर ली।

रूप..!"आज फिर वैसी ही जोरदार बारिश हो रही थी। अचानक बिजली कड़कने की तेज आवाज के साथ शिल्पा रूपेश को पुकारती हुई कमरे में बुरी तरह चीख रही थी।

"कब तक चीखोगी..? एक दिन फिर खुद झुकोगी मेरे आगे.. ओंकार सिगरेट को पैरों से मसलते हुए बोला।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍

चित्र गूगल से साभार


Tuesday, April 18, 2023

दबा हुआ दर्द

 "मम्मा मैं डॉक्टर बन गई...!!"रिजल्ट घोषित होते हैं वैभवी दौड़कर माँ के गले लग गई।

"वाह कांग्रेचुलेशन माय बेबी,बस वैभव का इंजीनियरिंग का रिजल्ट और अच्छा आ जाए तो सीने पर रखा एक बोझ कम हो जाए...!"प्रतिज्ञा ने प्यार से वैभवी का माथा चूम लिया।

"मम्मा विभु तो टॉप ही करने वाला है।बस डॉक्टरी की पढ़ाई से उसे चिढ रही, नहीं तो उसे उसकी फील्ड में आज तक कोई पीछे नहीं कर पाया...!"

"हम्म..!"

"मैं पापा को अपना रिजल्ट बताकर आती हूँ..!"वैभवी दौड़ती अनिरुद्ध के कमरे में चली गई।

"आज मेरी आधी तपस्या हो गई। पूरी विभु के रिजल्ट के साथ हो जाएगी। फिर न मुझे इस घर से मतलब न इस बोझ बने रिश्ते से,जिसकी लाश न चाहते हुए भी इन बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए बीस वर्षों से ढोती रही हूँ...!"यह सोचते प्रतिज्ञा ने ठंडी साँस भरी और फिर अपनी यादों की गठरी खोलकर बीती बातें याद करने लगी।

"देवरानी तो तू बहुत सुंदर खोजकर लाई है प्रतिज्ञा...!" बुआ सास बलैया लेती हुई बोलीं।

"धर्मराज भाईसाहब और रजनी जिज्जी ने पिछले जन्म में बहुत पुण्य कर्म किए होंगे तभी प्रतिज्ञा जैसी बहू मिली..!"छोटी चाची ने कहा।

"सही कहा विशनपुर वाली... सास-ससुर के जाने के बाद भी ज़िम्मेदारियों से मुँह नहीं मोड़ा। पहले धूमधाम से अपनी ननद दिव्या की शादी एक अच्छा घर देखकर कर दी और अब देवर प्रद्युम्न के लिए सुंदर बहू ढूँढ लाई..!ताई जी ने समर्थन करते हुए कहा।

"आप लोग क्यों बढ़ाई कर रहे हो मेरी? यह सब तो आप बड़ों के आशीर्वाद से ही संभव हुआ है।मैंने तो सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया है...!"

"वही तो बड़ी बात है बिटिया....यह दोनों बच्चे कॉलेज में पढ़ रहे थे जब तू ब्याह कर आई। शादी के बाद धर्मराज और रजनी अपने समधी समधन के साथ चार धाम की यात्रा के लिए ऐसे निकले की फिर कभी लौटकर ही नहीं आए...!"बुआ आँसू पोछते हुए बोली।

प्रतिज्ञा के पिता किसानी करते थे।  धर्मराज नगर निगम में कार्यरत थे। एक दिन उनका दौरा किसनी गाँव में हुआ।जून का महीना सिर पर आग बरसाता सूरज...पंखे -कूलर में रहने वाले धर्मराज धूप में चक्कर खाकर गिरने वाले थे कि पीछे से जयकरन ने उन्हें सँभाल लिया।

"संभालकर साब जी...?"

"धन्यवाद..बहुत तेज धूप है भाई, मैं थोड़ी देर कहीं रुकना चाहता हूँ। क्या यहाँ कोई रेस्टहाउस..?

"हा हा हा साब जी रेस्टहाउस हमारे गाँव में नहीं मिलेगा। बुरा न मानो तो वो सामने हमारी छोटी सी झोपडी है।आइए सभी थोडा सा विश्राम कीजिए...!"जयकरन उन्हें घर ले आए।

"आप लोग यहीं रुकिए मैं इस पेड़ के नीचे खाट डाल देता हूँ....साब जी आप अंदर मूढ़े पर बैठ जाओ..!"धर्मराज उम्रदराज थे उन्हें घर में बैठा जयकरन साथ आए दोनों सहायकों के लिए पीपल के नीचे खाट डालने चला गया। तब तक रजनी ने जीरे के तड़के वाली ठंडी छाछ तैयार कर दी।

"बाबूजी छाछ..!"प्रतिज्ञा ने ग्लास आगे करते हुए कहा।

"अरे वाह...सच में बेटा आज तो इसकी बहुत जरूरत थी। क्या नाम है तुम्हारा..?"

"प्रतिज्ञा...!"

"पढ़ाई कर रही होगी..?"

"अरे कहाँ साहब.. इस गाँव में दसवीं तक ही स्कूल है। उल्टी-सीधी खबरे सुनकर इसे आगे की पढ़ाई के लिए बाहर भेजने की हिम्मत नहीं हुई।ला बेटा बाहर बाबू लोगों को भी छाछ दे आता हूँ...!"

"ओह... धर्मराज जी ने अफसोस जाहिर किया। बातों बातों में जयकरन के परिवार से धर्मराज की कोई पुरानी पहचान निकल आई।

"अरे तुम उन दलवीर सिंह जी के बेटे हो? अरे उन्हें तो मैं अच्छे से जानता हूँ। बाबू जी के अच्छे संबंध थे उनसे।वो जब भी शहर आते तो बाबूजी से मिलने घर पर जरूर आते थे...!"पहचान निकलने पर जयकरन ने प्रतिज्ञा के लिए एक अच्छा सा घर वर बताने की रिक्वेस्ट की।

"हाँ हाँ जरूर जयकरन मैं तो इसे अपनी बहू बनाकर ले जाऊँ,पर आजकल के युवा अपनी पसंद से ही शादी करते हैं। तुम मुझे बिटिया की फोटो देदो, मैं प्रयास करता हूँ..!"

                    धर्मराज गाँव का सर्वे करके शहर लौट आए।"रजनी मेरा बस चले तो अपने बेटे से इसकी शादी कर दूँ..पर इसकी एजुकेशन को लेकर कंफ्यूज हूँ कि अनिरुद्ध से बात करी तो वो मना ही करेगा..!"

"लड़की तो बहुत सुंदर है। एक बार पूछ लेने में हर्ज ही क्या है....? रजनी प्रतिज्ञा की फोटो अनिरुद्ध को दिखाती है। प्रतिज्ञा की खूबसूरती देखकर अनिरुद्ध का मन डोल गया। उसने एकबार के पूछने पर ही शादी के लिए हाँ कर दी। इस तरह प्रतिज्ञा गाँव की झोपड़ी से निकलकर महलों में आ गई।

"बहू यह तुम्हारी ननद दिव्या और यह मेरा छोटू, तुम्हारा देवर प्रद्युम्न है..!"रजनी ने सबसे परिचय कराया तो प्रतिज्ञा ने सभी को दिल से अपनाया।अनिरुद्ध और प्रद्युम्न दोनों एक-दूसरे के विपरित थे।अनिरुद्ध माँ की तरह गोरा चिट्टा गबरु जवान था तो प्रद्युम्न गहरा साँवला,देखने में अपने पिता धर्मराज की तरह दिखता था।

"तुम फोटो में इतनी सुंदर नहीं लग रही थीं जितनी अब लग रही हो।सच में तुम फोटो से भी ज्यादा खूबसूरत हो प्रतिज्ञा...!"सुहाग सेज पर उसका घूँघट खोलते हुए अनिरुद्ध ने कहा तो शर्म की लाली ने गालों की खूबसूरती और बढ़ा दी।अनिरुद्ध ने उसे बांहों में जकड़ लिया।तो प्रतिज्ञा ने भी समर्पण कर दिया।

कुछ दिन बीते तो प्रतिज्ञा ने अनिरुद्ध से पूछा"मैं तो पढ़ी-लिखी भी नहीं फिर आपने कैसे हाँ कर दी..?"

"पापा की तुम्हें बहू बनाने की प्रबल इच्छा थी। मुझे भी तुम पसंद आ गई।खूबसूरत जीवनसाथी की चाह मुझे हमेशा से थी प्रतिज्ञा ,पर यह बात घर में किसी को नहीं पता थी फिर मैंने भी सोचा मैं तो अच्छा- खासा कमा रहा हूँ।तुम ज्यादा नहीं पढ़ी तो क्या?अनपढ़ भी तो नहीं हो..!"

"बधाई हो आप दादी बनने वाली हैं..!" एक महीने बाद ही रजनी को यह खबर मिली तो घर में खुशी की लहर दौड़ गई। समय भागता रहा और प्रतिज्ञा की गोद में पहले वैभवी और एक साल बाद विभु खेलने लगा।

"जयकरन जी..अब मैं भी रिटायर हो गया हूँ।अनिरुद्ध का परिवार भी पूरा हो गया है।तो क्यों ना हम लोग ईश्वर का धन्यवाद करने के लिए चारों धाम की यात्रा पर जाएं?

"क्यों नहीं धर्मराज जी... इकलौती बिटिया अपने घर में सुख-सुविधाओं से संपन्न है तो धन्यवाद तो बनता है..!"

"ठीक है तो मैं हम चारों की टिकट बुक कर लेता हूँ..!"उस यात्रा पर गए दोनों ही परिवार के मुखिया जिस बस में सवार थे वो बस बद्रीनाथ हाइवे पर पहाड़ धसकने से खाई में चली गई और बारिश के चलते किसी को भी बचाया न जा सका। प्रतिज्ञा और अनिरुद्ध ने अपना फर्ज निभाते हुए पहले बहन फिर भाई दोनों की शादी खूब धूमधाम से की थी।

रचना प्रतिज्ञा से भी अधिक सुंदर और गदराए बदन की नवयौवना थी। उसकी शादी को अभी एक महीना हुआ था। एक दिन रचना आँगन में मौसम की पहली बारिश का मजा ले रही थी।

"भाभी आओ ना कितना मजा आ रहा है..!"

"हा हा हा तुम उठाओ मजे, अभी तुम्हारी उम्र है। एक बार गृहस्थी की जिम्मेदारियाँ बढ़ीं सारे मजे फीके लगते हैं।

"भाभी प्लीज..!"

"मुझे बच्चों को लेने जाना है बस आती होगी बाय..!"प्रतिज्ञा ने दरवाजा खोला तो सामने अनिरुद्ध कार से उतर रहा था।

"अरे आप..?"

"हाँ आज तबियत कुछ नरम सी लग रही है इसलिए जल्दी आ गया। तुम..?"

"बच्चों की बस आने वाली है..!"

"मैं ले आता हूँ..!"

"नहीं आप आराम कीजिए, मैं आकर चाय बनाती हूँ..! प्रतिज्ञा बच्चों को लेने चली गई।

अंदर घुसते ही अनिरुद्ध की निगाह आँगन में बूँदों से अठखेलियाँ करती रचना पर पड़ी। बारिश में भीगकर कपड़े शरीर पर चिपके हुए थे जिससे उसका हर अंग स्पष्ट झलक रहा था। अनिरुद्ध पहले तो दबे कदमों से अपने कमरे में चला आया।पर मन आँगन में नहाती रचना पर रुक गया फिर न चाहते हुए भी वो खुद को रोक नहीं पाया और खिड़की के पीछे से रचना को देखने लगा।

"बस करो रचना क्यों सालों पहले सोए अनिरुद्ध को जगा रही हो।कॉलेज के समय से खूबसूरत लड़कियाँ मेरी कमजोरी रही हैं। बहुत दिनों से कंट्रोल मन का तुम्हें देख कंट्रोल खोता जा रहा है।हाय यह गोरा बदन उस प्रद्युम्न के हिस्से..!"तभी बच्चों की आवाज सुनकर वो बिस्तर पर लेटकर सोने की एक्टिंग करने लगा।

"श्श्श वैभवी विभु बोला ना, चिल्लाना नहीं पापा घर में आराम कर रहे हैं उनका सिर दुख रहा है..!"

"भैया..?हाय वो कब आए?आपने बताया नहीं, मैं तो बेशर्मों की तरह भीग रही थी।

"बाहर निकली तो मिल गए।बस आने वाली थी इसलिए बताने के लिए नहीं आ पाई..!"अब अनिरुद्ध जब भी रचना को देखता तो उससे किसी न किसी बहाने बात करता,उसकी तारीफ में एक दो शब्द कह देता।पहले तो रचना को यह सब अटपटा लगा,पर जब अपनी तारीफ सुनती तो फूलकर कुप्पा हो जाती।

"प्रतिज्ञा मैं क्या सोच रहा था।अब तुम्हारे पास काम कम हो गया है।बच्चे भी दिन में स्कूल चले जाते हैं।उस खाली वक्त में तुम कुछ नया क्यों नहीं करतीं..?"

"जब उम्र थी तो किया नहीं अब क्या करूँगी..?"

"अब बूढ़ी हो गई हो क्या? पैंतीस साल में तो लोग शादी करने का विचार करते हैं।अब रचना को ही देखो, छब्बीस साल की हुई है। फिर सीखने की कोई उम्र होती है क्या?

"पर करूँगी क्या, यह बताओ..?"

"तुम कहती थीं ना.. तुम्हें पेंटिंग का बहुत शौक है।मैंने पेंटिंग की एक क्लास देखी है।नयी खुली है और ज्यादा दूर नहीं है। तुम वहाँ से छूटने के बाद बच्चों को भी ले सकती हो। कहो तो तुम्हारा नाम लिखवा दूँ। दिन में तीन घंटे बस..!"

"तुम इतना कह रहे हो तो ठीक है, मैं तैयार हूँ..!"प्रतिज्ञा क्लास जाने लगी।तो उसकी पीठ पीछे अनिरुद्ध किसी न किसी बहाने घर आने लगा। रचना भी अनिरुद्ध से खुलकर बात करने लगी थी।

"रचना एक बात पूछूँ..?"

"जी भइया..!"

"तुम्हें प्रद्युम्न एक नजर में पसंद आ गया था। या तुम्हारे ऊपर प्रेशर बनाकर यह रिश्ता करवाया गया था..?"

"यह कैसा सवाल है भइया..?"

"भइया कहती हो और बात करने में हिचकिचाती हो.. क्यों? अरे मैं किसी से कुछ कहने नहीं जा रहा। फिर भी नहीं बताना है ना बताओ..!"

रचना कुछ पर मौन रही फिर बोली।"आप किसी को कहोगे तो नहीं..?"

"ना बिल्कुल नहीं..!"

"आपका भाई मुझे जरा भी पसंद नहीं था।सच कहूँ तो आज भी पसंद नहीं है। मैं शुरू से ही एक सुंदर गठीले बदन वाला जीवनसाथी चाहती थी।

"मेरे जैसा..! अनिरुद्ध ने दाँव फेंका।

"हाँ आपके जैसा..जोड़ तभी सही लगता पर पिताजी को उनकी नौकरी अच्छी लगी और कसमें देकर यह शादी करा दी। एक तो पति दिखने में अच्छा नहीं,दूसरा मुझे अपने साथ न ले जाकर यहाँ अकेला छोड़ गया। शादी के बाद भी अकेले रहना था तो शादी क्यों की..?"रचना ने अपने मन की भड़ास निकाली।

"ऐसी बात नहीं है रचना।वो कहकर गया है ना,जब घर की व्यवस्था कर लेगा तो तुम्हें साथ ले जाएगा।वो जानबूझकर नहीं नौकरी के कारण बाहर रहता है..!"

