सन् सत्तावन का युद्ध हुआ
जली अलख आज़ादी की
सीने में देशप्रेम की ज्वाला ले
रणभूमि में उतरी रानी थी
मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी
हुंकार लगाई रानी ने
खूब लड़ी मर्दानी थी वह
बिजली की तरह चमक उठी
बन काली कल्याणी वह
दुश्मन के ऊपर टूट पड़ी
तन से थी वह नार नवेली
सीने से फौलादी थी
काली कजरारी आंखों से
वह शोले बरसाती थी
थी बिजली सी तेजी उसमें
दुश्मन के छक्के छुड़ाती थी
रग-रग में देशप्रेम की भावना
हृदय वात्सल्य से भरा हुआ
पुत्र पीठ पर बांधकर अपनी
सेना में अपनी जोश भरा
शीश काट दुश्मन के उसने
मातृभूमि को भेंट किया
लड़ते-लड़ते घायल हो गई
अंत समय तक युद्ध किया
अंत समय भी तन को अपने
दुश्मन के हाथ न लगने दिया
आजादी के लिए देकर प्राण
रानी ने एक इतिहास रचा
जीते-जी झांसी को अपनी
अंग्रेजों को छूने न दिया
खूब लड़ी मर्दानी थी वह
झांसी वाली रानी थी
शत् शत् नमन हम करते
वो वीर वीरांगना रानी थी
***अनुराधा चौहान***
जली अलख आज़ादी की
सीने में देशप्रेम की ज्वाला ले
रणभूमि में उतरी रानी थी
मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी
हुंकार लगाई रानी ने
खूब लड़ी मर्दानी थी वह
बिजली की तरह चमक उठी
बन काली कल्याणी वह
दुश्मन के ऊपर टूट पड़ी
तन से थी वह नार नवेली
सीने से फौलादी थी
काली कजरारी आंखों से
वह शोले बरसाती थी
थी बिजली सी तेजी उसमें
दुश्मन के छक्के छुड़ाती थी
रग-रग में देशप्रेम की भावना
हृदय वात्सल्य से भरा हुआ
पुत्र पीठ पर बांधकर अपनी
सेना में अपनी जोश भरा
शीश काट दुश्मन के उसने
मातृभूमि को भेंट किया
लड़ते-लड़ते घायल हो गई
अंत समय तक युद्ध किया
अंत समय भी तन को अपने
दुश्मन के हाथ न लगने दिया
आजादी के लिए देकर प्राण
रानी ने एक इतिहास रचा
जीते-जी झांसी को अपनी
अंग्रेजों को छूने न दिया
खूब लड़ी मर्दानी थी वह
झांसी वाली रानी थी
शत् शत् नमन हम करते
वो वीर वीरांगना रानी थी
***अनुराधा चौहान***
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