चलती हैं सर्द हवाएं
छाया है घना कोहरा
बंधक बनी सूर्य किरण
धरती पर लगा पहरा
यह कोहरा तो है मौसमी
मिट जाएगा कुछ दिनों में
उस कोहरे को कैसे मिटाओगे
जिसने दिलों को घेरा
छिप गई कोहरे में कहीं
इंसानियत भी कुछ कुछ
जिसे ढूंढना है मुश्किल
दुनियां की हर गली में
छाया दिलों-दिमाग़ पर
अज्ञानता का कोहरा
जिसे मिटा सके जो
वो प्रकाश कैसे होगा
कभी तो वो दिन आएगा
जब इंसानियत हंसेगी
आशा की किरणों से ही
रोशन जहां यह होगा
***अनुराधा चौहान***
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर रचना सखी 👌
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 19दिसंबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDelete.
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बहुत बहुत आभार पम्मी जी
Deleteवाह बहुत सुन्दर सखी सच कहा मौसम का कोहरा तो मौसम के साथ ढल जायेगा पर ये अज्ञानता और असहिष्णुता का कोहरा कैसे छटेगा ।
ReplyDeleteआदर्श रचना
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत लाजवाब...
ReplyDeleteवाह!!!
धन्यवाद सुधा जी
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