"जब तक घर की व्यवस्था नहीं होगी, मैं तब तक यूँ ही तड़पती रहूँगी?छः महीने हो गए उसे गए..?"रचना के आँसू बहने लगे।

"अरे अरे तुम तो रोने लगी? सॉरी रचना मैं तुम्हें दुखी नहीं करना चाहता था। सॉरी चुप हो जाओ..?"अनिरुद्ध ने आगे बढ़कर उसके कंधे को सहलाया तो रचना ने उसे ऐसा करने से नहीं रोका।

"मैं तुम्हारी तड़प समझ सकता हूँ रचना।यह खूबसूरती यूँ हीं तड़पने के लिए नहीं है। मैं प्रद्युम्न की जगह होता तो तुम्हें कभी अकेले नहीं छोड़ता..!"कहते हुए अनिरुद्ध ने उसे गले लगा लिया।अनिरुद्ध की बलिष्ठ  भुजाओं में जकड़ते ही रचना के जज्बात मचलने लगे। उसने उस बंधन से छूटने की कोशिश नहीं की। अनिरुद्ध अपने मकसद में कामयाब हो गया।दो मासूमों के विश्वास की बलि चढ़ाकर अब तो रोज ही मर्यादा के बाँध टूटने लगे।

"अनिरुद्ध कल लीला काकी मिलीं थीं।वो कह रही थीं कि अब तुम रोज दिन में आने लगे हो..?"

"इन आस-पड़ोस वालों को दूसरे के घर में झाँके बिना चैन नहीं पड़ता? प्रतिज्ञा पास की ब्रांच में एक प्रॉजेक्ट चल रहा था।आज खत्म हुआ है।पास में था तो सोचा ठंडा खाना खाने से बेहतर घर जाकर गर्म खाना खाऊँ..!"

"हाँ भाभी भइया सही कह रहे हैं।आप तो मुझे मिलवाओ कौनसी लीला काकी हैं जो प्रपंच रच रही हैं..?"

"मैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा..?"रचना को अनिरुद्ध का समर्थन करना प्रतिज्ञा को खटक गया।दूसरे दिन वो घर की दूसरी चाबी लेकर क्लास के लिए निकली और अनिरुद्ध के लंच टाइम में घर वापस आ गई और बेल बजाने की जगह ताला खोलकर चुपचाप अंदर चली आई। रचना के कमरे में आपत्तिजनक हालत में दोनों को देख वो देखकर गिर ही पड़ती पर कैसे भी हिम्मत बटोर कर अपने कमरे में चली आई।

रचना के कमरे से कभी हँसी की,तो कभी भावनाओं के आवेग की आवाजें प्रतिज्ञा के ह्रदय में शूल चुभो रहीं थीं।काफी देर बाद जब यह खेल थमा तो अनिरुद्ध कपड़े पहनकर जाने लगा तो पीछे से आवाज आई।

"तो यह था तुम्हारा गर्म खाना..?"

"तुम..?"

"हाँ मैं..! तुम्हें क्या लगा,कल तुम दोनों ने जो बहाना बनाया वो मुझे बेवकूफ बनाने के लिए काफी था..? पंद्रह साल दिए हैं इस घर को मैंने, कौन कब झूठ बोल रहा है साफ समझ जाती हूँ। रचना तुम अपना सामान पैक करो, तुम्हारे पापा तुम्हें लेने आ रहे हैं।अगले महीने प्रद्युम्न भी आ रहा है।वो तुम्हें अचानक आकर सरप्राइज देना चाहता था मगर तुमने मुझे ही सरप्राइज दे दिया..?"

"भाभी मुझे माफ कर दो .. मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। पता नहीं कब कैसे यह सब हो गया।आप पापा को कुछ मत कहना प्लीज भाभी...वो मुझे जिंदा गाड़ देंगे भाभी...! रचना रोने लगी।

"एक शर्त पर..!"शांत सपाट लहजे में प्रतिज्ञा बोली।

"कैसी शर्त..?"तुम चाहती हो कि तुम्हारी यह शर्मनाक हरकत राज रहे तो तुम अब प्रद्युम्न के आने पर ही आना।वो सिर्फ एक रात के लिए आ रहा है। चुपचाप उसके साथ जाओ और फिर कभी उस बच्चे को धोखा देने के बारे में सोचना भी नहीं। तुम्हें लगा होगा,मैं आम औरतों जैसे रोऊंगी, चिल्लाऊँगी? नहीं रचना मेरे ससुर धर्मराज जी इस पूरे इलाके के सबसे इज्जतदार व्यक्ति थे। मैं उनके बेटे की करतूत पर तमाशा करके उनका नाम खराब नहीं करना चाहती..!"

"प्रतिज्ञा मुझसे...

"मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई अनिरुद्ध। दिव्या जो इसी इलाके में अपनी ससुराल में सम्मान से रह रही है।यह बात बाहर निकली तो लोगों के ताने उसे जीने नहीं देंगे।मेरे दो नहीं चार बच्चे हैं। मैंने इस घर को दिल से अपनाया है। मैं मेरे घर में तमाशा नहीं चाहती।तुम्हारा फैसला मैने कर दिया है रचना। और अनिरुद्ध तुम भी सुन लो..! प्रतिज्ञा सीधे आप से तुम पर आ गई।

"तुम आज से मेरे लिए एक अजनबी हो। तुम अब उस कमरे में रहोगे जहाँ बाबूजी रहते थे।मेरे बच्चे पढ़ाई में, खेल-कूद में हर बात में अव्वल हैं। तुम्हें तलाक देकर तुम्हें नहीं मैं मेरे बच्चों को सजा दूँगी इसलिए...

"थैंक्स प्रतिज्ञा..!"

"थैंक्स किसलिए?तुम्हें तलाक न देकर मैं तुम्हें माफ नहीं कर रही अनिरुद्ध..!"मैंने यह फैसला बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए लिया है। तुम्हें तलाक दूँगी तो तुम तुरंत दूसरी शादी कर लोगे जो मैं नहीं चाहती। मैं अब अच्छी तरह से समझ गई कि औरत तुम्हारी कमजोरी है। और मैं नहीं चाहती समाज मेरे बच्चों को अय्याश बाप की औलाद का ताना मारे,उनका जीना हराम करे..!"

"मुझे इतनी बड़ी सजा मत दो प्रतिज्ञा।बस एक बार बस एक बार माफ कर दो..?"

"अब माफी नहीं अनिरुद्ध... अब हम कानूनी तौर पर अलग होंगे पर बच्चों के कुछ बन जाने के बाद।तब तक तुम्हें मेरे हर फैसले को मानना होगा।नहीं तो मैं तुम्हें तुम्हारे रिश्तेदारों, बच्चों और पूरे समाज के सामने नंगा कर दूँगी।सब मुझे अच्छी तरह समझते हैं और तुम्हे भी अनिरुद्ध..तभी तो कल काकी ने स्पष्ट इशारा किया था। और तुम भी रचना.. मेरी यह बात याद रखना और वही करो जो मैं कह रही हूँ ।जाओ बैग पैक करो..!"

"जी...!"रचना अपने कमरे में चली गई और पैकिंग करने लगी। उसके पापा आए तो प्रतिज्ञा ने उन्हें किसी बात की भनक नहीं लगने दी। रचना ने इस कांड को सबक मानकर प्रद्युम्न को दिल से अपना लिया और जल्दी अपने जैसी खूबसूरत बेटी की माँ बन गई ।

          अनिरुद्ध ने कई बार प्रतिज्ञा के करीब आने की उसे मनाने की कोशिश की पर प्रतिज्ञा ने अपनी प्रतिज्ञा नहीं छोड़ी। बच्चे क्लास दर क्लास आगे बढ़ते रहे। बच्चों के सामने हँसने-खिलखिलाने वाला कपल पीठ पीछे अजनबियों की तरह जी रहा था।आज वैभवी के रिजल्ट ने उसके गले में लिपटी रस्सी की एक गाँठ ढीली कर दी दूसरी खोलने के लिए छटपटाती प्रतिज्ञा बार बार घड़ी की ओर देख रही थी।

"मम्मा..!!! मम्मा क्या सोच रही हो..?"

"अरे तू कब आया..?"

"मम्मा यह देखो...इस बार भी टॉप ...!!माँ याद है ना मुझे एक तारीख को मुम्बई भी रवाना होना है।वैभव का मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कैंपस सिलेक्शन हो गया था।तीन तारीख को उसे जॉब जॉइन करनी है।

"हाँ हां याद है बेटा....वहाँ तेरे फूफा जी ने एक टू बीएचके फ्लैट भी देख लिया है और रेंट भी दे दिया।उन्होंने वैभवी के लिए भी बात कर ली है।वो भी वहीं रहकर प्रेक्टिस करेगी। मैं भी तुम दोनों का ख्याल रखने के लिए साथ चल रही हूँ।

"आप और फिर पापा...?"

"मैंने छः महीने पहले तलाक की अर्जी दी थी। कोर्ट का दिया छः महीने का वक्त निकल गया।कल फाइनली हमें तलाक मिल जाएगा..!"प्रतिज्ञा ने बिना रिएक्शन अपनी बात रखी।

"तलाक..??? मम्मा तलाक किसलिए?यह अचानक आप कैसी बात करने लगीं? तलाक क्यों चाहिए आपको मम्मा? बोलो मम्मा तलाक की कोई वजह भी तो होनी चाहिए..?"वैभव ने पूछा।

"वजह बीस साल पुरानी और अब इतनी वजनी हो गई है विभू कि कुछ दिन बाद शायद मेरा दम ही घुट जाए..!"कहते हुए प्रतिज्ञा रोने लगी फिर एक एक करके उसने अनिरुद्ध और रचना की हरकतों का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया।

"अब बोलो... मैं गलत कर रही हूँ..?"

"नहीं मम्मा आप एकदम सही कर रही हो। आपको तो यह फैसला बहुत पहले ले लेना चाहिए था। आप रुकी क्यों रहीं..?"

"तुम दोनों को उस उम्र में मैं क्या समझाती? इसलिए तुम्हारे भविष्य के लिए बच्चों चुप रह गई.. मैं तुम्हें या वैभवी को लेकर उस समय अलग हो जाती तो तुम दोनों के साथ और भी कई ज़िंदगियाँ तबाह हो जातीं।यह दबा हुआ दर्द मेरे लिए किसी हलाहल से कम नहीं था।जो मैंने तुम सबकी भलाई के लिए पिया।अब नहीं पी सकती। मैं जल्दी ही इस कैद से आजाद होना चाहती हूँ..!"

"मैं तुम लोगों के बिना कैसे रहूँगा..!

"जैसे अभी तक रहे अनिरुद्ध। मुझमें कोई फीलिंग बाकी नहीं जो तुम्हारी किसी बात से फर्क पड़े? मैं तो तब भी खोखली हो गई थी और आज भी खोखली ही हूँ।हाँ मुझे एक बात की तसल्ली रहेगी कि अब तुम्हारी इस झुकती काया से मेरी पीठ पीछे भी कोई आकर्षित नहीं होगा।अब तो समझ आ रहा होगा कि कुछ पल की मौज ने बीस साल सिर्फ दर्द ही दिया है..!"

"तलाक मंजूर होते ही प्रतिज्ञा अपने बच्चों के साथ खुली हवा में साँस लेने के लिए उड़ गई। अनिरुद्ध उस खाली घर में अपनी गलतियों को याद करके रोता रहा गया।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️

चित्र गूगल से साभार


Monday, February 27, 2023

ज़िंदगी का पाठ

चाची मेरी सफेद रंग की शर्ट नहीं मिल रही,जरा ढूँढ दो.!सूरज चिल्लाते हुए बोला।

"खुद ढूँढ लो,मैं छोटू को दूध पिला रही हूँ।सारे दिन कोई बहू तो कोई चाची करके काम बताता रहता है। ऊपर से शीला दीदी अपनी फरमाइश लेकर आ जाती हैं जैसे मैं इंसान नहीं मशीन हूँ...!"रमा बड़बड़ाने लगी।

"राघव पहन गया तेरी शर्ट सूरज..आज से उसकी परीक्षा शुरू हो गई है। सुबह सुबह ड्रेस की शर्ट पर कौवे ने बीट कर दी, मुझे दूसरी मिली नहीं तो तेरी पहना दी..! शीला ने आँगन से चिल्लाकर कहा।

"क्यों दीदी.. आज बस राघव की परीक्षा है। सूरज की परीक्षा नहीं है ? आपने एक बार भी नहीं सोचा वो क्या पहनकर जाएगा..?"सीमा यह सुनते ही चिढ़कर बोली।

"मुझे पता है सूरज की भी परीक्षा है।मैंने सोचा वो दोपहर में जाएगा,तब तक तो मैं राघव की शर्ट धोकर सुखा दूँगी। वैसे उसकी दूसरी शर्ट भी मिल गई है।तुम वो सूरज को पहना सकती हो.!"

"कहाँ राघव कहाँ सूरज?सूरज की शर्ट उसको कहाँ बनी होगी? आपने पूछने की भी जरूरत नहीं समझी।बेचारा बच्चा कसे कपड़ों में कैसे तीन चार घंटे निकाल रहा होगा? उसकी दूसरी गन्दी पड़ी है, नहीं तो पहना देती..!सीमा बड़बड़ाई।

"तुम्हारे कहने का मतलब मेरा राघव मोटा है?" शीला चिढ़कर बोली।

"मैंने तो ऐसा नहीं कहा..!

"मैं सब समझती हूँ सीमा. तुम मुझे नीचा दिखाने का एक मौका नहीं छोड़ती। तुम मेरे बेटे को तो ताने मत दो..!शीला ने आँसू बहाने शुरू कर दिए।

"आपको सही हमेशा ही गलत लगता है दीदी। मैंने कुछ भी ऐसा नहीं कहा जो रोना धोना शुरू कर दिया।आप हर बात का उल्टा ही मतलब निकालती हो..!

"मैं सब समझती हूँ, पागल नहीं हूँ..!"

"ठीक है अब आपको जो समझना हो समझती रहो ।चल सूरज इस क्लेश में तेरी परीक्षा छूट जाएगी हुंह..! सीमा मुँह बिचकाकर चली गई।

"एक सीमा दीदी ही हैं इस घर में जो शीला दीदी की दादागिरी का मुँहतोड़ जवाब देतीं हैं।वो जब से यह यहाँ आईं हैं,हम सबका जीना हराम कर रखा है। पता नहीं कौनसी घड़ी में इनसे पीछा छूटेगा..!रमा कमरे से सारा वार्तालाप सुन मन ही मन बोली।

"अब चुप क्यों हो अम्मा..तुम्हारी बहू रोज किसी न किसी बहाने से मुझे चार बातें सुनाती है।और तुम चुपचाप बैठी रहती हो।जब मेरी सास मुझे कुछ कहती थी तब तो तुम रोज मुझे ज्ञान देतीं थीं। ऐसा कर, वैसा कर,अब तुम्हारा ज्ञान कहाँ गया..!

