Friday, December 14, 2018

कोहरा


चलती हैं सर्द हवाएं
छाया है घना कोहरा
बंधक बनी सूर्य किरण
धरती पर लगा पहरा

यह कोहरा तो है मौसमी
मिट जाएगा कुछ दिनों में
उस कोहरे को कैसे मिटाओगे
जिसने दिलों को घेरा

छिप गई कोहरे में कहीं
इंसानियत भी कुछ कुछ
जिसे ढूंढना है मुश्किल
दुनियां की हर गली में

छाया दिलों-दिमाग़ पर
अज्ञानता का कोहरा
जिसे मिटा सके जो
वो प्रकाश कैसे होगा

कभी तो वो दिन आएगा
जब इंसानियत हंसेगी
आशा की किरणों से ही
रोशन जहां यह होगा

***अनुराधा चौहान***

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना सखी 👌

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  2. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 19दिसंबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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    ......


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    1. बहुत बहुत आभार पम्मी जी

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  3. वाह बहुत सुन्दर सखी सच कहा मौसम का कोहरा तो मौसम के साथ ढल जायेगा पर ये अज्ञानता और असहिष्णुता का कोहरा कैसे छटेगा ।
    आदर्श रचना

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  4. बहुत लाजवाब...
    वाह!!!

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