Sunday, December 2, 2018

जलने वालों की कमी नहीं

मोहनलाल बचपन से ही हर काम में बहुत तेज थे। कोई भी काम हो जल्दी ही सीख जाते थे। अभी कुछ दिन पहले ही रिटायर हो कर अपने शहर जोधपुर वापस आए थे। पिता जी मूर्तिकार थे बचपन में पिता के साथ सीखा करते थे,तो वो हुनर मोहनलाल को भी आता था।सो वापस आकर अपनी इस कला को मूर्त रूप देने लगे।
देवी कृपा समझो कि इतने वर्षों बाद भी हाथ की सफाई गई नहीं मूर्तियां सुंदर बन निकली तो बच्चों ने मोहनलाल को एक दुकान खुलवा दी।
मोहनलाल का शौक और आमदनी दोनों शुरू हो गई दुकान भी चल निकली।पर जलने वालों की दुनियां में कमी नहीं सो उनके बचपन के मित्र घनश्याम जो शुरू से ही इस पेशे से जुड़े हुए थे।मन ही मन जलने लगे।
घनश्याम मोहनलाल के मुंह पर उनकी बहुत तारीफ करते थे।पर पीठ पीछे लोगों से कहते फिरते,कि मोहनलाल नहीं बनाता मूर्ति वो तो बाहर से लेकर बनी-बनाई मुर्तियां अपने नाम से बेचता है।
मोहनलाल सुनकर मुस्कुरा उठते थे। बच्चों को यह सुनकर गुस्सा आता था पिता से कहते आप कुछ कहते क्यों नहीं। मोहनलाल बच्चों को समझाते दुनियां में जलने वालों की कमी नहीं किसी के कहने पर नहीं जाना चाहिए ।छोड़ो बेकार की बातें अपने आप को देखो बस और खुश रहो। मोहनलाल मुस्कुराते हुए ।अमर प्रेम फिल्म के गीत की पंक्तियां गुनगुनाने लगते।
कुछ तो लोग कहेंगे
लोगों काम है कहना
छोड़ो बेकार की बातों में
कहीं बीत न जाए रैना
और फिर अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं।
***अनुराधा चौहान***

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