"क्या कोहराम मचा रखा है घर में? दीदी तुम अपना घर तो सँभाल नहीं पाईं,हमें तो चैन से रहने दो।

"वाह बलदेव तुम भी मुझे ही दोष दे रहे हो ? तुमने सुना? अभी अभी सीमा मेरे राघव को मोटा बोलकर गई है..!"शीला तेज आवाज में बोली।

"सब सुना दीदी..सीमा ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो आप क्लेश करने लगो? आपने अपना घर तो बर्बाद कर दिया अब हमारे घर की शांति को क्यों ग्रहण लगा रही हो..?

"शांत हो जा बलदेव..जा जाकर खाना खाले..! यमुना ने बीच में रोकते हुए कहा।

"ऐसे क्लेश में कौर भी गले से न उतरेगा अम्मा। मेरा खाना तुम दुकान पर ही खाना भिजवा देना। और हाँ दीदी अब यह शोर वहाँ तक न आए,ध्यान रहे। तमाशा बना दिया मोहल्ले में हमारा..!"बलदेव घर का झगड़ा देख गुस्से से तमतमाता वापस चला गया।

"देख लो अम्मा..जोरू का गुलाम हो गया है तुम्हारा बेटा। एक बार भी नहीं कहा कि सीमा ने जो कहा गलत कहा।तू भी अब कैसे अनजान बनी बैठी हो, जैसे तुमने कुछ किया ही नहीं...!

"तूने जो कहा वही मैंने सुना और माना।सच क्या, झूठ क्या,यह तो तू जाने शीला?तू मुझे क्यों दोष दे रही है..?

"तुझे नहीं दू तो किसे दूँ दोष?तू ही तो रोज एक एक घंटे मुझे फोन पर नया ज्ञान देती थीं..!

"तू ही रोज सास की बुराई,ननद की शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जाती थी। मैंने तो बस उनसे निपटने के तरीके बताए थे। मैंने तो तुझसे कभी नहीं कहा कि घर छोड़कर चली आ और यहीं रहो..? शीला की माँ यमुना बोली।

"वाह अम्मा पहले चिंगारी लगाओ फिर कहो कि हमने क्या किया? अम्मा तुमने पहले दिन से मेरे कान भरने शुरू किए। शुरू से मेरे मन में सास के खिलाफ जहर भरा। रत्ना तो कुछ भी नहीं कहती थी फिर भी तुमने मुझे उसमें गलतियाँ दिखाई और कह रही हो मैंने क्या किया..?"

"अम्मा ने कहा सो कहा दीदी..आपका दिमाग कहाँ गया था..? चप्पल उतारते सीमा बोली। फिर राघव को अंदर भेजते हुए कहा "जाओ छोटी मामी से खाना लेलो..!"सीमा रोज स्कूल में सूरज को छोड़कर राघव को साथ लेकर आती थी।

"क्या कहा, फिर से कहना सीमा..? शीला ने पूछा।

"दीदी आपकी और हमारी शादी एक साल के अंतर से हुई।हम चार लोग,रमा तीन, अम्मा बाबू और दो जने आप,हम लोग तो इतना बड़ा परिवार देख मायके जाकर नहीं बैठे..?आपके घर हर सुविधा, हमें सब काम हाथों से करना पड़ता है फिर भी घर छोड़कर नहीं गए..? अपने सुखों को चिंगारी आपने लगाई है..!"सीमा गुस्से से बोली।

"चार दिन मायके में क्या बैठ गई, मैं तुम सबको बोझ लगने लगी। अभी मेरे अम्मा बाबू जिंदा है और मैं उनके दम पर हूँ यहाँ..!

"उसके बाद?उसके बाद क्या करोगी ,यह सोचा आपने..? दीदी यह रोज रोज का कलह हमारे रिश्तों में कड़वाहट बढ़ा रहा है..!

"कड़वाहट तुम लोगों के दिल में भरी हुई है। तुम दोनों ने मेरे भाइयों को मेरे खिलाफ भड़काया और अम्मा को भी न जाने कौनसी पट्टी पढ़ा दी जो बेटी बोझ लगने लगी..!

"आपको सभी गलत क्यों लगते हैं दीदी?
कभी अकेले में खुद की गलतियों पर सोचा आपने? दीदी महेश जी अभी भी आपको बार बार बुला रहे हैं..!

"मैंने कहा ना कि जब तक वो मेरी शर्तें नहीं मानते, मैं वापस नहीं जाऊँगी..!"

"मत जाओ..हमें क्या,कल को उन्होंने भी मुँह मोड़ लिया तो फिर रहना जीवन भर अकेली और राघव को भी हर चीज के लिए तरसाना।मेरी मानो अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा,लौट जाओ अपने घर दीदी..?"सीमा कहते हुए अंदर चली गई।

"अम्मा तुमने तो बड़ी ठसक से कहा था कि मेरी बेटी हम पर भार नहीं,हम उसे जीवन भर खिला सकते हैं।आज सीमा इतना कुछ सुना गई फिर भी तुम चुप बैठी हो..?

"बेटी जब अपने भाईयों की खुशी पर ग्रहण लगाए तो माँ को अपना फैसला बदलना पड़ता है शीला। सीमा की बात मानकर चली जा वापस..!

"यह तू कह रही है अम्मा..?माँ के बर्ताव से दुखी हो शीला कमरे में जाकर फूट फूटकर रो पड़ी।उसे आज अपने घर की याद आने लगी।

"महेश मेरी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश पूरी करते थे। मेरे परिवार ने मुझे दिल से अपनाया और मैंने उस सुख को ठोकर मार दी,यह कहकर कि रत्ना घर में रहेगी तो मैं नहीं रहूँगी..!"अब जब मेरे भाई भाभी मुझे रखने को तैयार नहीं।तब मुझे रत्ना की पीड़ा समझ आ रही है..!

शीला की ननद रत्ना का पति शराब की लत से असमय काल की भेंट चढ़ गया था। बेटे की इस गलत आदत को उसकी मौत का जिम्मेदार न मान ससुराल वाले रत्ना को दोषी मानकर मायके छोड़ गए कि उनकी बेटी के पैर पड़ते ही उन्होंने अपना बेटा खो दिया।

"मैं उस मासूम लड़की को घर से निकालने की ज़िद ठानकर अपना घर छोड़कर आज सबकुछ होते हुए इनकी दुत्कार सुन रही हूँ।आज मेरे कारण राघव सबकुछ होते हुए भी यहाँ सबका उपेक्षित व्यवहार सह रहा है।बस अब नहीं, अपने सुखों को मैंने चिंगारी लगाई और मेरी माँ ने उसे हवा दिया। अब उस आग में मेरी खुशियाँ पूरी तरह स्वाहा हो, उससे पहले मुझे माँजी से, महेश से अपने किए की माफी माँगनी होगी..! काफी देर तक रोने के बाद शीला ने कुछ सोचते हुए आँसू पोंछ लिए और अपने पति महेश को फोन लगा दिया।

"हैलो...!

"महेश...!"शीला महेश की आवाज सुनकर रोने लगी।

"क्या हुआ शीला..रो क्यों रही हो? राघव कैसा है?घर पर सब ठीक है...?"

"मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई जो अपना घर छोड़कर चली आई। मुझे माफ कर दो महेश..! शीला सिसकते हुए बोली।

"क्यों किसी ने कुछ कहा क्या?घर पर किसी से झगड़ा हुआ है क्या..?"महेश ने पूछा।

"नहीं महेश आज मेरा हकीकत से सामना हुआ है।अब मुझे यहाँ नहीं रहना,मुझे अभी अपने घर आना है महेश। तुम मुझे आकर ले जाओ। मैं समझ गई कि शादी के बाद लड़की की इज्जत उसके ससुराल में रहने से होती है।मायका तो फेरे होते ही पराया हो जाता है..!

"तो फिर देर किस बात की, अटैची उठाओ और बाहर आ जाओ। मैं अम्मा के पास बैठा हूँ..!

"तुम यहाँ ?शीला ने खिड़की से झाँका तो महेश अम्मा के साथ चाय पी रहा था और सीमा राघव को खाना खिला रही थी।

"तुम यहाँ कब आए..?

"जब आप रोते हुए अंदर चली गईं तो मैंने इन्हें फोन करके बुला लिया था। मुझे समझ आ गया था कि आज आपको सही गलत समझ आ गया है।

"तो यह सब तुम लोगों की चाल थी..?शीला ने पूछा।

"दीदी चाल नहीं,बस आपको यह अहसास दिलाना था कि अब यह घर आपका नही बल्कि जहाँ आपका पति वो घर आपका है। दीदी हमारी बदतमीजियों को क्षमा कर देना..! हमें आपको आपकी गलतियों का अहसास करवाना था। दीदी आप बुरी नहीं बस आपके देखने का नजरिया गलत था..!

"हाँ बिटिया सीमा बहू के समझाने पर मुझे भी अपनी गलतियों का अहसास हुआ। मुझे समझ आ गया कि बिटिया को ससुराल वालों के खिलाफ भड़काना, उसके सुख में चिंगारी लगाने जैसा है..!

"अम्मा.. तुम ही नहीं,गलत तो मैंने भी किया है। मैंने रत्ना के दुख को नहीं समझा।अब जब खुद को एक एक चीज के लिए भाईयों के आगे हाथ फैलाने की बारी आई तो मुझे अहसास हुआ कि मेरी तो ऐसी कोई मजबूरी नहीं,रत्ना की तो मजबूरी है।महेश मुझे मेरी गलती समझ आ गई। अब मैं रत्ना को कभी कुछ नहीं कहूँगी..!

"दीदी हम लोगों से जो भी गलती हुई माफ कर देना।तीज-त्यौहारों पर हक से आते रहना..!रमा ने पैर छुते हुए कहा तो शीला ने रमा और सीमा को गले से लगा लिया।

"मैं बड़ी होने का फर्ज भूल गई थी।आज मेरी छोटी भाभियों ने सही मायने में ज़िंदगी का पाठ पढ़ा दिया। मैं तुम दोनों की सदैव आभारी रहूँगी।चलती हूँ अम्मा..! शीला को गृहस्थ जीवन में फिर से प्रवेश करते देख यमुना की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे।

*©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित




Thursday, February 16, 2023

स्वार्थ की आँधी


 "उफ यह आँधी..! 


"काकी द्वार बंद करलो, बहुत तेज आँधी  आने वाली है..!"आवाज सुनकर कामना चौंक कर देखती है तो सामने की छत से कपड़े समेटती बंशीलाल की बेटी निर्मला चिल्ला रही थी।


"काकी कहाँ खोई हो? बहुत तेज आँधी आने वाली है। आसमान धूल से भर गया है।घर गंदा हो जाएगा ...!


"आने दे निर्मला,तू भीतर जा...!


"काकी मैं तो कपड़े लेकर भीतर ही जा रही थी।आपको आँगन में बैठा देख रुक गई।आप पहले द्वार तो बंद कर लो, फिर मैं चली जाऊँगी।देखो तेज हवाएं चलने भी लगीं..!


"यह हवाएं मन की आँधी से तो तेज ना होगी बिटिया..? 


"क्या कहा काकी..?"


"कुछ नहीं तू जा अंदर जा, कहीं कुछ उड़ उड़कर न लग जाए..!


"जा ही रही हूँ..!"निर्मला कपड़े समेट कर अंदर चली गई। कामना दरवाजा बंद करते हुए मन में सोचने लगी।"जब ज़िंदगी की खुशियों को ही स्वार्थ की आँधी उड़ा ले गई ,तो इस आँधी से कैसा डर..?


धूल का गुबार लेकर चलती हवाएं दरवाजे से टकराकर अजीब सी आवाजें पैदा कर रहीं थीं।


"यह आँधी तो कुछ समय की है।थम जाएगी।जाते जाते अपने निशा पीछे छोड़ जाती हैं।लोग उन्हें पहले की तरह करने की कोशिश में लग जाएंगे और कर भी लेंगे।पर मैं क्या करूँ?मैं कैसे अपने स्वप्न महल से स्वार्थ के निशान मिटाऊँ, कैसे?" बीते कल की बातें याद कर कामना की आँखों से आँसू बहने लगे।


"कामना बहू...!"


"आई माँजी..! कामना साड़ी के पल्लू से हाँथ पोंछती हुई आई।


"कामना बहू इनसे मिलो मेरे भाभी के दूर के रिश्तेदार बैजनाथ हैं। मुकुल के रिश्ते की बात करने आए हैं...!"


"जी नमस्कार ..! कामना हाथ जोड़कर बोलीं।


"यह बिटिया पूर्वी का फोटो, आराम से देख लेना और सबको दिखा देना। अभी इनके लिए जलपान की व्यवस्था करो..!


"जी माँजी..!जलपान की व्यवस्था करती कामना ने एक नजर पूर्वी की तस्वीर पर डाली। लड़की तो बहुत सुंदर है।जगवीर और मुकुल की हाँ हो जाए तो जल्दी ही चांद सी बहू घर आ जाए..!


"चलता हूँ बहन जी..जो भी निर्णय हो बताना..!चाय पीकर बैजनाथ उठ खड़े हुए।


"जी भाईसाहब.. नकुल के लिए भी कोई लड़की देखे रहना। जगवीर और बच्चे देख लें,तो बात आगे बढ़े।बहू मुकुल की फोटो हो तो दे दो,नहीं तो मोबाइल पर भिजवा देना नंबर मेरी डायरी में लिखा है..!


"अभी लाई..!कामना ने मुकुल की फोटो लाकर दे दी।मुकुल को पूर्वी बहुत पसंद आई। दोनों पक्षों की हाँ होते ही एक अच्छा सा मुहूर्त देखकर शादी की तारीख तय हो गई और पूर्वी बहू बनकर घर में आ गई।


"कामना बहू से भी काम कराया कर।यह क्या जब भी वो कुछ करने जाती है,तू मना कर देती है..!"


"माँ काम के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है।बच्ची है,नई नई शादी हुई है। कुछ दिन आराम करले, फिर उसे ही सब करना है..!"


"अति हर बात की बुरी होती है। अभी तू आदत खराब कर रही है।बाद में देखना तेरा यही प्रेम इस स्वप्न महल की खुशियाँ लील जाएगा।नकुल भी यह सब देख रहा है।एक बार उसकी शादी होने दे तब तुझे पता चलेगा।काम को लेकर रोज घर में झगड़े होंगे...!"


"ऐसा कुछ नहीं होगा माँजी..! कामना बहू को बेटी की तरह लाड़ करती।पूर्वी ने भी अब काम करने की कोशिश करना बंद कर दिया।साल भर बाद ही नकुल की भी शादी हो गई।तारा घर में बहू बनकर आ गई।


"तुम दोनों मिलकर घर के काम संभालो।माँजी बीमार रहती हैं।मुझे उन्हें भी संभालना रहता है।अब मुझसे इतनी ज्यादा मेहनत नहीं होती..!"नकुल की शादी को अभी तीन महीने ही हुए थे। कामना ने बहुओं को काम करने के लिए कह दिया।


"माँ भाभी की शादी को एक साल हो गया।आप उनसे कहो कुछ दिन घर की पूरी जिम्मेदारी वो उठाएं।तारा को आए अभी तीन महीने ही हुए हैं।आपने भाभी को इतना आराम दिया तारा के साथ उपेक्षित व्यवहार क्यों..?"नकुल माँ का आदेश सुनते ही विरोध में बोला।


"नकुल मुझे तारा भी उतनी ही प्रिय है जितनी पूर्वी, तेरी दादी की तबियत और मेरी बढ़ती उम्र क कारण अब मुझसे उतना काम नहीं होता..! कामना नकुल के व्यवहार से दुखी होकर बोली।


"मेरी बातों को नजरंदाज करने का देखा नतीजा? पहली कामचोर हो गई और दूसरी को उसके पति ने भड़का दिया। तेरे बेटे मेरे जगवीर से नहीं ,जो मां का सुख देखें।देखे रंग? उन्हें माँ नहीं पत्नियों की ज्यादा चिंता है...! कामना क्या कहती,माँ सच ही तो कह रही थीं।


ऐसे ही समय गुजरता गया। पहले माया देवी फिर जगवीर इस दुनिया को अलविदा कह गए। कामना एक के बाद एक दो प्रियजनों को खो देने से टूट गई।


अब उससे जितना होता काम करती और बहुओं पर छोड़ देती। शादी के बाद नकुल की कही बातें तारा के हृदय में घर कर गईं थीं‌। वो कामना की हर बात का उल्टा जबाव देती थी।


"तारा मेरे सिर में बहुत दर्द है। क्या चाय बना दोगी..?"


