Wednesday, December 19, 2018

झांसी की रानी

सन् सत्तावन का युद्ध हुआ
जली अलख आज़ादी की
सीने में देशप्रेम की ज्वाला ले
रणभूमि में उतरी रानी थी
मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी
हुंकार लगाई रानी ने
खूब लड़ी मर्दानी थी वह
बिजली की तरह चमक उठी
बन काली कल्याणी वह
दुश्मन के ऊपर टूट पड़ी
तन से थी वह नार नवेली
सीने से फौलादी थी
काली कजरारी आंखों से
वह शोले बरसाती थी
थी बिजली सी तेजी उसमें
दुश्मन के छक्के छुड़ाती थी
रग-रग में देशप्रेम की भावना
हृदय वात्सल्य से भरा हुआ
पुत्र पीठ पर बांधकर अपनी
सेना में  अपनी जोश भरा
शीश काट दुश्मन के उसने
मातृभूमि को भेंट किया
लड़ते-लड़ते घायल हो गई
अंत समय तक युद्ध किया
अंत समय भी तन को अपने
दुश्मन के हाथ न लगने दिया
आजादी के लिए देकर प्राण
रानी ने एक इतिहास रचा
जीते-जी झांसी को अपनी
अंग्रेजों को छूने न दिया
खूब लड़ी मर्दानी थी वह
झांसी वाली रानी थी
शत् शत् नमन हम करते
वो वीर वीरांगना रानी थी
***अनुराधा चौहान***

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