चित्र गूगल से साभार |
शालिनी जी एक संपन्न परिवार की प्रभावशाली व्यक्तित्व की महिला थी।समाज में उनकी बहुत इज्जत थी। चेहरे पर हमेशा पैसे का गुरूर स्पष्ट दिखाई देता था।दो बेटों की माँ घर में उनका कठोर अनुशासन चलता था।पति को कारोबार से फुर्सत नहीं मिलती थी।
शालिनी जी ने बड़े बेटे की शादी अपने हैसियत के अनुसार बड़े घर की बेटी मेघा से कर दी। बड़े घर की बेटी थी उसकी परवरिश नौकर चाकर की देखरेख में हुई थी,तो रुतबा शालिनी जी से कम कैसे होता। वहीं छोटे बेटे ने अपनी मर्जी से शादी कर ली।
सुधा के पापा एक बैंक में मामूली क्लर्क थे, वो सुधा को सुख-सुविधा तो नहीं दे पाए। परवरिश में संस्कार भरपूर दिए।बेटे की ज़िद के आगे शालिनी जी हार गईं,और सुधा शालिनी जी के घर बहू बन कर आ गई।पर दिल तक नहीं पहुंच पाई।
मेघा और शालिनी जी अक्सर सुधा को बेइज्जत करते थे। एक दिन शालिनी जी की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। शालिनी बच तो जाती हैं,पर घायल होने के कारण कई महिनों के लिए बिस्तर पर पड़ जाती हैं।
सुधा जी जान से शालिनी जी की सेवा करके उन्हें स्वस्थ कर लेती है।पर इस बीच में बड़ी बहू मेघा एक बार उन्हें देखने आई। और नौकरों को उनकी देखभाल करने को बोलकर चली गई। आज शालिनी जी को एहसास हुआ कि पैसे से ज्यादा जरूरी अच्छी परवरिश होती है।
सुधा का परिवार हैसियत में उनसे जरूर कम था पर उन्होंने सुधा को दहेज में संस्कार भरपूर दिए। इस तरह सुधा शालिनी जी की चहेती बहू बन जाती है।***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित लघुकथा✍
परवरिश संस्कार की
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद आदरणीया यशोदा जी
Deleteअनुराधा जी ,संस्कारो में ही तो कमी होती जा रही है ,अच्छी कहानी है ,स्नेह
ReplyDeleteआपका आभार कामिनी जी
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