"आपकी लाड़ली आराम कर रही है उससे बनवा लीजिए..!


"तुम्हें नहीं बनानी मत बनाओ, मुझे क्यों बीच में घसीट रही हो..? पूर्वी अपना नाम सुनते ही बाहर आई।


"कोई मत बनाओ, शांत रहो, मुझे नहीं चाहिए चाय!मेरी ही गलती जो तुम दोनों को बेटी बनाने चली थी..! कामना की बात सुनकर तारा उठी और अपने कमरे में चली गई।कामना चुपचाप लेट गई।


"मुकुल माँ से कहो घर का बँटवारा कर दें।तारा अपना हिस्सा संभाले और हम अपना हिस्सा। मैं अब और ताने नहीं सुन सकती..!


"अच्छा बाबा पहले तुम शांत हो जाओ।मैं  अभी जाकर माँ से बात करता हूँ..! मुकुल ने पूर्वी को समझाते हुए कहा।


"माँ सिर दर्द हो रहा है..? मुकुल माँ के सिरहाने बैठकर सिर दबाते हुए बोला।


"हम्म..!"


"पूर्वी माँ के लिए अदरक वाली चाय बना लाओ...!मुकुल ने पूर्वी को आवाज दी तो तारा के कान खड़े हो गए।


"जी अभी लाई...!पूर्वी ने जबाव दिया।


"माँ तुम्हारी बहुएँ काम को लेकर बे बात उलझती रहती हैं।आप भी कब तक इन दोनों की चिक चिक बर्दाश्त करोगी?


"अचानक से तुम्हें यह सब कैसे दिखाई देने लगा बेटा..?


"अचानक नहीं माँ, मैं आपकी तकलीफ देखकर कई दिनों से आपसे बात करने की सोच रहा था..! 


"ऐसी कौनसी बात है जिसे करने के लिए तुम्हें सोचना पड़ रहा है..? कामना ने कुछ सोचते हुए पूछा।


"माँ क्यों न घर का बँटवारा कर ले, नकुल भी अपनी गृहस्थी में खुश, मैं भी अपनी गृहस्थी में खुश,ना कोई झगड़ा होगा न बिना बात बहस होगी..!"मुकुल ने अपनी बात रखी।


"और मैं ? मैं किसकी गृहस्थी के हिस्से में आ रही हूँ बेटा..? कामना ने शांत लहजे में पूछा।


"आपका क्या माँ,जब तक मेरे पास रहना है तो हमारी होकर रहना।जब नकुल के पास रहो तब तक उनकी होकर रहना..!


"मतलब यह तुम्हारे साथ रहूँ तो छोटे से संबंध न रखूँ?उसके बच्चों से न बोलूँ? और उसके पास रहूँ तो तुमसे और तुम्हारे बच्चो से दूर रहूँ..?"कामना यह सुनकर हतप्रभ रह गई।


"आप तो बिना समझाए समझ गईं माँ.. मैं यही कहना चाह रहा था कि रोज रोज की वही बातें,वही किस्से अब खत्म हो, वही हम सबके लिए अच्छा है..!


"इस आर-पार वाले किस्से में मेरे हिस्से क्या आएगा...?


"आप नकुल के पास रहो या मेरे साथ, क्या फर्क पड़ता है?आप रहोगी अपने इसी घर में हमारे साथ, हमारे घर में..!" मुकुल ने कहा।


"बँटवारे की अवधि में एक बेटे के साथ रहकर दूसरे से अजनबी बनकर?अपनी ममता, अपने स्वाभिमान को मारकर टुकड़ों में ज़िंदगी मुझे नहीं जीना।बूढ़ी हूई हूँ, लाचार नहीं।जब मेरे बेटे ही पराए हो गए तो अपने स्वाभिमान की बलि चढ़ाकर खुश रहने का दिखावा क्यों करूँ ? 


"माँ आप हमें पराया कह रही हो। अपने बेटों को..?


"हाँ सही सुना,जो बच्चे अपने स्वार्थ के लिए माँ को बाँटे,वो पराए ही है। मैं भी परायों के साथ नहीं रहना चाहती और मेरे जीते जी मेरे स्वप्न महल का बँटवारा नहीं होगा।रही बात खर्चें की तो मेरा पति मेरे लिए अपनी पेंशन और  प्रॉपर्टी छोड़ गया है।मुझे तुम दोनों से वो भी नहीं चाहिए..!"


"रहने दीजिए मुकुल.. इन्हें इनकी संपत्ति का बहुत घमंड है,तो रहें अकेले।मैं अब  इस घर में नहीं रहूँगी।इन्हें अकेले इस घर में कुँडली मारकर बैठे रहने दो।अंत समय हम ही याद आएंगे..!"पुर्वी की हठ पर मुकुल अलग रहने चला गया।


"माँ भैया भाभी ने सही नहीं किया। आप दुखी मत हो! हम हैं ना,हम करेंगे आपकी सेवा। तारा अबसे माँ का ध्यान तुम्हें रखना है। और यह ध्यान रहे उन्हें कोई तकलीफ़ न हो..?"मुकुल के घर छोड़कर जाने के बाद नकुल ने कहा।


"अब से? क्यों बेटा इससे पहले तुम्हे माँ नहीं की तकलीफ नहीं दिखी?यह बदलाव अचानक कैसे ?


"माँ मुझे तो हमेशा ही आपकी चिंता रही है।आप ही हमेशा भैया भाभी के लिए मरती रहीं ..!"


"अच्छा तुम एक माँ की ममता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हो?"


"माँ मेरे कहने का यह मतलब नहीं था। मैं तो बस सच कह रहा था..!"कामना ने बीच में ही टोक दिया।


"बस बेटा और दिखावा सहन नहीं होता।जो बहू माँगने पर भी एक कप चाय नहीं देती। वो मेरी सेवा करेगी?जो बेटा माँ की परेशानी नजरंदाज कर अपनी खुशियों को पहले रखे, उससे क्या आशा?रहने दो बेटा, तुम्हें जाना है तो तुम भी जाओ, मुझे अकेला छोड़ दो..!


"माँ आप हमें क्यों दोष दे रही हो?यह जो हो रहा है,उसके लिए हम नहीं आप ही जिम्मेदार हैं..!


"वाह बेटा यह सही कहा..!आज मेरा घर ही नहीं टूटा,दिल भी टूट गया।पाँच साल पहले जिस क्लेश का तुमने बीज बोया, उसके काँटे मुझे चुभ रहे हैं..!"


"गलत क्या कहा था माँ। तुमने भाभी को इतना आराम दिया और तारा को आते ही काम सौंप दिया...!"


"तुम्हें यह दिखाई दिया?दादी लकवाग्रस्त होकर पूरी तरह मेरे सहारे हो गईं,वो नहीं दिखाई दिया?मैं बहू को सुख देती या अपनी सास के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाती.. ? 


"वो मुझे नहीं पता,आप भाभी को भी तो काम के लिए कह सकती थीं..!


"माँ में और भाभी में फर्क होता है नकुल। मैंने जो पूर्वी के साथ किया,वो भला तारा के साथ कभी करती ? नहीं करती..!


"आप तो उन्हीं का पक्ष लेती रहीं और लेती रहोगी..!"


"मैं तुम्हें सफाई नहीं देना चाहती। मैं और तेरे पिता तुम लोगों की तरह स्वार्थी बेटा बहू नहीं थे।उस समय मैंने वही किया जो मुझे सही लगा।उस समय मेरी सास को मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी।मैंने उन्हें चुना...!


"देख लिया नकुल.. अभी भी अपने को ही सही ठहरा रहीं हैं।मुझे भी कोई शौक नहीं इनके साथ रहने का,तुम्हीं करो सेवा। इनके ऐसे एटिट्यूड से इनकी सेवा कौन करेगा..?


"सही कहा तारा... इनके साथ एडजस्ट करना बहुत मुश्किल है..! नकुल भी अलग रहने चला गया। अपने स्वाभिमान को जिंदा रखकर कामना उन्हें जाते देखती रही।


"काकी..!तभी दरवाजे पर दस्तक सुनकर कामना ख्यालों से बाहर निकली।


"निर्मला तू..?आँधी बंद हो गई..? कामना ने बाहर झाँका तो माटी की सौंधी महक उड़ रही थी।


"हाँ काकी ..बूँदाबाँदी हो गई।यह देखो कौन आया है..?


"कमला..? कामना खुश होकर अपनी छोटी बहन के गले लग गई।


"चलती हूँ काकी..! निर्मला चली गई।


"दीदी जैसे ही आपका फोन आया वैसे ही अटैची उठाकर चली आई।शायद आपकी सेवा के लिए इतने सालों से अकेले थी। मेरी किस्मत में तो सुख थे ही नहीं,पर आप की खुशियाँ को किसकी नजर लग गई..!"कमला बहन को देख रोने लगी।


"किसी की नजर नहीं लगी कमला.. मेरे बच्चों को ही में बोझ लगने लगी थी। मैंने ही उन्हें इस बोझ से आजाद कर दिया।तू अपनी सुना कैसी है..?


"आपको सब पता तो है दीदी..! कहते हुए कमला रो पड़ी।कमला की शादी आर्मी के कैप्टन रंजीत से हुई थी।शादी के छः महीने बाद ही एक आतंकी मुठभेड़ में उसके पति शहीद हो गए। ससुराल ने अपशगुनी कहकर घर से निकाल दिया।तब से मायके में रह रही थी।


"रो मत कमला..इस दुनिया में पूरी तरह सुखी कोई नहीं।तू ही देख लें, कहने को यह मेरा स्वप्न महल है। लेकिन आज अपने ही सपनों की लाश पर मेरी तरह यह भी अकेला तना खड़ा है।अपने स्वाभिमान के साथ..!"


"आप सही कह रही हैं दीदी..!"


"लोगों की नजर में मुझ जैसा सुखी कोई नहीं ।मेरे पास तो दो दो बेटे हैं । सच्चाई मैं ही जानती हूँ कि कितनी सुखी हूँ।स्वार्थ के आगे मेरी ममता हार गई कमला।अब हमें किसी की जरूरत नहीं।हम दोनों अपने स्वाभिमान को जिंदा रख एक दूसरे के सहारे जीवन बिता ही लेंगे..!


©® अनुराधा चौहान 'सुधी'स्वरचित 


चित्र गूगल से साभार 



Tuesday, January 10, 2023

नई उम्मीद



सुबह के छः बजे थे। पूजा घर से आती घंटी की आवाज सुनकर शगुन ने अपने आँसूँ पोंछे और चादर से मुँह ढककर सोने का अभिनय करने लगी।

"शगुन बेटा उठो छः बज गए।आज तुम्हें आठ बजे इंटरव्यू के लिए जाना है ना..?"

"जी मम्मा बस पाँच मिनट...!"

"ओके जल्दी आजा, मैं तेरे लिए चाय बनाती हूँ..!"माँ के जाते ही शगुन उठकर तैयार होने चली गई।

"रात भर रो रही थी क्या...? शगुन की आँखें रोने की वजह से सूजी हुई दिखाई दे रहीं थीं।शगुन ने कोई जवाब नहीं दिया चुपचाप नाश्ता करने लगी।

"तुम अब भी उसी के बारे में सोच रही हो? उसने एक महीने में एक भी फोन नहीं किया। अब तो सच को स्वीकार कर लो..!

"उसे शांति से नाश्ता करने दो सरला..!"विजय का तेज स्वर सुनकर सरला चुप बैठ गई।

"मम्मा अन्वी को दूध पिला दिया है।वो अभी एक घंटे और सोएगी आप तन्वी उठे तो उसे भी दूध पिलाकर दवा पिला देना।हो सकता है मुझे आने में देर हो जाए।पापा यह उसकी फाइल,आप देख लेना कौन-सी दवा कितनी और कब देनी है सब इसमें लिखा है...!

"तुम बच्चों की चिंता छोड़ दो और इंटरव्यू पर फोकस करो।इन दोनों का ख्याल रखने के लिए अभी हम दोनों फिट हैं... क्यों सरला...?"

"तेरे पापा सही कह रहे हैं शगुन।आज तू सारी टेंशन बाहर फेंक आ।बेटा ज़िंदगी धूँप-छाँप से भरा रास्ता है।खुशी और ग़म रास्ते के मुसाफिर जैसे।तू सब भुलाकर अब फिर से खुश रहना सीख ले...!"

"कोशिश तो कर रही हूँ मम्मा....!" शगुन अपना पर्स लेकर बाहर निकल गई।

"हमेशा चहकने वाली बच्ची अब कैसी गुमसुम हो गई विजय? काश शगुन ने हमारा कहा माना होता...!"

"बीती बातें भूलकर आगे की सोचो सरला तभी शगुन की मदद कर पाओगी।जो हुआ वो शगुन की नादानी थी।अब उसे नई उम्मीद के साथ जीवन जीने के लिए तैयार करना हमारी समझदारी होगी....!" विजय आहूजा एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी के सीईओ थे। सरला भी पढ़ी लिखी महिला थी। उन्हें महिलाओं का पढ़-लिखकर घर बैठना पसंद नहीं था इसलिए वो भी साइंस कॉलेज में प्रोफेसर थीं ।

"आज पीछे मुड़कर देखती हूँ तो हमें शगुन की कम हमारी गलती ज्यादा दिखाई देती है विजय..!"शगुन अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी। 

"बच्चों से अत्यधिक प्रेम कभी-कभी विष का रूप लेकर उनका जीवन नष्ट कर देता है सरला। शगुन के साथ यही हुआ।जो चाहा हाजिर, नहीं मिले तो घर सिर पर उठा लेना...! मातापिता की लाडली शगुन हर हाल में अपनी जिद मनवा ही लेती थी।

"हम्म..आप सही कह रहे हो विजय। आपको याद है? जब शगुन ने शशांक के साथ जीवन बिताने का फैसला लिया तो हमने उसे कितना समझाया था।

"सरला..उस पल को कैसे भूल सकते हैं ...!"बच्चियाँ अभी भी सो रही थीं। सरला और विजय पुरानी बातें लेकर बैठे थे।

"शगुन तेरे लिए इतने अच्छे रिश्ते आ रहे हैं और तुम्हें यह शशांक पसंद आया..?

"पापा अब तो शशांक ही मेरी ज़िंदगी है और उसके बिना मैं कुछ नहीं...!

"शगुन.. क्या तुम्हें शशांक की फैमिली के रहन सहन के बारे में तुम्हें पता है ? 

