Wednesday, December 26, 2018

खोलो मन के द्वार

खोलो मन के द्वार
आने दो प्रेम की बाढ़
सब विषाद बह जाने दो
खुशियों को लहराने दो
क्या रखा अकेले जीने में
घुट-घुट कर दर्द सहने में
बीत चली अब साल पुरानी
नई साल की करो अगवानी
नववर्ष की जब मचेगी धूम
बुरी बातों को जाना तुम भूल
द्वार दिल के रखना खोलकर
खुशियां न लौटे मुंह मोड़कर
देख दिल के बंद दरवाजे
किसी को भी नहीं लगते प्यारे
चलो मिटाएं मन से द्वेष
बना रहे सभी का मन प्रेम
 ***अनुराधा चौहान***

2 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना, अनुराधा दी।
    नववर्ष की शुभकामनाएं।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योती जी

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