खोलो मन के द्वार
आने दो प्रेम की बाढ़
सब विषाद बह जाने दो
खुशियों को लहराने दो
क्या रखा अकेले जीने में
घुट-घुट कर दर्द सहने में
बीत चली अब साल पुरानी
नई साल की करो अगवानी
नववर्ष की जब मचेगी धूम
बुरी बातों को जाना तुम भूल
द्वार दिल के रखना खोलकर
खुशियां न लौटे मुंह मोड़कर
देख दिल के बंद दरवाजे
किसी को भी नहीं लगते प्यारे
चलो मिटाएं मन से द्वेष
बना रहे सभी का मन प्रेम
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुंदर रचना, अनुराधा दी।
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएं।
बहुत बहुत आभार ज्योती जी
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