"फैमिली से मुझे क्या करना पापा..? शशांक ने कहा है कि हम दोनों शादी के कुछ दिनों बाद अलग शिफ्ट हो जाएंगे।

"फिर भी शगुन तुम्हें पता होना चाहिए।वो एक ऐसे रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखता है।जहाँ आज भी पुराने नियम फॉलो किए जाते हैं। हर किसी को चार बजे बिस्तर छोड़ने पड़ते हैं।बिना नहाए कोई रसोईघर में कुछ छू नहीं सकता।इसलिए वहाँ चाय भी जल्दी नहीं बनती।यहाँ तुम्हें बेड टी न मिले तो सुबह नहीं होती।ऐसे परिवेश में जीवन बिताना कैसे आसान होगा बच्चे..?

"वो हम दोनों मैनेज कर लेंगे पापा। मुझे शशांक ने यह सब पहले ही बता दिया है।उसने कहा है वो मेरी आदतें जानता है। उसने सबको मेरी आदतें बता दी हैं।वो मुझे कभी कोई तकलीफ़ नहीं होने देगा..!

"यह सब झूठ है बेटा।पहले सब बड़ी बड़ी बाते करते हैं। यह तो बाद में पता चलेगा उस संयुक्त परिवार में तुम्हें कितना स्पेशल ट्रीटमेंट मिलेगा..!

"नहीं चाहिए उनका स्पेशल ट्रीटमेंट। मुझे कौन सा उस घर में रहना है। मैं और शशांक तो अपनी नई दुनिया में खुश रहेंगे..! मैं अपने फैसले पर अटल हूँ,आप अपनी कहो ?

"क्या कहें ? तुम्हें तो हमारी सुनना ही नहीं,अब शशांक हमसे प्यारा हो गया..?"सरला दुखी होकर बोली।

"मम्मा अब आप मत शुरू हो जाना।आप दोनों इस शादी के लिए नहीं माने तो मैं हमेशा के लिए घर छोड़कर चली जाऊँगी..!"

"जब तुमने निर्णय ले लिया तो तुम्हें हमारी परमीशन की क्या जरूरत ?अब तुम्हारे लिए हम कुछ भी नहीं..! विजय बोले।

"मम्मा पापा ऐसा आप दोनों सोचते हैं। मेरे लिए आप लोग जितने ही प्यारे हो उतना शशांक, फिर कैसे उसे छोड़ किसी और को चुनूँ..?नहीं हो पाएगा मम्मा। मैं शशांक के अलावा किसी और से शादी नहीं कर सकती..!

"यह तेरा आखिरी फैसला है..?

"यस मम्मा मेरी खुशी शशांक है‌‌। मैं आप दोनों के बिना भी खुश रह नहीं सकती। आप लोगों की जिद से दोनों ही रूप में मेरी खुशी की बलि चढ़ रही है ...!

विजय और सरला बेटी की खुशी के आगे मजबूर हो गए। शगुन और शशांक परिणय सूत्र में बंध गए। शगुन ढेरों सपने सजाए ससुराल चली आई।

"शशि बहू से कहना सुबह चार बजे का अलार्म लगा लें ताकि पाँच बजे पूजा के समय तैयार हो जाए। उसे यह सब अच्छे से समझा देना कि तुम्हारी बड़ी अम्मा को नियम में ढील मंजूर नहीं..!

"जी माँ में उसे समझा दूँगा..!"इतना कहकर शशांक कमरे में चला आया।

"क्या समझा दोगे शशांक..? तुम तो सबसे बात कर उन्हें बता चुके थे ना कि मुझे इस सब कि आदत नहीं, बोलो ?"

"शगुन मैंने सबको समझाने की बहुत कोशिश की पर वो इसी शर्त पर राजी हुए कि तुम नौकरी छोड़कर इस घर के सभी नियमों का कड़ाई से पालन करोगी। क्या करता? तुम्हारे बिना जी नहीं  सकता तो मैंने सारी शर्तें मान ली..!

"शर्तें मान ली मतलब..?"

"हाँ शगुन कुछ दिनों के लिए ही सही पर यहाँ इस घर में यही तुम्हारी ज़िंदगी है। तुम्हें जॉब छोड़नी होगी। इस सच को अब स्वीकार कर लो...!

"तुमने मुझे चीट किया शशि..? शगुन रो पड़ी उसे अपने सपने काँच की तरह टूटकर बिखरते नजर आ रहे थे।

"चीट नहीं शगुन मैंने तो सिर्फ तुमसे प्यार किया है। तुम भी तो हमारे प्यार की खातिर अपने मातापिता के विरुद्ध गई।अब हमारे प्यार के लिए इतना त्याग तो कर ही सकती हो..?"

"शशि यह जॉब मेरा सपना है..?"

"और मैं..? क्या मैं तुम्हारे सपने के आगे कुछ नहीं..?"

"दोनों बातें अलग हैं शशि..!"

"अलग हैं तो तुम बताओ क्या सही है? मैंने तुमसे कहा था ना जब तक हम यहाँ रहेंगे तब तक तुम्हें यह सभी नियम मानने होंगे ..?

"पर जॉब का क्या..? तुमने यह कब कहा था कि जॉब छोड़नी होगी..?"

"यह बता देता तो क्या तुम शादी के लिए राजी नहीं होती...?

"नहीं..कभी नहीं शशि.. मैं मेरी ज़िंदगी मेरे ढ़ंग से जीने में विश्वास रखती हूँ‌। मैं अपनी जॉब नहीं छोड़ सकती।वो मेरा सपना है...!"

"यह घर या सपना..आज तुम दोनों में से किसी एक को चुन लो शगुन।मेरा क्या,मैं अपने टूटे दिल के साथ किसी तरह जी ही लूँगा। तुम अपने निर्णय लेने के लिए आजाद हो...! शशि ने आँखों में आँसू भरकर कहा।

"शशि...इस तरह मुझे मजबूर मत करो..! शशि की आँखों में आँसू देख तड़प उठी शगुन।

"मजबूर तो मैं इस दिल के हाथों हो गया शगुन।यह बात सुनकर तुम कभी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होती इसलिए मैंने तुमसे यह बात छुपाई। तुम नहीं जानती मैं कितना मजबूर महसूस कर रहा था।हो सके तो मुझे माफ कर देना..! शशि ने हाथ जोड़े।

"शशि प्लीज..!" शगुन ने शशांक के हाथ पकड़ लिए।

"आइ एम सॉरी शगुन... मैं जल्दी कहीं और रहने की व्यवस्था कर लूँगा..! शशि ने कहते हुए शगुन को गले से लगा लिया।

"चार बजे उठना जरूरी है शशि..?"

"हाँ शगुन घर में यदि कोई बीमार भी होता है तो उसे भी आरती के समय बिस्तर पर बैठना पड़ता है। बड़ी अम्मा कहती हैं हमें जीवन के हर नए दिन के लिए ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए। उसके लिए सबसे उपयुक्त समय ब्रह्म मुहूर्त है। चलो सो जाते हैं वरना बातों में सुबह हो जाएगी..!"

शगुन के रहन सहन में और पुरोहित परिवार के रहन सहन में जमीन आसमान का फर्क था। मॉर्डन परिवार की शगुन जी जान से उनके नियमों को फॉलो करने की कोशिश करती पर दिन में दसियों बार उसकी ग़लती पकड़कर बवाल मच जाता।

"शशि यह कैसी दकियानूसी सोच है। पीरियड मैं अपने कमरे में ना होकर वहाँ उस रूम में चटाई पर सोऊँ वो भी इस ठंड में ? नहीं मैं यही इसी बेड पर सोऊँगी।मेरी सहनशक्ति अब जवाब दे रही है।तुम सोच लो तुम्हें क्या जवाब देना है..!शगुन रजाई ओढ़कर सो गई।

"शगुन..माँ, भाभी सभी इन दिनों अलग रहती हैं। तुम इस समय तो सबकी बात मान लो ?"

"नहीं शशि बस बहुत हुआ अब सारे नियम बंद..!"इस तकलीफ भरे समय में जमीन पर सोने के ख्याल से शगुन बहुत गुस्से में थी।इस बात पर शशांक और शगुन में बहस हो गई। बड़ी अम्मा ने शशांक को कमरे से बाहर सोने का हुकुम सुना दिया।

"शशि तू उसके पास जाकर पूरे घर में नहीं घूम सकता।आज से पाँच दिन बैठक में सो फिर कमरे को शुद्ध करके उसमें जाना..!"

"जी बड़ी अम्मा..!समय गुजरता गया।इस क्लेश भरी ज़िंदगी की डोर पकड़े शगुन दो बेटियों की माँ बन चुकी थी। एक दिन तन्वी सुबह के तीन बजे जोर जोर से रोने लगी। उसकी आवाज सुनकर अन्वी भी रोने लगी। शशि उसे संभालने की जगह उठकर बाहर सोने चला गया।बहुत प्रयास के बाद भी जब चुप नहीं हुई तो शगुन ने घबराकर माँ को फोन लगा दिया।

"मम्मा तन्वी बहुत रो रही है। मम्मी जी को जगाया तो वो बोली बच्चे तो ऐसे ही रोते हैं चुप हो जाएगी।दूध भी नहीं पी रही, मुझे समझ नहीं आ रहा क्या करूँ..?"

"पेट दर्द हो रहा होगा। गुनगुने पानी में हींग मिलाकर नाभि में और पूरे पेट पर लगा दे, तुरंत आराम मिल जायेगा...!"

"शगुन ममता के हाथों मजबूर होकर बिना नहाए पानी गर्म करने रसोई में चली गई।हींग लगाने से तन्वी को आराम मिला और वो तो सो गई।पर बिना नहाए रसोई छूने पर घर में कोहराम मच गया।

"मैं तुम्हें समझा समझाकर तंग आ गया। एक तुम हो जो कभी कुछ सुनना नहीं चाहती। बिना नहाए रसोई में क्यों गईं , क्या इमरजेंसी आ गई थी ?तुम्हें हर समय उल्टी हरकतें करने की आदत सी हो गई है..!"

"आदत..!यह मैंने जानबूझकर नहीं किया। तुम्हें पता नहीं तन्वी कितनी बुरी तरह रो रही थी ? उसे देख अन्वी भी रोने लगी।तुम तो  तकिया उठाकर निकल लिए..!"

"सुबह चार बजे उठो, दिनभर ऑफिस में मरो और रात को बच्चे भी संभालने लगूँ... तुम यही चाहती हो..?"

"नहीं..मैं बस यह कह रही हूँ कि तुम रात को अन्वी को चुप करा सकते थे। तन्वी को तो मैं संभाल ही रही थी..!"

"माँ को जगा लेतीं..!"

"उन्होंने मना कर था। वैसे भी तुम सबको मेरी बेटियों के आने की खुशी कम ग़म ज्यादा है।बेटे होते तो सारा घर सेवा में लग जाता..!"

"यह तुम्हारी सोच है..!"

"और तुम्हारी..? परसों तुमने ही कहा था कि भगवान दो नहीं एक ही बेटा दे देते, दोनों बेटियाँ देकर मेरा बोझ बढ़ा दिया। तुम्हें अभी से दोनों बेटियाँ बोझ लगने लगी। कैसी सोच है तुम्हारी छी:..!"बाहर बड़ी अम्मा के चिल्लाने की आवाज आ रही थी।

"शशि की बहू के कारण आज कितना नुक़सान हो गया।राधा यह सब तू अपने घर ले जा।अम्मा नौकरानी को बोल रहीं थीं।शारदा रवि की बहू से कहो गंगाजल छिड़क दें..!

"जी अम्मा..वो तो अच्छा है सारा राशन भंडारघर में रहता है नहीं तो वो भी धोना पड़ता..!"

"देख लो.. अपनी नादानी से माँ भाभी के लिए कितना काम बढ़ा दिया तुमने..!"

"तुम्हें यह सब तो दिखाई दे रहा है शशि। तन्वी ठीक है या नहीं,वो क्यों रो रही थी, क्या हुआ था, किसी ने भी पूछने की जरूरत नहीं समझी..!

"क्या पूछना उसमें..? तुम्हारे ही अनोखे बच्चे हुए जो सारा घर हाल-चाल लेने आए। वैसे भी बेटियों को कुछ नहीं होता। बेटा होता तो चिंता भी की जाती..! शारदा ने अंदर आते हुए कहा।

"माँ मैं भी यही बात इसे कबसे समझा रहा हूँ । मैं तो तंग आ गया इस ज़िंदगी से...!"

"हम लोगों ने तुम्हें पहले ही चेतावनी दी थी।तुम नहीं माने तो भुगतो अब।इस लड़की के आने से घर में सिर्फ क्लेश ही हो रहा है..!"

"क्या करूँ बुद्धि जो भ्रष्ट हो गई थी तब मेरी..! 

शशि...?शशांक की यह बात सुनकर शगुन ने धीरज खो दिया और अपने पिता को उसे ले जाने के लिए मेसेज कर दिया। और सामान पैक करने लगी। शशांक ने भी रोकने की कोशिश नहीं की। उसके हाव-भाव से लग रहा था कि वो यही चाह रहा था।

"पापा...!" पिता को सामने देख शगुन फफककर रोने लगी।

"यह तो होना ही था बेटा।रो मत..चल..घर चल,हम घर चलकर बात करेंगे..!विजय ने सामान ले लिया। सरला ने अन्वी को गोद ले लिया। तन्वी शगुन के सीने से चिपकी हुई थी। शगुन ने मुड़कर शशि की ओर देखा तो उसने लैपटॉप में आँखें गड़ा लीं। शगुन के प्यार का आखिरी भ्रम भी चूर हो गया।

"इतनी ठसक से ले जा रहे हो बिटिया तो वापस मत भेजना आहूजा...!"

"चिंता न करो अम्मा.. मेरी बिटिया रास्ता भटककर तुम्हारे यहाँ आ गई थी।अब वो सही राह पर जा रही है।अब वो इस घर की ओर कभी मुड़कर नहीं देखेगी। जल्दी डिवोर्स पेपर आपके पास होंगे..!

"हमें उस समय जिद करके उसे रोकना चाहिए था।पर ममता के हाथों मजबूर हो गए। अब जो हुआ उसे तो बदल नहीं सकते विजय...!

"इस एक महीने में एक बार भी शशांक ने बेटियों की खबर नहीं ली। चलो देर से ही सही शगुन को समझ तो आया कि हर प्यार कामयाब नही होता....! तन्वी और अन्वी जाग गई थीं। सरला और विजय बच्चों के साथ समय बिताने लगे।

"लगता है शगुन आ गई..? डोरबेल सुनकर सरला डोर खोलने लगी।शाम हो आई थी। दरवाजे पर शगुन चेहरे पर चिरपरिचित मुस्कुराहट के साथ खड़ी थी।

"तेरी मुस्कराहट बता रही है,तुझे जॉब मिल गई..?"

"हाँ मम्मा... मुझे जॉब मिल गई। पापा...! शगुन पिता के गले लग गई।

"ऐसे ही मुस्कुराती रहे मेरी बच्ची..! विजय ने शगुन के सिर पर प्यार से हाथ फेरा।

"यस पापा अब मैं सिर्फ़ बेटी नहीं एक माँ भी हूँ।अब मुझे अपनी एक अलग पहचान बनानी है। अपनी बेटियों को उनके हिस्से की खुशियाँ देनी है।उनकी माँ भी मैं और पिता भी मैं...! एक नई उम्मीद के साथ नई ज़िंदगी के ढेरों सपने शगुन की आँखों में झिलमिलाने लगे।

"यह हुई न बात...! विजय आहूजा की बेटी कभी हार नहीं सकती..!"विजय की बात पर सब खिलखिलाकर हँसने लगे।

"यह देखो.. कैसे खिलखिलाने लगी दोनों जैसे सब समझ रही हैं..! तन्वी और अन्वी सबको हँसते देखकर हाथ पैर हिलाकर किलकारियाँ मारने लगी थीं। शगुन उन्हें देखकर शशि के बारे में सोचने लगी।

"शशि तुमने इन बेटियों को छोड़कर जीवन का सबसे बड़ा सुख खो दिया। इन्हें खोकर तुम कभी सुखी नहीं रह सकते...!"


"क्या बात है सरला... बाहर तक खिलखिलाने की आवाजें आ रही हैं। आज सब किस बात पर इतना खुश हो रहे हैं?" एक बुजुर्ग महिला ने अंदर आते हुए पूछा।
"अरे नंदा काकी...आइए बैठिए..!सरला ने आदर से उठते हुए कहा।

"काकी माँ मुझे जॉब मिल गई..! शगुन ने चहकते हुए कहा।

"अरे वाह..!!तो ऐसे कोरे कोरे खबर सुनाएगी गुड़िया? मिठाई नहीं लाई..? नंदा काकी शगुन को प्यार से गुड़िया कहकर बुलाया करती थीं।

"ओह हांँ.. सॉरी काकी माँ खुशी में भूल गई..!"

 "कोई बात नहीं गुड़िया हम आज गुड़ से काम चला लेंगे...!

"काकी गुड़ क्यों ?आप तो मिठाई खाइए।आज एक महीने बाद जब शगुन ने अपने पिछली ज़िंदगी के दुखों को झटककर आगे बढ़ने का फैसला लिया तो विजय को विश्वास हो गया था कि शगुन आज नहीं तो कल ऑफर लेटर ले ही आएगी इसलिए उन्होंने मिठाई लाकर रखी थी...!"

"पापा..?"

"तेरी काबिलियत पर तो मुझे सदा से ही भरोसा रहा है बेटा..!

"पापा...!"शगुन पिता से लिपटकर भावुक हो गई।

"यह आँसू तो तू अपनी बेटियों की विदाई के लिए बचाकर रख हमें तो तेरी प्यारी सी स्माइल चाहिए। क्यों काकी..?"

"हाँ गुड़िया तेरी यह स्माइल ही पुरोहित परिवार को कीमती हीरा खोने का अहसास करवाएगी..!"नंदा काकी खुश होकर बोली।

"बच्चियाँ खेल रही हैं शगुन।जा तू फ्रेश होकर आ तब तक मैं तेरे लिए चाय बनाती हूँ। काकी बैठना जाना नहीं..! नंदा काकी को चाय के लिए रुकने को कहकर सरला किचन में चली गई।

"अरे अरे रे आजा मेरी सोन परी...! तन्वी शगुन को जाते देख ठुनकने लगी तो नंदा काकी ने उसे पुकारते हुए गोद में उठा लिया।

"कैसे जालिम लोग हैं वो जो इतनी प्यारी फूल सी बच्चियों को छोड़ दिए। इन्हें देखकर तो पत्थर भी पिघल जाए। इन्हें अपने से दूर करते हुए जल्लादों को जरा भी दया नहीं आई..?"

"छोड़ो काकी.. उनको याद करके मन खट्टा मत करो।आज बहुत खुशी का दिन है। आप तो यह सोचकर खुश रहो ,अपनी बच्ची सही सलामत है।हम सब के साथ खुश हैं।यह दोनों भी हमारे साथ बहुत खुश रहेंगी।यह अकेली कहाँ ?हम और आप हैं ना इनके के साथ...!"

"सो तो है विजय...करम फूटें है करमजलों के....!"

"किसके करम फूटें हैं काकी माँ..?"

"अरे हैं हमारा एक रिश्तेदार..तू वो सब छोड़ आ यहाँ बैठ...!"शगुन को देख काकी ने बात बदल ली। शगुन जॉब करने लगी तो सरला ने बच्चियों का ध्यान रखने के लिए समय से पहले रिटायरमेंट ले लिया।नंदा काकी के दोनों बच्चे विदेश में रहते थे। वो भी दिन में अपना अकेलापन दूर करने के लिए बच्चों के साथ समय बिताने लगीं।

ब्लू साइन जॉइन करे शगुन को अभी चार महीने ही हुए थे कि उसे पता चला शशांक किसी और के साथ रिलेशनशिप में है। वो लड़की और कोई नहीं शगुन की सहयोगी निकली।

"मेरी बात सुनकर तुम अचानक क्या सोचने लगी शगुन..?" 

"कुछ नहीं मिताली..बस तुम्हें तुम्हारे हिस्से की खुशियाँ मिलें यही दुआ कर रही थी..!"

"शशांक बहुत अच्छा इंसान है शगुन। मैं भाग्यशाली हूँ मुझे इतना केयरिंग, इतना प्यार करने वाला दोस्त मिला।वो मेरा बहुत ख्याल रखता है...!"

"शादी का क्या ख्याल है...?"

"निकट भविष्य में शगुन...बस शशांक के कुछ जरूरी काम अटके हुए हैं। उनसे निपटने के बाद हम दोनों शादी कर लेंगे...!"शशांक और शगुन के डिवोर्स का केस अपनी लास्ट डेट का इंतजार कर रहा था। शशांक शादी में कोई अड़चन नहीं चाहता था इसलिए मिताली से काम का बहाना बनाकर डिवोर्स होने का इंतजार कर रहा था।

"तेरे डिवोर्स का क्या हुआ। तूने उसके बारे मुझे कभी नहीं बताया...? मुझे भी तो पता चले वो कौन बंदा है जो हीरे को ठोकर मारकर चला गया..!

"शायद इस डेट पर छुटकारा मिल जाए।तू उसके बारे में जानकार क्या करेगी।मुझे तो उसके विषय में बात करना ही पसंद नहीं..!शगुन तो स्वयं ही इस बंधन से आजाद होने के लिए बेचैन हो रही थी।

"शशांक ने अपने काम के बारे में तुम्हें कुछ नहीं बताया मिताली...?"

"नहीं मैंने पूछा नहीं...!"

"मिताली मेरी एक सलाह मानोगी..?"

"कैसी सलाह...?"

"शशांक से शादी का फैसला करने से पहले सारी बातें क्लियर कर लेना। कहीं ऐसा न हो आगे चलकर तुम्हें भी पछताना पड़े...!"

"शशांक ऐसा नहीं है शगुन।वो मुझे कभी भी धोखा नहीं देगा...!"मिताली का शशांक पर अंधा विश्वास देख शगुन को अपना पास्ट याद आ गया।

"एक समय ऐसे ही मैं भी उस शख्स पर ऐसे ही भरोसा कर रही थी....!"ऑफिस का टाइम खत्म हो गया था। शगुन बैग उठाकर घर के लिए निकल गई।

"मम्मा.. काकी माँ मैं कॉफ़ी बनाने जा रही हूँ।आप पियेंगी..?"शगुन अपने लिए कॉफी बनाने किचन में जा रही थी।

"कुछ हुआ है शगुन..?"

"नहीं मम्मा कुछ नहीं हुआ..!"

"कुछ तो है बेटा..तू जब अधिक परेशान होती है तभी कॉफी पीने की बात करती है...!"

"मम्मा शशांक किसी के साथ रिलेशनशिप में है..!"

"तुझे उससे क्या करना..? रिलेशनशिप में रहे या शादी करे। तुझे तो इसी पंद्रह तारीख को उससे छुटकारा मिल जाएगा...!"

"काश काम बन जाए।मम्मा वो मेरे साथ काम करती है।सोचती हूँ उसे सच बता दूँ...?"

"जब तक डिवोर्स नहीं होता,तू किसी को कुछ नहीं कहेगी शगुन...!

"क्यों मम्मा..?"

"समझले इसी मैं तेरी भलाई है बेटा..!"

"उन लोगों से कुछ माँगा है बिटिया के लिए सरला..?"

"हाँ काकी उनसे शगुन के लिए सबसे कीमती चीज माँगी है काकी। उसके लिए विजय ने वकील से कुछ पेपर्स भी बनवा लिए हैं।इसी पंद्रह तारीख को उनपर उनके साइन लेने है। फिर उनका रास्ता अलग हमारा अलग...!"

"कैसे पेपर मम्मा ? और कौनसी कीमती चीज माँगी है? मुझे उस घर की कोई चीज नहीं चाहिए...!"

"इन बच्चियों की कस्टडी के पेपर बनवाए हैं शगुन। वैसे भी उन्हें बच्चियों में इंटरेस्ट नहीं तो अभी गर्मागर्मी में वो लोग साइन भी कर देंगे।अभी चूक गए तो कहीं वो तलाक के बाद इन बच्चियों पर अपना हक जमाने आ गए तो तू क्या करेगी शगुन ...? 

"मैं इन दोनों के बिना नहीं जी पाऊँगी मम्मा...!

"इसलिए बेटा अभी किसी से कुछ नहीं कहना है। नहीं तो बातों पर बात बनेगी। उन्हें नई बात मिल जाएगी। फिर कहीं उन्होंने हमारे कस्टडी वाले पेपर्स साइन करने से मना कर दिया और अपनी ओर से कस्टडी के लिए केस फाइल कर दिया तो..?"

"मैं मेरी बेटियाँ उन्हें कभी नहीं दूँगी मम्मा।वो लोग मेरी बच्चियों से प्यार ही नहीं करते...!"

"वो तो हम लोग जानते हैं। इस परिवार के किसी भी सदस्य ने एक बार भी दोनों मासूमों की खबर नहीं ली यह बाहर वालों को क्या पता ? इसलिए कह रही हूँ कि पहले अपना पक्ष क्लियर हो जाए फिर उस लड़की को सारी सच्चाई बता देना। मैं भी नहीं चाहती कोई और मासूम उसके जाल में फंसे...!"

"जी मम्मा..!"धीरे धीरे समय गुजरता गया।शगुन और शशांक अब कानूनी तौर पर एक दूसरे से अलग हो गए थे। मिताली और शशांक ने शादी करने का फैसला कर लिया था।

"शगुन हमने शादी का फैसला कर लिया है...!"

"ओ वाऊ..कब की डेट निकली...?"

"दस मार्च...!"

"दस मार्च... यानि अपने जन्मदिन को यादगार बना रहा है शशांक...!"

"अरे मैंने तो तुम्हें बताया भी नहीं फिर तुम्हें कैसे पता उस दिन उसका जन्मदिन है। ..?"

"उसका जन्मदिन मुझे नहीं पता होगा तो किसे पता होगा? दो साल तक रिलेशनशिप और फिर डेढ़ साल का शादीशुदा जीवन, साढ़े तीन पुराना साथ था हमारा...!"

"होगा शगुन पर वो और कोई शशांक होगा। इत्तेफाक से दोनों की जन्म डेट और नाम मैच कर रहे हैं।मेरा शशांक तो बहुत इनोसेंट है।वह मुझसे कभी झूठ नहीं बोल पाता वो भला इतनी बड़ी बात क्यों छुपाएगा...?"मिताली शगुन की बात सुनकर थोड़ा एग्रेसिव होने लगी।

" रिलेक्स मिताली.... सॉरी मुझे ऐसे शशांक पर शक नहीं करना चाहिए था। शायद मैं ही गलत हूँ। तेरी बात सच ही है यह वो नहीं कोई और होगा तेरा शशांक नहीं होगा।मुझे जिसने चीट किया वो यह शशांक था..!शगुन ने अपनी शादी के कुछ फोटोग्राफ मिताली के हाथ में थमाए।

"यह...!" शशांक और शगुन की वैवाहिक रस्मों वाली फोटो देख मिताली के हाथ से सारी फोटोग्राफ छूटकर बिखर गईं।

"सॉरी मिताली में तुम्हें इस तरह हर्ट नहीं करना चाहती थी..!" शगुन ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। 

"यह सच है शगुन...?"

"सौ प्रतिशत सत्य है मिताली इसलिए मैं अपनी आँखों बंद करके यूँ तुम्हारा जीवन बर्बाद होते हुए नहीं देख सकती...!शगुन शशांक के साथ बिताए डेढ़ साल का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख देती है।

"मैंने परिवार का सुख नहीं ले पाया शगुन ।पर कहते हैं बड़े बुजुर्ग जो नियम बनाकर गए हैं। उनके पीछे कुछ न कुछ विशेष कारण छुपा होता है।पर उन नियमों की आड़ लेकर इंसान इंसानियत भूलने लगे तो वहीं नियम हमें बुरे लगने लगते हैं शगुन..!

"सही कहा मिताली... मैंने खुद को उनके हिसाब से ढालने की बहुत कोशिश की पर फिर भी अलग कल्चर से आई लड़की उनके दिलों से उतरी रही। इसलिए तुम शांति से विचार करो कि अब शशांक का क्या करना है..!

"मुझे शशांक के तलाकशुदा होने से कभी प्रॉब्लम नहीं होती। दुःख इस बात से है कि उसने मुझसे झूठ कहा कि वो अभी तक सिंगल हैं।मैं उसकी ज़िंदगी में आने वाली पहली और आखिरी लड़की हूँ। इतना बड़ा झूठ, उसने मुझे बताया है तो क्या पता तुम्हें भी ऐसा ही कोई झूठ दिखाय हो? तुमने उसे कैसे सह लिया?अब तुम देखो शगुन मैं शशांक को कैसे सबक सिखाती हूँ..?

"तुम ऐसा क्या करोगी।और क्या कहोगी अपने मातापिता से...?"

"मैं एक अनाथ हूँ शगुन... मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे। रिश्तेदारों ने कुछ दिन में ही किनारा कर लिया। पड़ोसी अनाथाश्रम में छोड़ गए। अनाथाश्रम की सुपरवाइजर मैडम की छत्रछाया में थोड़ी बहुत ममता मिली थी।वो भी पिछले साल छोड़कर चली गई।मैं शशांक को पाकर बहुत खुश थी कि अब मेरी भी फैमिली होगी...!"

"ओह तुम्हारे बारे में जानकार बहुत दुख हुआ।आज से तुम अकेली नहीं,मैं और मेरी फैमिली तुम्हारी फैमिली है। मेरी फैमिली में मेरी छोटी बहन का दिल से स्वागत है मिताली...! शगुन ने मिताली का हाथ पकड़ा।

"थैंक्स शगुन...!" मिताली ने शशांक से कुछ नहीं कहा। शशांक के घर शादी की तैयारियाँ जोरों शोरों से चल रही है। मिताली के दिमाग में कुछ और चल रहा था। आखिर दस मार्च का दिन आ गया।

बाहर बाराती डांस करने में मगन थे। दुल्हन का जोड़ा पहने मिताली शशांक का इंतजार कर रही थी। द्वार पर स्वागत का थाल लिए सरला को देखते ही घोड़ी पर बैठे शशांक के पसीने छूट गए।

"शगुन की मॉम...?रवि ने उन्हें देख बैंड बंद करा दिया।

"अरे बैंड क्यों रोक दिया।बजाओ,बजाओ। अरे कोई मेरे दूल्हे को तो नीचे उतारो। मुझे भी डांस करना है...!" मिताली ने सामने आकर कहा।दो तीन लोगों ने आगे बढ़कर शशांक को नीचे उतार लिया।

"अरे तुम लोगों क्या चुपचाप खड़े होने के लिए बुलाया है...? मिताली विजय के साथ खड़े कैमरे वालों से बोली।वो कोई साधारण कैमरे वाले नहीं मिताली की पहचान के कुछ रिपोर्टर थे। मिताली ने शशांक का झूठ उजागर करने के लिए बुलाया था।

"तो मिलिए मेरे होने वाले दूल्हे शशांक पुरोहित ।यह बहुत ही इनोसेंट एक पत्नीव्रत धारण करने वाला बड़ा ही प्यारा इंसान है। इतना प्यारा कि इसका बोला झूठ सच को शरमाने पर मजबूर कर दे...!"मिताली मीडिया के सामने शशांक के झूठ की परतें खोलती गई और मीडिया वाले उस सच को पूरे शहर में वायरल करने लगे।

"बस कर मिताली,रोक दे यह सब...!"शगुन ने धीरे से मिताली का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा।

"तुझे क्यों खराब लग रहा है..!"

"मिताली उसको उसके किए की सजा मिल गई।अब छोड़ जाने दे यार..!"

"ताकि कल कोई और शगुन या मिताली उसके प्यार में पागल होकर उससे शादी करले और फिर वही सब भुगते जो तूने भुगता...?"

"ऐसा जरूरी नहीं मिताली। मम्मा कहती हैं हर प्यार कामयाब नही होता।मेरा प्यार भी वैसा ही था नहीं कामयाब हुआ। तुम मेरी छोटी बहन जैसी थी इसलिए तुम्हें सच बताना मेरा फर्ज था।हो सकता है शशांक को कोई ऐसा मिल जाए जो उसके घरवालों की कसौटी पर खरा उतर जाए। उसे वो लोग उतनी तकलीफ न दे जितनी मुझे दी...!"

"तेरा दिल कितना बड़ा है शगुन।मेरा दिल इतना बड़ा नहीं जो ऐसे झूठे इंसान को माफ कर दूँ।जो अपनी नन्ही बच्चियों का नहीं उससे कैसी सहानुभूति रखें शगुन..?"मिताली की आँखे डबडबा आईं।

"वो कैसा भी है पर एक सच तो यह भी है कि वो मेरी बच्चियों का बाप है।हाँ यह बात और है कि उसने और उसके घरवालों ने इन दोनों से कोई रिश्ता नहीं रखा।हाँ उसने मुझसे झूठ बोला। मुझे चीट किया पर मैंने तो उससे प्यार ही किया था। मैं इस सत्य को कैसे झुठला दूँ..? शगुन की आँखें छलक आईं।

"तुझे छोड़कर शशांक ने अपनी ज़िंदगी की सबसे कीमती चीज खो दी।चल तेरे लिए यह सब रोक देती हूँ..! मिताली ने रिपोर्टरों को वापस जाने को कह दिया।यह देख शशांक और उसके घरवालों को अपने किए पर बेहद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।

"शगुन मुझे माफ कर दो।मैं अपने किए पर बेहद शर्मिन्दा हूँ...! शशांक हाथ जोड़कर बोला।

"मम्मा पापा घर चलें ?चलती हूँ मिताली..! शशांक की बात का जवाब दिए बगैर शगुन ने अपने कदम घर की ओर बढ़ा दिए।

"शगुन...!!रुको मेरी बात सुनो प्लीज... शगुन..! शशांक अपनी गलतियों पर पछताता हुआ आवाज देता रह गया। शगुन ने उसे देखना भी जरूरी नहीं समझा।

"शगुन एक बार मेरी ओर देखना भी गँवारा नहीं तुम्हें...!"जिस तरह शशांक ने उससे मुँह फेरा था। अपनी ज़िंदगी के कड़वे सच को पीछे छोड़ शगुन उसी अंदाज में आगे बढ़ती चली गई।

*अनुराधा चौहान 'सुधी'स्वरचित*

Monday, March 7, 2022

इतिहास के पन्नों से


एक सितंबर 1939 को जर्मनी की सेनाओं ने अचानक पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। हिटलर की सेनाओं ने ये आक्रमण बिना किसी पूर्व चेतावनी के किया था।सवेरा होते ही जर्मन सेना के युद्धक विमानों ने पोलैंड पर हवाई हमले शुरू कर दिए।सुबह नौ बजे राजधानी वॉरसॉ पर हवाई बम बरसने लगे।इसके साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध की शुरूआत हो गई।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन तानाशाह हिटलर और सोवियत रूस के तानाशाह स्टालिन के बीच गठजोड़ हुआ। जर्मन अटैक के 16 दिन बाद सोवियत सेना ने भी पोलैंड पर धावा बोल दिया। दोनों देशों का पोलैंड पर कब्जा होने तक भीषण तबाही मची। 

इस भीषण युद्ध में हजारों सैनिक मारे गए और भारी संख्या में बच्चे अनाथ हो गए।तब 500 पोलैंड की महिलाओं और 200 बच्चों को जर्मनों के अत्याचार से बचाने के लिए एक जहाज पर बिठा दिया गया। पोलैंड के सैनिकों द्वारा जहाज को समुद्र में छोड़ते हुए कप्तान से कहा कि वे उन्हें किसी ऐसे देश में ले जाएं जहाँ उन्हें आश्रय मिल सके।उनका देशवासियों का आखिरी संदेश था "अगर हम जीवित रहे तो हम फिर मिलेंगे!"

जहाज के कप्तान 500 शरणार्थी पोलिश महिलाओं और 200 बच्चों से भरे जहाज को लेकर कई यूरोपीय बंदरगाहों,एशियाई बंदरगाहों पर गए,जहाँ उन्हें शरण देने से मना कर दिया गया।जहाज ईरान के बंदरगाह भी पर पहुँचा वहाँ भी उन्हें कोई रहने की अनुमति नहीं मिली।

इसी तरह समुद्र में भटकता-भटकता जहाज भारत पहुंचा और बंबई के तत्कालीन बंदरगाह पर आया तो ब्रिटिश गवर्नर ने भी जहाज को बंदरगाह पर जाने से मना कर दिया।

फिर यह जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर जहाज़ रुका। वहाँ के राजा जाम दिग्विजयसिंह जाडेजा ने उनकी हालत देखकर व्यथित हो गए और उन्होंने जहाज को जामनगर के पास एक बंदरगाह पर रुकने की अनुमति दी। उन्होंने न केवल 500 महिलाओं को आश्रय दिया बल्कि उनके बच्चों के पालक पिता बनकर उनको बालाचिरी के एक आर्मी स्कूल में मुफ्त शिक्षा भी दिलवाई।

ये शरणार्थी नौ साल तक जामनगर में रहे। जाम साहब द्वारा उनकी अच्छी तरह से देखभाल की जाती थी। जो नियमित रूप से उनके पास जाते थे और उन्हें प्यार से बापू कहते थे।

राजा दिग्विजय सिंह जी ने उन्हें न केवल आश्रय दिया अपितु उनके बच्चों को आर्मी की ट्रेनिग दी, उनको पढ़ाया, लिखाया, बाद मे उन्हें हथियार देकर पोलेंड भेजा। उन्होंने जामनगर से मिली आर्मी की ट्रेनिग के बलबूते पर देश को पुनः स्थापित किया, आज भी पोलेंड के लोग उन्हें अन्नदाता मानते है।

इन शरणार्थियों के बच्चों में से एक बाद में पोलैंड के प्रधान मंत्री बने। आज भी उन शरणार्थियों के वंशज हर साल जामनगर आते हैं और अपने पूर्वजों को याद करते हैं।

पोलैंड में एक स्कूल का नाम जाम साहेब दिग्विजय सिंह जडेजा के नाम पर रखा गया है। इतना ही नहीं,पोलैंड की राजधानी में कई सड़कों के नाम महाराजा जाम साहब के नाम पर हैं।वहाँ उनके नाम पर पोलैंड में कई योजनाएं चलाई जाती हैं। पोलैंड के अखबार में हर वर्ष महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह की महानता के बारे में लेख छपते हैं।

आज भी पोलेंड के लोग उन्हें अन्नदाता मानते है, उनके संविधान के अनुसार जाम दिग्विजयसिंह  उनके लिए ईश्वर के समान है। इसीलिए आज भी वहाँ के नेता उनको साक्षी मानकर संसद में शपथ लेते है।यदि भारत मे दिग्विजयसिंहजी का अपमान किया जाए तो यहाँ की कानून व्यवस्था में सजा का कोई प्रावधान नही लेकिन यही भूल पोलेंड में करने पर तोप के मुह पर बांधकर उड़ा दिया जाता है।

वर्ष 2013 में वॉरसॉ में फिर एक चौराहे का नाम 'गुड महाराजा स्क्वॉयर' दिया गया। इतना ही नहीं, महाराजा दिग्विजय सिंहजी जडेजा को राजधानी के लोकप्रिय बेडनारस्का हाई स्कूल के मानद संरक्षक का दर्जा दिया गया। पोलैंड ने महाराजा को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान कमांडर्स क्रॉस ऑफ दि ऑर्डर ऑफ मेरिट भी दिया।

क्या आप जानते हो आज युक्रेन से आ रहे भारत के लोगो को पोलेंड अपने देश में बिना वीजा के क्यो आने दे रहा ?वो इसलिए कि आज भी पोलेंड जाम साहब के उस कर्म को नही भुला इसलिए आज इस संकट की घड़ी में भारत के लोगो की सभी प्रकार से मदद कर रहा है। 

यह आधुनिक समकालीन इतिहास का एक शानदार पृष्ठ था,जिसे भारत में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं!


अनुराधा चौहान'सुधी'


नोट-राजा दिग्विजय सिंह जाडेजा के विषय में जानकारी और फोटो गूगल से ली गई है।



Tuesday, July 13, 2021

हिम्मत



"विपुल बस थोड़ी हिम्मत और करले मेरे भाई...!हाँ बस फिर हम लोग भी आजाद पंछी की तरह अपनी ज़िंदगी जिएंगे..!"रमन और मंगल बोले।

"मैं बहुत थक गया हूँ मंगल.. अब नहीं दौड़ा जाता। तुम दोनों भाग जाओ ट्रेन का समय हो गया..!"इन तीनों में विपुल सबके छोटा और कमजोर था।

"ऐसे कैसे छोड़ दें..? मंगल कुछ दूर मैं पीठ पर लेता हूँ, कुछ दूर तुम.. क्यों ठीक है..?"पिछले तीन बरसों से दुख सहते और भीख माँगने को मजबूर रमन ने आज हिम्मत करके भीख मँगवाने वाले कालू भंडारी का सुरक्षा घेरा भेदकर अपने साथ मंगल और विपुल के साथ भाग खड़ा हुआ।

"उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी।वो देख दो-तीन बसें रुकी हुई हैं।लगता है सब कहीं तीर्थयात्रा पर जा रहा है।जय शिव शंभू जयकारे? लगता है किसी शिव मंदिर दर्शन के लिए? जब तक यह लोग नाश्ता करते हैं हम सब बस की छत पर छुप जाते हैं।अगले स्टॉप पर सोचेंगे क्या करना है।

"ठीक मंगल..चल विपुल..!"तीर्थयात्री कुछ देर के लिए रुके और अपने खाने के लिए फल आदि लेकर फिर आगे बढ़ गए। तीनों इस मौके का फायदा उठाकर बस के छत पर चढ़कर लेट गए।

बारिश का मौसम था इसलिए बस के ऊपर सामान नहीं था और ना ही तन जलाने वाली धूप, जैसे ही ठंडी हवा लगी विपुल सो गया।

"सो गया बेचारा.. मंगल तुझे तो तेरे शहर का नाम पता है,हम लोग कहाँ जाएंगे..?"रमन ने पूछा।

"रमन एक बार शहर पहुँच जाएं फिर सोचते हैं..!"बारह साल के थे मंगल और रमन दस साल का,विपुल छोटा पाँच साल का नाज़ुक सा बच्चा था।

"मंगल हम तीनों तो भाग लिए, अब बाकी लोगों का क्या होगा..?"

"उन्होंने इस तकलीफ़ को स्वीकार कर लिया है रमन।अब शायद हमारे भागने के बाद,उनको भी थोड़ी हिम्मत आ जाए..!"शाम गहराने लगी थी।रमन भी सो गया था।बस चलती चली जा रही थी।ऐसी ही एक बस यात्रा में छः महीने पहले मंगल अपने परिजनों से बिछड़ गया था।

"क्या हुआ बेटा..?आप रो क्यों रहे हो? आपके घरवालें कहाँ हैं...?भीखू ने प्यार से सिर सहलाते हुए पूछा।

"वो लोग चले गए..!"मंगल रोते हुए बोला।

"चले गए..कहाँ..?"भीखू ने पूछा।

"हम सब यहाँ घूमने आए थे। मैं पापा के साथ बस में जाकर बैठ गया।माँ उस दुकान से कुछ खाने-पीने का सामान लेने लगी।तभी मैंने देखा माँ की बस में चढ़ते समय यह पायल गिर गई। पापा को बताया तो वो पापा फोन पर बात करने में व्यस्त थे।बस मैं पायल उठाने के लिए उतरा और बस चल दी,और..!" मंगल फिर से रोने लगा।

"ना बेटा रोते नहीं हैं।कितनी देर हो गई उन्हें गए..?" भीखू ने पूछा।

"थोड़ी देर पहले ही बस गई है।दुकान वाले अंकल बोले यही बैठो शायद ढूँढते हुए वापस आ जाएं..?"मंगल ने रोते हुए कहा।

"कहाँ से आए हो..?"

"वाराणसी.. शंकर भगवान के मंदिर हमारे घर से थोड़ी दूर पर ही है।पापा का नाम शंकरलाल मिश्रा वहीं मंदिर के पास पूजा सामग्री की दुकान लगाते हैं..!"मंगल ने बताया।

"अरे फिर तो मैं उन्हें जानता हूँ..!"

"सच्ची अंकल..?"

"हाँ बेटा.. मैं हर महीने महादेव के दर्शन को वाराणसी जाता हूँ। मैं परसों फिर जाने वाला हूँ,मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें सही-सलामत उनके पास पहुँचा दूँगा..!"भीखू की मीठी-मीठी बातों में मंगल फंसता चला गया।

"सच्ची अंकल..?आप मुझे ले जाओगे..?"मंगल खुश हो गया।
"हाँ सच्ची..आओ गाड़ी में बैठो..!"मंगल को साथ में लेकर भीखू अपने अड्डे पर चला आया।

"अंकल यह कैसी जगह है..?"मंगल वहाँ पर कुछ गंदे मिट्टी में सने बच्चे और कुछ विकलांग बच्चों को देखते ही समझ गया कि वो बच्चे चोरी करने वाले गिरोह के हाथ लग गया। जिनके बारे में उसके चाचा बताते रहते थे।

"अब तुझे यहीं रहना है समझे..?रमनवा इसे यहाँ के बारे में सब समझा देना,समझे..?"

"जी उस्ताद आप बेफिक्र होकर जाइए..!"रमन दस साल का लेकिन बहुत चालाक था।भीखू का बेहद खास था।भीखू चला गया तो रमन कुछ मैले-कुचैले कपड़े ले आया ।

"लो पहन लो जो बने..!"

"छी मैं नहीं पहनता यह गंदे कपड़े..!मेरे चाचा जी पुलिस में हैं।देखना वो और मेरे पापा कितनी जल्दी मुझे ढूँढते हुए आ जाएंगे..! मंगल ने कहा।

"ओय..ज्यादा चूँ चा मत करिओ यहाँ कोई न आने वाला।पहन ले शांति से नहीं तो उस टीम में शामिल हो जाएगा।वो सब तेरे जैसे ही थे।अब देखो, बेचारे कैसे हो गए..!"रमन ने विकलांग बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहा।

"नहीं..!"मंगल ने डरकर गंदे कपड़े पहन लिए।

"ले यह कालिख अच्छी तरह पूरे शरीर में मलकर अब  मेकअप भी करलो।आज से तेरी ट्रेनिंग शुरू..!"यह कहकर रमन चला गया और कुछ देर बाद विपुल को लेकर लोटा।

"अरे तू अभी तक बैठा है..?"रमन ने कहा।

"यह भी भीख माँगता है..?"नन्हें विपुल को देखकर मंगल को बहुत खराब लगा।

"भीखू का कहा तो मानना ही पड़ेगा भाई, वरना वो तेरा यह हाल कर देगा..?"रमन ने विकलांग बच्चों की ओर इशारा किया।अपने हाथ से मंगल के शरीर में कालिख मल दी।बस उसी दिन से मंगल उन दोनों के साथ भीख माँगता और जो कुछ मिलता शाम को भीखू को सौंप देता।

एक दिन "रमन तुझे अपने मम्मी-पापा की याद नहीं आती ?तू यहाँ कैसे आया..?"

"आती है ना बहुत याद आती है।वो लोग मुझे रोज शाम को गार्डन में खेलने ले जाते थे।एक दिन उनके साथ ही गार्डन में खेल रहा था। मैं बॉल उठाने झाड़ियों के पीछे गया और वहाँ किसी ने मेरा मुँह दबोचकर गाड़ी में डाल दिया।मम्मी पापा के जब तक पता चला होगा तब तक तो मैं बहुत दूर यहाँ चला आया..!"रमन की आँखें छलक पड़ी‌।

"तेरा घर कहाँ है..?"मंगल ने पूछा।

"पता नहीं..? मैं जब यहाँ आया तब विपुल जितना बड़ा था।बस यह याद है कि मेरे घर के सामने हनुमान जी की बहुत बड़ी मूर्ति दिखाई देती थी..!"रमन बोला।

"ओह.. तुमने यहाँ से भागने की कोशिश नहीं की..?"

"ओय पागल है क्या.? ऐसा सोचना भी नहीं।अँधे, लूले लंगड़े होने से ऐसे ही सही..!"रमन बोला।

"यह विपुल कब से यहाँ..?

"दो साल का था जब यहाँ आया। मैंने नाम रखा है इसका,अच्छा है ना..?"रमन ने विपुल का सिर सहलाते हुए कहा।

"मैंने फ़ैसला कर लिया है..!"मंगल बोला।

"कैसा फैसला..?"

"मैं एक दिन भीख माँगते समय मौका देखकर यहाँ से भाग जाऊँगा। मैं अक्सर रेलवे स्टेशन पर भीख माँगता  हूँ। गाड़ियों के आने-जाने का समय पता कर लिया है।एक दिन किसी गाड़ी के शौचालय में छिप जाऊँगा और दो-तीन स्टेशन निकलने पर उतर के वाराणसी कौन-सी गाड़ी जाती है।यह पता करके वाराणसी अपने घर चला जाऊँगा..!"मंगल के चेहरे पर उमंग भरी चमक दिखाई दे रही थी।

"वाह बड़ा दिमाग चलता है तेरा..?खैर छोड़ो अभी चलो वापस अड्डे पर,तुझे घर पता है।भागने मिल गया तो घर चला जाएगा।हम दोनों को तो मजबूरी में यहीं रहना है..!"रमन बोला।

"नहीं रमन मौका मिला तो तीनों साथ जाएंगे। मेरे चाचा तेरे मम्मी-पापा को ढूँढ लेंगे।हम विपुल को भी साथ ले जाएंगे।तू बस मेरा साथ दे देना..!"

भीखू रोज सबके भीख माँगने की जगह बदल देता था।आज तीन दिन बाद स्टेशन के पास बने मंदिर में भीख माँगने का मौका मिला तो मंगल इसे गँवाना नहीं चाहता था।भागते समय मंदिर की सीढियों पर विपुल गिर गया और उसे चलने में तकलीफ़ होने लगी।

उस दिन मंगल की किस्मत साथ दे रही थी। तीर्थयात्रा की बस देखते ही वो रमन के साथ विपुल को लेकर बस की छत पर चढ़कर लेट गया। मंगल अपने कल के बारे में  सोच रहा था कि नीचे अचानक से जयकारे गूँजने लगे।

"हर-हर महादेव,जय शिव शंभू" रमन भी शोर सुनकर उठ गया।"क्या हुआ मंगल..?"

"रमन यह बस अब यहीं से वापस जाएगी।चल उतर जल्दी। विपुल उठ..!"तीनों फटाफट बस से नीचे उतर गए।सावन का महीना था हल्की-हल्की बूँदा-बाँदी शुरू हो गई थी।

"अंकल कुछ खाने को दो ना ...?बहुत भूख लगी है। विपुल एक यात्री से खाना माँगने लगा।

"विपुल नहीं..माफ करना अंकल.. इसने बहुत देर से कुछ खाया नहीं इसलिए बस..!"मंगल उसे और रमन को लेकर भीगने से बचने के लिए एक दुकान के शेड के नीचे खड़ा हो गया।

"मंगल यह कौन-सी जगह है..?"

"जरा बारिश रुकने दे फिर देखता हूँ।अँधेरा है पर फिर भी सब मुझे पहचाना सा लग रहा है .!" अचानक मंगल बस से उतरे यात्री से पूछता है।

"अंकल हम लोग वाराणसी पहुँच गए..?"मंगल ने हवा में तीर छोड़ा।सीधे जगह का नाम पूँछकर वो फिर से किसी के चंगुल में नहीं फंसना चाहता था।

"हाँ पहुँच गए..हम बस स्टैंड पर हैं अभी। उसने मंगल को बिना देखे जवाब दिया।

"रमन हम वाराणसी पहुँच गए।वाराणसी मेरे घर..!अब मैं बारिश रुकने का इंतजार नहीं कर सकता।चलो हम पैदल घर के लिए चलते हैं आओ मेरे साथ..!"मंगल को बारिश में भीगना मंजूर था पर रुकने का इंतजार करना मुश्किल हो रहा था।

तीनों उत्साह से भरे बारिश में भीगते हुए चल दिए। वैसे ही जैसे पंछी पिंजरे से निकलकर आजाद पंछी मस्तमौला बनकर नभ में बिचरने लगता है।शिव जी के जयकारे जोर से सुनाई देने लगे थे। मंगल ऐसे आश्चर्य जनक तरीके से वाराणसी पहुँचा जैसे भोलेनाथ अपनी नगरी के नन्हे बालक को लेने खुद पुरानी दिल्ली गए थे।

"रमन मेरे पापा की दुकान..!!वो देख!! मंगल ने दोनों का हाथ पकड़ा और दौड़ पड़ा।

"पापा..!!!!"

"शंकरलाल चौंककर दुकान से निकलकर मंगल को देखने लगे।कालिख लगा शरीर फटे कपड़े देख एक बार को धोखा खा गए शंकरलाल।

"पापा..!" मंगल उनसे लिपट गया।

"मंगल मेरे बच्चे..तू कहाँ चला गया था मेरे लाल।यह? यह तेरी यह हालत..?महादेव तुम्हारी लीला अपरम्पार है। मंगल यह दोनों कौन हैं..?"

"पापा बाद में, अभी बहुत भूख लगी है। सुबह से हमने कुछ नहीं खाया..!"

"हे भगवान.. क्या हालत हो गई मेरे बच्चे की..!लो यह खाओ तीनों बैठकर..!" शंकरलाल ने तुरंत दोने लेकर प्रसाद के पेडे बच्चों को दिए और पानी की बोतल निकाली।

"दूबे जी.. शंकरलाल ने पड़ोसी दुकान वाले को आवाज लगाई।

"बोलो शंकरलाल.. क्या काम आने पड़ा। और यह क्या अब भिखारियों की आवभगत करने लगे..?"तीनों बच्चों को देखकर दूबे जी बोले।

"दूबे जी यह मंगल है और दो उसके साथी, शंभूनाथ की कृपा से मंगल हमें वापस मिल गया।जरा प्रभात को फोन करके पांच साल,दस साल, और मंगल के लिए एक एक जोड़ी कपड़े मँगा दो जल्दी फिर भोलेनाथ को जाकर माथा टेके..!"

"मंगल..? दूबे जी ने गौर से मंगल को देखा।हे शिव शंभू क्या हालत हो गई इस बच्चे की..?हम अभी फोन करके कपड़े मँगाते है..!"दूबे जी अपने बेटे को फोन लगाते हुए दुकान में चले गए।

"पार्वती हमारा बेटा मिल गया..!"शंकरलाल की खुशी संभाले नहीं संभल रही थी।

"क्या..? सच्ची कह रहे हो जी..?कहाँ है मंगल?कहाँ है वो..?"

"दुकनिया पर अपनी..!"

"हम अभी आवत है उसके चाचा के संग..! पार्वती भी दुकान पर आ गई थी।

"मम्मी..!"मंगल माँ से लिपट गया।

"ओ मोरी मैया..यह क्या हुआ? कितना कमजोर हो गया है मेरा बच्चा। हाड़ दिखाई देने लगे। दुष्टों ने क्या हालत कर दी मेरे राजदुलारे बेटे की..! पार्वती रोते हुए मंगल को बार-बार सीने से लिपटाए जा रही थी।

शंकरलाल ने प्रभात से कपड़े लेकर "पार्वती संभाल अपने को, अभी बच्चे बहुत थके हुए हैं। पहले नहला धुलाकर साफ कपड़ा पहना दे, फिर चल बोले बाबा के दर्शन कर लें..!"

"चलो तीनों मेरे साथ..!"पार्वती बच्चों को साथ लेकर घर चली गई।

भईया अपने मंगल का हाल देखकर लगता है किसी भिखारी गैंग के हाथ लग गया था..?"मंगल के चाचा शिवानंद ने कहा।

"हाँ लगता तो यही है।अभी बच्चों से कुछ भी पूछना ठीक नहीं? उनको भोलेनाथ के दर्शन कराकर सुला देते हैं।कल देखते हैं क्या करना है..? शंकरलाल ने कहा।

दर्शन करने के बाद पार्वती ने रमन और विपुल को भी मंगल के कमरे में ही सोने के लिए भेज दिया।

"धन्यवाद मंगल तेरी हिम्मत के कारण,भले ही यह तेरा घर है।पर हम आज फिर से घर में होने का सुख उठा रहे हैं..!"रमन ने कहा।

"चल अब भूल जा पुरानी बातें रमन..शिव जी की कृपा से तुझे भी तेरा घर मिल जाएगा।आ विपुल हम सब साथ में सोएंगे..! मंगल ने सबको अपने बैड पर लिटा लिया।

"मंगल अगर मेरे और विपुल के मम्मी-पापा का पता नहीं चला तो फिर हम लोग कहाँ जाएंगे..? क्या फिर से हमें.. मंगल बीच में बोल पड़ा।

"नहीं रमन ऐसा हरगिज नहीं होगा।घर नहीं मिलेगा तो  तुम दोनों मेरे पास रहोगे। मैं पापा से बात कर लूँगा,वो मना नहीं करेंगे..!"तीनों बात करते-करते सो गए।

"सूखकर काँटा हो गया मेरा बेटा। विपुल तो कितना प्यारा और मासूम है। जरूर किसी बड़े घर का बच्चा होगा..?"पार्वती बोली।

"हम्म लगता तो है भाभी।अब बड़े घर का हो या छोटे घर का, उनके पेरेंट्स के बारे में जानकारी निकालनी होगी..!"

"सही कहा देवर जी..अब आप भी सो जाइए..!"

"हम्म गुड नाईट..!"शिवानंद सोने चला गया। दूसरे दिन से रमन के बताए अनुसार शिवानंद बड़ी हनुमान जी की मूर्ति कहाँ-कहाँ है, पता लगाने लगा।

"भैय्या एक बड़ी तो दिल्ली में ही है।रमन के अनुसार वो उस समय विपुल जितना बड़ा यानि चार-पाँच साल का रहा होगा। मैं कल दिल्ली जा रहा हूँ।वहाँ पता करता हूँ चार पाँच या उससे एक साल पहले कितने बच्चे गायब होने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई है..?"

"ठीक है शिवानंद..!"शिवानंद को जल्दी ही इस मामले में कामयाबी हासिल हो गई। कुछ बच्चे उस टाइम पीरियड में गायब हुए थे।उसमें एक बच्चे की तस्वीर हूँबहूँ रमन से मिलती थी। पता करने पर पता चला कि वो लोग उसके बाद आगरा शिफ्ट हो गए। उनसे जब पूछा गया कि उनका बच्चा कैसे गायब हुआ तो उन्होंने वही स्टोरी बताई जो रमन ने बताई थी।
पुलिस ने फिर भी डीएनए टेस्ट करवाया। टेस्ट मैच होने रमन को उसके माँ बाप को सौंप दिया।

"मंगल मुझे भूल तो नहीं जाओगे..?रमन मंगल के गले लगते हुए बोला।

"नहीं कभी नहीं,यह लो मेरा फ़ोन नम्बर,हम रोज बात किया करेंगे!"मंगल ने अपना फोन नंबर दे दिया।

"बेटा जैसा तुम्हारा नाम है मंगल,वैसा ही तुमने हमारे जीवन में सब मंगल कर दिया। चलो चिंटू..?"रमन की माँ ने पूछा।

"चिंटू..?"मंगल ने आश्चर्य से पूछा।

"मम्मी मुझे प्यार से चिंटू ही बुलातीं थी। मैं इतने दिनों में अपना यह नाम भूल ही गया था..!"रमन जाने लगा तो विपुल रोकर लिपट गया। तीन बरसों से रमन ही उसका ख्याल रखते आया था।

"विपुल रोते नहीं हैं।सुन मेरे भाई, तुम्हारे मम्मी-पापा नहीं मिले तो मैं तुम्हें अपने पास बुला लूँगा। क्यों मम्मी आप रख लेंगी ना विपुल को..?"

"हाँ बिल्कुल बच्चे..पर अभी जाने दो,रमन की दादी के बार-बार फोन आ रहे हैं..!"विपुल आँसू पोंछता हुआ मंगल से लिपट गया।

छः महीने और बीत गए। आखिरकार विपुल के माता-पिता का पता भी चल गया। विपुल दिल्ली के ही रईस परिवार का बेटा था।जिसे पैसों के लिए किडनैप किया और पैसे लेकर किडनैपर बच्चे को सौंपे बिना भाग गए। पुलिस ने किडनैपर तो पकड़ लिए पर तब तक विपुल भीखू के हाथ लग गया था।बच्चा बोल नहीं पाता था ऊपर से कालिख पुता बदन, फटेहाल भिखारी के रूप में दिल्ली में होते हुए भी तीन साल तक उसका कोई पता नहीं चल पाया।

कानूनी कार्यवाही के साथ विपुल को उसके माँ बाप को सौंप दिया। मंगल की हिम्मत की हर ओर वाहवाही हुई। मंगल की हिम्मत और उसके द्वारा बताई जगह पर छापे मारकर कई बच्चों को पुलिस ने अपने कब्जे में लेकर अनाथालय भेज दिया। और उनके परिवार की तलाश शुरू कर दी।

बारिश का मौसम फिर लौट आया था।सभी बच्चे भीखू के चंगुल से आजाद हो गए,यह खबर सुनते ही मंगल छत पर बारिश के मजे लेकर नाचने लगा।इस आशा के साथ, देर-सवेर ही सही पर उन सबको भी एक दिन उनका परिवार जरूर मिलेगा।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार