Wednesday, May 6, 2020

यह कैसी ज़िद

सेंट पॉल कॉलेज का वार्षिकोत्सव समारोह चल रहा था।मंच पर बच्चे अपना हुनर दिखा रहे थे। कनक की कम्पनी के मालिक कॉलेज के ट्रस्टी थे। इसलिए कनक कॉलेज में चीफ गेस्ट बनकर आई थी।
तभी अनाउंस होता है,"अब आ रही हैं‌ हमारे कॉलेज की न्यू छात्रा "कनिका महेश्वरी!" कनिका एक गीत सुनाने वाली है।
कनिका नाम सुनते ही कनक की आँखों में नमी तैर गई।सोलह साल पहले उसके जीवन में घटी एक घटना उसे याद आने लगी।
विकास और कनक एक-दूसरे से बेहद प्यार करते थे।दोनों ने ही परिवार की मर्जी के विरुद्ध जाकर शादी कर ली थी।कनक  और विकास अपनी ज़िंदगी में बहुत खुश थे।
एक दिन विकास को खबर मिलती है उसकी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही। दोनों सब-कुछ भूलकर चार साल की बेटी कनिका के साथ दिल्ली के लिए निकल दिए।
क्या सोच रहे हो विकास??कनक ने पूछा। खुद को कोस रहा हूँ!माँ मुझे देखने के लिए कितना तड़पी होगी? कितना याद करती होगी? एक मैं बदनसीब उसके अंतिम समय में उससे मिल भी न सका!
हम्म समझ सकती हूँ विकास! काश तुम्हारे घरवाले पहले सूचित कर देते तो मैं भी माँजी से मिल लेती!बुझे मन से कनक ने कहा।
दोनों एक-दूसरे का दुख बाँटने में लगे थे।ट्रेन सुबह आठ बजे दिल्ली स्टेशन पर थी। तुम कनिका को गोद में उठा लो कनक, यहाँ बहुत भीड़ रहती है।लगेज में संभालता हूँ, विकास ने कनक से कहा।
स्टेशन से आधा घंटे का सफर तय करने के बाद पूरे पाँच साल बाद विकास अपने घर के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा था।
विकास कुछ अजीब नहीं लग रहा? कैसा अजीब कनक? देखो कल इतना बड़ा हादसा हुआ है और आज़ इतना सन्नाटा? मुझे कुछ अजीब लग रहा है।
कुछ अजीब नहीं है, ज्यादा मत सोचो! तभी दरवाजा खुलता है।अरे विकास बाबा आप.? मालकिन विकास बाबा आ गए!रामचरण चिल्लाता हुआ भागा।
रामचरण सुनो!! मालकिन? माँ तो? मालकिन पूजाघर में है विकास बाबा!आप यहीं रूको! मालकिन बोली हैं आपको अंदर न आने दिया जाए।
कनक और विकास आश्चर्य से एक-दूसरे को देखने लगे।माँ ठीक है तो फिर पापा ने झूठ बोला?कनक को यह झूठ कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। कहीं इतने साल बाद इन लोगों की कोई नई चाल तो नहीं??
मन ही मन घबरा रही थी कनक।क्या सोचने लगी कनक? अरे डरो नहीं इकलौता बेटा हूँ!आखिर कब तक नाराज़ रहते माँ और पापा! वैसे बुलाते तो हम साथ नहीं आते, शायद इसीलिए ऐसे बुलाना भेजा गया है।
सुभद्रा आरती का थाल लेकर आ जाती है। औलाद के मोह में हमें भी झुकना पड़ा। तुम्हें तो हमारी याद भी नहीं आई होगी।
माँ कसम से एक पल भी ऐसा नहीं गया, जब आप और पापा को याद नहीं किया! बस-बस बातें न बना! सुभद्रा बड़े प्यार से गृह-प्रवेश की रस्म पूरी करा दोनों को अंदर आने के लिए कहती हैं।
आओ अंदर आ जाओ बहू! माँ यह सब क्या है? वैसे ही बुलाना भेजती,हम आ जाते,झूठ बोलकर मेरी तो जान ही निकाल दी थी आपने, विकास गुस्सा होते हुए बोला।
वैसे ही बुलाती तो तू अकेला आता, मेरी पोती को साथ न लाता। माँ!! एक बार कहा तो होता, मैं तेरे लिए सबकुछ छोड़कर आ जाता।
अच्छा!! ऐसा लगता तो नहीं सुभद्रा व्यंग्य से मुस्कुराते हुए बोली। कनक ने सास के पैर छुए तो बस-बस खुश रहो के आशीर्वाद के साथ फीकी सी मुस्कान मिली, जिसे देख कनक को अच्छा नहीं लगा।
रामचरण!! बहू रानी को उनका बेडरूम दिखा दो!जाओ तुम जाकर फ्रेश हो मुझे मेरी पोती के साथ खेलने दो।कनक रामचरण के पीछे चली गई।
कनिका भी कनक के पीछे जाने लगी तो,कनिका बच्चा! आप कहाँ जा रहे हो?आओ अपनी दादी के पास! अपनी दादी से दोस्ती नहीं करोगी?आओ मेरे साथ देखो! कितने सारे खिलौने मंगाए हैं मैंने आपके लिए!
सुभद्रा कनिका को उसके लिए तैयार कराए रूम में ले जाती है। एक बच्चे की क्या पसंद होती है उसको क्या चाहिए,इन सारी बातों को ध्यान में रखकर, सुभद्रा ने कनिका का रूम तैयार करवाया था।
ढेर सारे खिलौने देखकर कनिका खुश हो गई। दादी इतने सारे खिलौने किसके हैं? यह सब मेरी लाडो कनिका के लिए हैं!सच्ची दादी? हाँ बेटा आपको पसंद आए ना और चाहिए तो मँगा दूँ?अब आप अपनी दादी को छोड़कर तो नहीं जाएंगी ना?
नहीं दादी आइ लव यू दादी! सुभद्रा की आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े । तभी विकास पीछे से आकर बोला माँ हम लोग कुछ दिनों के लिए आए हैं!यह सब करने की क्या जरूरत है?
अब तुम कहीं नहीं जा रहे हो! सुना तुमने!आज के दिन आराम करो और कल से अपने पापा के साथ बिजनेस में हाथ बंटाओ! बहुत कर ली मनमानी,अब बुढ़ापे में अकेले मरने के लिए छोड़ोगे हमें?
माँ!! आप यह सब क्या कह रही हो! ठीक है नहीं जाएंगे पर अब फिर से मरने की बातें मत करना, विकास माँ को गले लगा लेता है ।
शाम को आदेश कम्पनी से आते हैं।विकास बाबा! मालिक आ गए हैं आपको और बहूरानी को बुला रहे हैैं।
पापा!! विकास ने डरते-डरते आदेश के पैर छुए।तो आदेश ने गले लगा लिया।इतना नाराज हो गए कि इतने साल हमारे मरने-जीने की खबर तक नहीं ली? अरे इकलौती औलाद हो हमारी! भला माँ-बाप कभी बच्चों से नाराज़ रह पाते हैं।
गलती हो गई पापा माफ़ कर दीजिए,कहता हुआ विकास फिर से आदेश के गले लग जाता है। कनक मेरे पापा से मिलो,कनक आगे बढ़कर आदेश के पैर छूकर आशीर्वाद लेती है।
हम्म खुश रहो! विकास कल से ऑफिस चलो सारा काम समझो और संभालो अपनी जिम्मेदारी।
जी जैसा आप कहें पापा! आपने मुझे माफ़ कर दिया,अब मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला।
यह हुई न बात!सुभद्रा इसी बात पर मुँह मीठा तो कराओ।
जी मुँह भी मीठा हो जाएगा,आप फ्रेश होकर आ जाइए! मैं खाना लगवाती हूँ!
माँ मैं भी आपकी मदद करती हूँ! कनक सास के पीछे आती हुई बोली।
नहीं तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है!यहाँ हर काम के लिए नौकर-चाकर लगे हैं।
हरिया!! फटाफट खाना लगाना शुरू करो, साहब आ गए हैं। और हाँ! मूँग दाल का हलवा बनाया क्या? विकास को हलवा बहुत पसंद हैं।
कनक को सास के द्वारा अपनी हर बात एक अनदेखी के समान लग रही थी।उसे उनके साथ रहना अच्छा नहीं लग रहा था। विकास भी सुबह से माँ के इर्द-गिर्द ही घूम रहा था।
खाने की टेबल पर भी कनक खुद को अकेला महसूस करती रही और विकास माँ-बाप के प्यार में डूबता चला जा रहा था।
अरे वाह!मूँग दाल का हलवा! आपको अभी भी याद है? मुझे मूँग दाल हलवा पसंद है। माँ सच जबसे आपसे दूर हुआ हूँ, तबसे मूँग दाल का हलवा नहीं खाया।
क्यों ? कनक को मूँग दाल का हलवा नहीं आता? या उसे अभी तक तुम्हारी पसंद नहीं पता ?
नहीं माँ ऐसी बात नहीं है,कनक बहुत अच्छी कुक है! मैंने ही उसे कभी नहीं बताया कि मुझे क्या-क्या पसंद है।
कुछ बातें बिना बताए ही समझी जाती है विकास!खैर छोड़ो खाने का मजा लो।
कनिका बच्चा आपको हलवा नहीं खाना? आपके लिए क्या बनवाऊँ बताओ ?आप जो बोलोगी वो हरिया अंकल बना देंगे।
नहीं दादी मेरा पेट भर गया, मुझे और नहीं खाना।मम्मा मुझे नींद आ रही है।
सुभद्रा यह सुनकर बोली, चलो बेटा आज हम दोनों साथ सोयेंगे। मैं आपको अच्छी-अच्छी कहानियाँ भी सुनाऊँगी, आपको कहानी सुनना पसंद है।
माँ आप परेशान न हो! मैं सुला देती हूँ! इसे मेरे बिना नींद नहीं आती है...कनक बोली
रहने दो न कनक!माँ उसे अपने साथ सुलाना चाहतीं हैं तो ठीक है ना सुलाने दो!माँ तुमसे ज्यादा कनिका का ध्यान रखेंगी।तुम कनिका की चिंता मत करो।गुड नाइट माँ,गुड नाइट पापा।
रूम में आते ही,यह सब क्या है विकास? सुबह से देख रही हूँ माँ मुझे इग्नोर कर रही हैं। पापा ने भी मुझे देखकर
अनदेखा कर दिया! आशीर्वाद भी बिना देखे ही दे दिया जैसे कोई भिखारी हूँ।
यह तुम्हारी गलतफहमी है कनक!माँ-पापा ने हमें माफ़ कर दिया,इस बात से तुम्हें तो खुश होना चाहिए और तुम हो कि इसमें बुराई ढूँढने लगी।मेरे माता-पिता से मिलने का दुख लेकर बैठ गई विकास झुँझलाकर बोला।
मेरे कहने का यह मतलब नहीं था विकास!मुझे ऐसा महसूस हुआ इसलिए बोल दिया। तुम्हारा दिल दुखाने का इरादा नहीं था, मुझे माफ़ कर दो विकास।कनक ने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा।
इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है कनक! मैं भी सुबह से तुम पर ध्यान नहीं दे पाया। तुम्हारे लिए तो यहाँ सब नया है यह कहते हुए विकास ने कनक को खींचकर गले लगा लिया।
सुभद्रा की छोटी बहन की बेटी सपना सुभद्रा और आदेश के अकेलेपन का एकमात्र सहारा थी ।सपना देखने में बहुत खूबसूरत थी। विकास की गैर-मौजूदगी में सपना ने ही सुभद्रा को संभाला था।
सुबह-सुबह नाश्ते की टेबल पर, सपना!! जी मौसाजी कहिए? तुम कल से विकास को अपने प्रॉजेक्ट में शामिल कर लो। विकास सपना बहुत इंटेलिजेंट है, तुम्हें उसका पूरा सपोर्ट मिलेगा।
यह सुनकर कनक को बहुत बुरा लगा। उसने आदेश से डरते-डरते कहा, पापा अगर आप चाहें तो इस प्रोजेक्ट में विकास की मदद कर सकती हूँ हम दोनों की फील्ड एक ही है।
हमारे इस प्रोजेक्ट के लिए कौन ज्यादा सही है यह हमें अच्छे से पता है। तुम कम्पनी आना चाहती हो तो आ सकती हो।
विकास तुम्हे सपना से बहुत कुछ सीखने मिलेगा। हमें सपना पर पूरा भरोसा है आदेश बोले।ठीक है पापा! जैसा आप कहें, मैं ऑफिस के लिए तैयार होने जा रहा हूँ। विकास के पीछे कनक भी चली आई।विकास आपने कुछ कहा क्यों नहीं? किस बारे में कनक?यह प्रोजेक्ट हम दोनों साथ करेंगे,इस बारे में।
तुमने भी सुना नहीं, पापा क्या बोले? उन्होंने जो फैसला लिया है, बहुत सोच-समझकर लिया होगा। फिर मेरे लिए अभी प्रोजेक्ट को समझना बाकी है।
तुम समझ नहीं रहे हो या समझना नहीं चाहते? विकास क्या तुम्हें मेरी काबिलियत पर शक है?या तुम भी अपने पापा की तरह दकियानूसी सोच रखते हो?
क्या हो गया है तुम्हें कनक! देख रहा हूँ जबसे यहाँ आए हैं तुम खुश नहीं हो,क्या हुआ क्या है तुम्हें? माँ-पापा से इतने दिनों बाद मिला, उन्होंने सब भूलकर हमें माफ़ कर दिया, और क्या चाहिए?रही बात ऑफिस जॉइन करने की तो थोड़ा समय दो मुझे मैं पापा को मना लूँगा।
यही तो दुख है, उन्होंने अपने बेटे को माफ़ किया है।अपनी पोती को अपनाया है।कनिका भी दादी से लिपटी रहती है।माँ मुझसे खुश होकर बात नहीं करती।।मैं खुद को अकेला महसूस करने लगी हूँ विकास।
सब ठीक हो जाएगा कनक!मन के घाव अभी हरे है,थोड़ा सब्र से काम लो ,सब अच्छा ही होगा,अच्छा मैं चलता हूँ पापा इंतजार कर रहे हैं।
कनक विकास को जाते देखती रही।काश तुम वो देख पाते जो मैं देख रही हूँ विकास। मुझे तो यह कोई चक्रव्यूह लग रहा है। जिसमें हमारी प्यारी ज़िंदगी की मौत होती दिख रही है।
धीरे-धीरे समय गुजरने लगा, सुभद्रा मन की बुरी नहीं थी ‌।उसकी हरदम यही कोशिश रहती थी कि कनक और कनिका को किसी बात की कमी न हो।
बस कनक के कारण विकास का दूर होना भूल नहीं पा रही थी। शायद इसीलिए उन्होंने अपने दरमियान एक लक्ष्मण रेखा-सी खींच रखी थी ।
कनक इसे गलत ले रही थी।उसे यही लगता था कि सुभद्रा उसे और विकास को साथ नहीं रहने देना चाहती हैं। इसलिए उन्होंने विकास को वापस बुलाया है।इसी बात को लेकर उसमें और विकास में झगड़े बढ़ने लगे।
सुबह कनक ने नाश्ते के समय आदेश से कहा, पापा आप मुझे यह प्रोजेक्ट नहीं देना चाहते तो ठीक है। मैंने फैसला कर लिया है मैं किसी और कम्पनी में नौकरी के लिए अप्लाई करूँगी।
यह सुनते ही विकास सन्न रह गया।यह क्या बात हुई कनक ? पापा से इस तरह बात करने का मतलब ? तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है। पहले तुम कहती थी, काश नौकरी करना मजबूरी न होता तो मैं कनिका को पूरा समय दे पाती।
अब जब समय ही समय है तो कनिका पर ध्यान देने की बजाय इस प्रोजेक्ट को करने की सनक,यह सब मेरी समझ से परे होता जा रहा है।
ठीक समझा विकास तुमने,कमी ही कमी है अब मेरे पास, कनिका पूरे समय माँ से लिपटी रहती है।तुम ऑफिस और उसके काम में,घर में भी कोई काम नहीं करने देता जैसे मैं अछूत हूँ।
मैं ऐसे घुट-घुटकर नहीं जी सकती विकास , मुझे मेरे हिसाब से जीना है। मैं पढ़ी-लिखी हूँ , कोई भी प्रोजेक्ट मेरे लिए मुश्किल नहीं है।अब अंतिम निर्णय पापा का है वो क्या चाहते हैं।
मैं मेरा निर्णय और नियम सिर्फ उन पर ही लागू करता हूँ जो मेरी सुनते हैं।तुम्हें लगता है तुम्हारे साथ गलत हो रहा है तो तुम जो चाहो वो करो कोई नहीं रोकेगा।
कल से ऑफिस आ सकती हो।सपना तुम्हें सब समझा देगी। कहकर आदेश वहाँ से चले गए। सुभद्रा भी उनके पीछे चली गई।
यह तुम ठीक नहीं कर रही हो कनक! तुमसे कहा थोड़ा समय लगेगा सब कुछ ठीक हो जाएगा। पापा को कितना बुरा लगा होगा यह सोचा है तुमने।खैर छोड़ो तुम जो चाहे करो,अब मैं भी नहीं रोकूँगा।
कनक अपनी ज़िद में आगे बढ़ती रही। उसने अपनी कम्पनी में न जाकर, एक छोटी सी कम्पनी में नौकरी जॉइन कर ली।
कनक तुम पागल हो गई हो..? पापा की इज्जत का जरा भी ख्याल नहीं है।सब बातें बना रहे हैं कि आदेश मल्होत्रा बहू को परेशान कर रहे हैं इसलिए बेचारी मजबूरी में नौकरी कर रही है।
लोगों का काम ही यही है।उनकी बेफिजूल की बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है।यह कहकर कनक अपने ऑफिस के काम में व्यस्त हो गई।
तुम्हें क्या हो गया है कनक! तुम ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो!माँ-पापा कोई तुमसे नफ़रत नहीं करता है, सबने हमें दिल से अपनाया है। पापा ने कहा ना, ऑफिस आ सकती हो!
हाँ और सपना के नीचे काम करूँ.? क्यों मुझपर विश्वास नहीं है.? मैं उनकी बहू हूँ तो सारी जिम्मेदारी मुझे सौंपनी थी ना कि सपना को!
तुम हर बात का गलत मतलब निकालने में लगी रहती हो कनक!पता नहीं कैसी सोच हो गई है तुम्हारी, सपना बहुत इंटेलिजेंट है। मुझे भी कई बार उसकी सहायता लेनी पड़ती है तो इसमें बुराई क्या.? तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे पहले कभी किसी की मदद नहीं ली।
विकास तुम बिना वजह बात बढ़ा रहे हो! मुझे सपना के अंडर काम नहीं करना है। मुझे यहाँ किसी लायक नहीं समझा जा रहा तो क्यों समय बर्बाद करूँ।
दोनों की बढ़ रही बहसबाज़ी सुनकर सुभद्रा आ जाती हैं। यह क्या लगा रखा है तुम लोगों ने.? कनक तुम सपना के बारे में कितना जानती हो.?सपना ने विकास के जाने के बाद हमें ही नहीं हमारे बिजनेस को भी संभाला है।
हाँ हम तुम्हारे रिश्ते के खिलाफ थे।पर थोड़ा समय तो दिया होता तो शायद हम दोनों कुछ निर्णय कर पाते। एक बार फैसला सुनाया, हमारी एक बार की ना सुनकर हमें छोड़कर चले गए और जाकर शादी कर ली।
तुम्हें क्या पता कितने दिन तुम्हारे पापा कम्पनी नहीं गए। कितने दिन मैं बिस्तर से लगी रही।उस समय सपना ने आकर घर और ऑफिस दोनों संभाला था। तुम लोगों का पता लगाया कि तुम लोग कहाँ हो।
विकास कनक को सपना के साथ काम करना पसंद नहीं तो कोई बात नहीं,जहाँ उसकी खुशी हो वहाँ नौकरी करे। तुम दोनों घर की सुख-शांति भंग मत करो। मैं नहीं चाहती यह सारी बातें सपना तक पहुँचे। सुभद्रा यह कहकर चली गई।
सुना विकास!माँ और पापा के लिए सपना सब-कुछ है हम कुछ नहीं, मैं अब यहाँ नहीं रहना चाहती। चलो ना विकास वापस चलते हैं हमारी छोटी सी दुनिया में,जहाँ हम बहुत खुश थे।
नहीं कनक मैं माँ-पापा को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला। बहुत दुःख दिया उनको,अब और नहीं। तुम भी यह बात समझ लो और कल से कम्पनी आना शुरू कर दो। चलो अब सो जाओ।
कनक विकास की बातों से सहमत नहीं थी।उसे तो वापस जाने की सनक सवार हो चुकी थी।अब वो वही करती जो विकास के घरवालों को पसंद नहीं होता।
विकास और कनिका दोनों कनक का यह रूप देखकर अचंभित हो रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था आखिर कनक इस तरह से व्यवहार क्यों करने लगी।
सुभद्रा ने भी कई बार कनक को समझाने का प्रयास किया पर नाकाम रहीं। एक दिन उन्होंने विकास को अपने पास बुलाया।
माँ आपने बुलाया.?हाँ बैठो कुछ बात करनी है।देखो बेटा यह रोज-रोज का कलह अच्छा नहीं लगता। मैंने भी कई बार कनक को समझाने का प्रयास किया।पर वो कुछ बताने को तैयार नहीं है।
माँ उसकी जिद्द है सपना को कम्पनी से निकालकर उसे उस जगह पर बिठा दिया जाए तो वह यहाँ से जाने की जिद्द नहीं करेगी। मैं तो समझाकर थक गया। कनक ऐसी नहीं थी माँ, पता नहीं क्या हो गया।
धीरज रखो बेटा!सब ठीक हो जाएगा। तुम खुद को शांत रखो बस।उसे सपना को स्वीकार करना होगा।हम मतलब पूरा होते ही उसे कम्पनी से जाने के लिए कह दें। लोग क्या कहेंगे? मौसी ने बेटा-बहू के आते ही बेटी को निकाल दिया।
कोई बात कभी किसी से छिपी नहीं रहती।सपना को भी सच्चाई का पता चल गया। उसने भी कम्पनी छोड़ने का फैसला कर लिया।
मौसा जी मैं वापस हैदराबाद जाना चाहती हूँ।आप मेरी जगह कनक को प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सौंप दीजिए।कनक एक्सपीरियंस भी है जल्दी सीख जाएगी।
क्यों कुछ हुआ है क्या ?अचानक जाने का फैसला?आदेश ने पूछा। किसी ने कुछ कहा तुमसे ?
नहीं मौसाजी यह मेरे विचार हैं।वैसे भी अब विकास ने सब संभाल लिया है तो मेरे यहाँ रुकने की कोई वजह नहीं बनती।
नहीं तुम बीच में प्रोजेक्ट छोड़कर नहीं जा सकती सपना, मुझे समझ आ रहा है तुम ऐसा क्यों कह रही हो। तुम हमारे बीच की खट-पट के कारण कह रही हो ना..?
हाँ सीधे-सीधे कहो मेरी बातों का बुरा लगा है। मैं कुछ कहूँ तो गलत.. नहीं कहूँ तो भी ग़लत.. कनक तनतनाकर बोली।
कनक मुझे तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं लगा। तुम इस घर की बहू हो,तुम्हारा इस घर और बिजनेस पर पूरा हक है। वैसे भी मैं तो मौसाजी को सहारा देने आई थी,अब तुम लोग आ गए तो मेरी क्या जरूरत है।
नहीं तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है मैं ही यहाँ से चली जाती हूँ।कनक गुस्से में अपना और कनिका का बैग तैयार कर लेती है।
कनक यह क्या कर रही हो.? देखो शांत हो जाओ और मेरी बात ध्यान से सुनो! गुस्से से बात बिगड़ती है। विकास कनक को समझाने का प्रयास करने लगा। कनिका यह देख रोने लगी।
चलो कनिका तुम्हारे पापा को हमारी जरूरत नहीं,हम यहाँ नहीं रहेंगे। विकास मुझे पता होता तुम ऐसे रंग बदलोगे तो मैं तुमसे कभी शादी न करती।
कनक ने कनिका का हाथ पकड़ा तो कनिका हाथ छुड़ा के सुभद्रा से लिपट गई। मैं नहीं जाऊँगी, मैं दादी और पापा के साथ रहूँगी।आप गन्दी हो सबसे झगड़ा करती हो।
वाह!! अब मेरी बेटी को भी मेरे खिलाफ भड़का दिया।यह दिखाई दिया तुम्हें विकास.? कैसे मेरी बेटी को मेरे पति को मुझसे दूर करने की साज़िश रची गई है।
कनक बेटा तुम ग़लत समझ रही हो, आदेश बोले। ऐसा कुछ भी नहीं है हम अपने बेटे की हँसती-खेलती ज़िंदगी क्यों खराब करेंगे।यह प्रोजेक्ट सपना का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसलिए मैं चाहता था इसे वहीं पूरा करे।
विकास को इसलिए इस प्रोजेक्ट के साथ जोड़ा था ताकि वो बिजनेस की बारिकियों को समझ लें।पर बेटा तुम्हें सपना नहीं पसंद तो तुम जो चाहती हो जैसा चाहती हो, वैसा ही होगा।यह प्रोजेक्ट अब तुम ही करोगी।
मुझे भीख नहीं चाहिए पापा जी। मैं पढ़ी-लिखी हूँ खुद को और अपने परिवार को संभाल सकती हूँ। चलो कनिका विकास आप आ रहे हो..?
सॉरी कनक न मैं जाऊँगा न मेरी बेटी तुम्हारे साथ जाएगी।इस बार तुम गलती कर रही हो। तुम कोई बात समझना नहीं चाहती हो तो इस समय तुम्हें समझाना बेकार है। मैं मेरे माँ-बाप नहीं छोड़ सकता।
विकास तुम ऐसा व्यवहार करोगे, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। तुम्हें मेरा साथ छोड़ना था तो मुझसे शादी क्यों की.?क्या यही तुम्हारा प्यार है.? कैसे भूल गए साथ निभाने का वादा.? मैंने भी तुम्हारे लिए अपने माँ-बाप छोड़े हैं।
ना ही मेरा प्यार कम हुआ है कनक ना ही मैं कुछ भूला हूँ। मैं तो सिर्फ इतना कह रहा हूँ,जब माँ-पापा ने सबकुछ भूलकर हमें अपना लिया तो हमारा फर्ज है उनकी खुशियों का ध्यान रखें।
अब तो पापा ने भी तुम्हारी जिद्द मान ली।सपना भी सब छोड़कर जा रही है तो प्रॉब्लम कहाँ है, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।
यही तो समस्या है विकास!जो तुम कुछ समझ नहीं रहे हो। अगर यह सब मुझे पहले ही मिल जाता तो मेरी खुशी दोगुनी हो जाती, मुझे भी लगता सबने मुझे स्वीकार कर लिया,पर अब जो मिल रहा है वो भीख की तरह मिल रहा है,जो मुझे मंज़ूर नहीं।
सपना का सपना उसे ही मुबारक, मैं वापस शिमला जा रही हूँ। मेरे अपने सपनों के घर, तुम नहीं आना चाहते तो ठीक है मैं मेरी बेटी को लेकर जा रही हूँ। और फिर कभी इस घर में वापस नहीं आऊँगी।
तुमने जाने का फैसला कर लिया है तो मैं रोकूँगा नहीं कनिका कहीं नहीं जाएगी।मैंने तुमसे प्यार किया है और करता रहूँगा और तुम्हारे वापस आने का इंतजार करता रहूँगा।
कनिका दौड़कर सुभद्रा के पीछे छुप गई। कनिका चलो! कनक गुस्से में आकर बोली। नहीं मम्मा मैं नहीं जाऊँगी, मैं यहीं पापा के साथ रहूँगी।
आप भी रुक जाओ ना मम्मा मेरे पास दादी के पास।हम साथ रहेंगे,वहाँ जाकर मुझे फिर से डे-केयर में रहना पड़ेगा आप तो नौकरी पर चली जाओगी। मैं फिर से डे-केयर में नहीं रहना चाहती।
 कनक रुक जाओ गुस्सा छोड़ दो बेटा सुभद्रा बोली। कोई ऐसे अपनी गृहस्थी छोड़ देता है क्या? विकास बेटा तुम और कनिका भी चले जाओ हमारे लिए अपनी बसी-बसाई गृहस्थी मत बर्बाद करो।
नहीं माँ अब यह संभव नहीं,यह जाना चाहती है तो इसे जाने दो,चार दिन में सही-गलत समझ आ जाएगा तो खुद लौटकर आ जाएगी।कनक वहाँ से चली जाती है। धीरे-धीरे दिन गुजरते गए।
विकास ने कई बार कनक से लौट आने को कहा।उसे लेने के लिए शिमला भी गया।
कनक चलो घर चलें!कब तक गुस्सा रहोगी हम सबसे.?माँ का फोन भी नहीं उठाती हो, आखिर उनकी क्या गलती है। इतना सब होने के बाद भी वो ही सामने से फोन करती हैं।
सॉरी विकास! तुम जिस घर में लौटने की बात कर रहे हो, वो तुम्हे और तुम्हारी बेटी को को मुबारक। तुम्हारे माता-पिता हमारी शादी के खिलाफ थे और उन्होंने हमें अलग करने के लिए ही यह सब नाटक रचा गया था।
कनक!!अब जिद्द छोड़ भी दो।मेरा नहीं तो कनिका का तो ख्याल करो।वो बच्ची है, कोई कितना भी प्यार दे,पर माँ तो माँ ही होती है।अक्सर छुप-छुपकर रोती है।
तो लौट आओ न विकास!हम फिर से पहले जैसी ज़िंदगी जिएंगे।हम, हमारी बेटी और कोई नहीं।
कनक तुम कितना बदल गई हो। तुम्हारे लिए हमारे प्यार की कोई कीमत नहीं रह गई। तुमने अपने हाथों से हमारी खुशियों को आग लगा दी।अच्छा चलता हूँ, जाते-जाते फिर कहूँगा,घर लौट आओ प्लीज! कहकर विकास लौट गया।
कनक नहीं आई,अब कनक के पास उसके माँ-बाप मिलने आने लगे थे। उन्होंने भी कनक को माफ कर दिया था। और कनक के वापस लौटने की सभी संभावनाओं पर विराम लगा दिया था।
हम पहले से ही जानते थे बेटा! विकास तेरे लायक नहीं है।ये रईसजादे ऐसे ही होते हैं, पर तूने हमारी एक न मानी अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। तुम अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जियो,हम तुम्हारे साथ है।
कनिका अब बच्ची नहीं, बीस वर्ष की सुंदर नवयौवना हो गई थी। सुभद्रा की छत्रछाया में उसे बहुत सुंदर संस्कार मिले थे।आज सुभद्रा और आदेश दोनों ही इस दुनिया में नहीं थे।
विकास की सूनी आँखें आज भी कनक का इंतजार करती थी।कनक अपनी ज़िंदगी में बहुत आगे बढ़ गई थी।कनक मुंबई की एक नामी कम्पनी में सीईओ बने चुकी थी।
विकास,कनिका की जगह शौहरत कमाना उसकी ज़िंदगी का मकसद बन गया था।आज वो बॉस के कहने पर जिस कॉलेज में कम्पनी की और से चीफ गेस्ट बनकर आई थी। वहीं उसकी बेटी कनिका भी पढ़ती थी।
तभी तालियों की गड़गड़ाहट से कनक यादों के भँवर से बाहर निकल आई। कनिका कनक की ही कार्बन कॉपी लग रही थी।
कनक की आँखें कनिका को ढूँढ रही थीं। कनक भीड़ में कहीं गुम हो गई। कनक भी घर लौट गई और दूसरे दिन सुबह ही कॉलेज पहूँच गई।
कॉलेज के प्यून से,प्रिंसिपल सर से कहो कनक महेश्वरी उनसे मिलना चाहती हैं। थोड़ी ही देर में वो अंदर थी।
गुड मॉर्निंग वर्मा जी! गुड मॉर्निंग मैम! कोई काम था तो फोन कर दिया होता, आपने आने की तकलीफ़ क्यों उठाई।
जी जिस काम के लिए आई हूँ वो फोन पर नहीं हो सकता। मुझे उस लड़की से मिलना है कल उसने बेहद खूबसूरत गीत सुनाया था।कल देर हो रही थी तो मिल नहीं पाई, कनिका नाम है ना उसका।
जी हाँ कनिका नाम है। न्यू एडमिशन है,पर बहुत ही प्यारी होनहार,मृदभाषी लड़की है। बहुत ही अच्छे संस्कार दिए हैं उसकी माँ ने।यह सुनकर कनक चिढ़ गई।
बस-बस बातें नहीं बनाइए उसे बुला दीजिए। और हाँ मुझे उससे अकेले में बात करनी है।
जी क्यों नहीं आप मीटिंग रूम में चली जाइए।वो वहाँ है सामने जाकर बायीं तरफ, मैं उसे अभी भेजता हूँ।
कनक चली जाती है।मैं अंदर आ सकती हूँ सर ? तभी कनिका आ जाती है।
यस कनिका! आपसे कोई मिलना चाहता है इसलिए आपको बुलाया है।
पर सर मैं यहाँ किसी को नहीं जानती फिर कौन.?क्या पापा आए हैं.?
नहीं आपके पापा नहीं आए।कल हमारे फंक्शन में जो चीफ गेस्ट आईं थीं, उन्हें आपका गीत बहुत पसंद आया।वो आपसे मिलना चाहती हैं।वो मीटिंग रूम में आपका इंतजार कर रही हैं जाकर उनसे मिल लो।
जी सर!थैंक यू सर !मीटिंग रूम में कनिका कुछ ही देर में कनक के सामने थी। कनिका को अपने इतने करीब देखकर कनक का जी किया उसे खींचकर सीने से लगा ले।पर कुछ सोचकर रुक गई।
आपने बुलाया मैम.? हाँ बेटा!कल रात आपका मधुर गीत सुना, बहुत मीठी आवाज है आपकी। आपने गाना कहाँ से सीखा।
धन्यवाद मैम! मेरी दादी ने एक बार मुझे गीत गुनगुनाते हुए सुना तो उन्होंने मुझे संगीत की शिक्षा दिलवाने का निश्चय कर लिया।आज मैं जो कुछ भी हूँ अपनी दादी की वजह से ही हूँ।
सुभद्रा की तारीफ सुनकर कनक अंदर ही अंदर जल-भुन गई। फिर खुद को संभालते हुए बोली। यहाँ कहाँ पर रहती हो.? कौन-कौन हैं आपके घर में.?
मैम मैं हॉस्टल में रहती हूँ।माँ पहले ही साथ छोड़ गई थी। दादा-दादी के जाने के बाद अब मेरे परिवार सिर्फ मैं और पापा हैं।बस यही हमारी छोटी-सी दुनिया है।
तुम हॉस्टल में न रहना चाहो तो मेरे घर में रह सकती हो। मुझे बहुत खुशी होगी।
सॉरी मैम! मैं आपको नहीं जानती , फिर आपके साथ कैसे रहने आ सकती हूँ। धन्यवाद मैम! मैं यहाँ बहुत खुश हूँ। वैसे भी मेरी दादी ने मुझे हर परिस्थिति में जीना सिखाया है।
किसी और के घर नहीं कनिका बेटा, मैं तुम्हें अपनी घर पर चलने के लिए कह रही हूँ। तुमने मुझे नहीं पहचाना बेटा, मैं तुम्हारी माँ हूँ बेटा,तुम्हारी मम्मा हूँ तुम्हें अपने घर ले जाने आई हूँ, कनक कहते हुए भावुक हो गई।
सॉरी माँ मैं आपके साथ नहीं आ सकती। आपको क्या लगा मैंने आपको पहचाना नहीं ? नहीं मम्मा मैंने आपको कल ही पहचान लिया था।पर आपको आपकी बेटी को बेटी कहने में सोलह साल लग गए।
मम्मा आपने अपने गुरूर में आकर हमारा हँसता-खेलता घर बर्बाद कर दिया। दादाजी खुद को आपके घर छोड़कर जाने का कारण समझते रहे और इसी गम में हमें छोड़कर चले गए।
उनके जाने के बाद दादी भी पापा के अकेलेपन को दर्द को दूर न कर पाने की विवशता से अंदर ही अंदर टूटती रहीं। फिर एक दिन वो भी हमें अकेला और अनाथ करके चली गई।
अब मैं और पापा अपनी छोटी सी दुनिया में एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी हैं। मेरी दुनिया पापा से शुरू और पापा पर खत्म होती है।मुझे किसी और सहारे की जरूरत नहीं है।माँ आपका कीमती वक्त देने के लिए धन्यवाद।
कनिका ऐसा मत कहो बेटा।क्या तुम्हारी ज़िंदगी में मेरे लिए कोई जगह नहीं है। आखिर मेरी गलती क्या थी.?क्या अपना अधिकार माँगना गुनाह है.?
किस बात का अधिकार माँ ? सब-कुछ आपका और पापा का ही था।आप कुछ नहीं भी करती तो भी सब आपका था।
मम्मा दादाजी को हमारे साथ कोई भेदभाव करना ही होता तो हमें वापस ही क्यों बुलाते। सब-कुछ तभी सपना बुआ को सौंप देते।पर आप अपनी ज़िद में कहाँ कुछ देख सकी,बस सबको दर्द देकर चली गईं,अब आपकी ममता जागी है।
आपने मुझसे ज्यादा पापा को दर्द दिया है। उन्होंने हर संभव प्रयास किया पर आप अपनी ज़िद पर अटल रहीं।वो आज भी आपको बेहद प्यार करते हैं। आपकी फोटो छुप-छुपकर देखा करते हैं।
ये सब देखकर मुझे बहुत तकलीफ़ होती है पर पापा का पता न चले इसलिए अनजान बनी रहती हूँ।यह कैसी ज़िद थी आपकी जिसने आपको जान से ज्यादा प्यार किया उसे ही दुख दे बैठी।
बहुत कष्ट होता मुझे, मैं उनके दर्द को कम करने के लिए कुछ नहीं कर सकती।पर हमने आपके बिना जीना सीख लिया है।
आपको आपकी बेटी चाहिए तो पापा को उनका खोया प्यार लौटाना होगा।चलती हूँ फिर मिलने नहीं आइएगा नहीं तो मुझे कॉलेज छोड़कर जाना पड़ेगा।
कनिका चली गई। कनक भी कॉलेज से निकलकर वापस घर लौट आई थी।आज कनिका ने उसकी आँखों पर पड़ा परदा हटा दिया था। पश्चाताप के आँसू बह-बहकर उसका दामन भिगो रहे थे।
काश मैंने ज़िद न की होती तो मुझे और विकास को यूँ एक-दूसरे से दूर न होना पड़ता‌।अब किस मूँह से विकास के पास जाऊँ, अगर उसने मुझे वापस लौट जाने को कहाँ तो.? नहीं-नहीं जाना ठीक नहीं।
फोन करूँ ? हाँ फोन ही करना ठीक रहेगा। बहुत हिम्मत करके कनक विकास को फोन लगाती है।हैलो विकास मैं कनक...
तुम्हें परिचय देने की जरूरत नहीं है कनक! मैं आज भी तुम्हारी आवाज़ भूला नहीं हूँ।कहो कैसे फोन किया ? विकास ने पूछा।
मुझे माफ़ कर दो विकास फफक कर रो पड़ी कनक। मेरी गलती से हमारी खुशियाँ को ग्रहण लग गया। मैं माँ-पापा की भी गुनाहगार हूँ।उनको सुख देने की बजाय दुख लेकर चली आई।
मैं कोई भी रिश्ता न निभा सकी! ना मैं अच्छी माँ बन पाई न अच्छी पत्नी और न ही अच्छी बहू। मुझे तो माफी माँगने का भी हक नहीं है। फिर भी माफी माँगती हूँ। विकास क्या तुम मुझे माफ़ करोगे ?
कनक मैंने तुम्हें कभी भी दोष नहीं दिया,उस तुम्हें जो सही लगा वो किया मुझे जो सही लगा वो मैंने किया। । मैं तुम्हें पहले भी कह चुका हूँ, तुम जब भी वापस आना चाहो आ सकती हो।
दुख इस बात का है कि हमारे अलग होने के कारण मेरे माता-पिता को जो तकलीफ़ हुई, मैं उसे नहीं भूल सकता। तुम अगर वापस आना चाहती हो तो खुशी की बात है, आ जाओ ये तुम्हारा ही घर है। इतना कहकर विकास ने फोन रख दिया।
मुझे पता है तुम अब भी नहीं आओगी कनक। तुम्हें तुम्हारा अभिमान नहीं आने देगा। तुम अब भी चाहती हो मैं सब-कुछ छोड़कर तुम्हारे पास आ जाऊँ, खैर हमने तुम्हारे बिना जीना सीख लिया है।
विकास का अनुमान ठीक था।कनक लौटना तो चाहती थी पर...यह क्या विकास! रुखे-रुखे कह दिया,आना चाहो तो आ सकती हो। खुद नहीं आ सकते हो। नहीं मैं उस घर में नहीं जाऊँगी।
क्या सोच रही हो बेटी ? कब चाय लाकर रखी थी, ठंडी हो गई। कनक की माँ पास बैठते हुए बोली।
माँ आज विकास से बात की थी। मैंने उससे उन गलतियों की माफी भी माँगी जो मैंने नहीं की।पर उसने यह कहकर फोन रख दिया,आना चाहती हो तो आ जाओ।
देख कनक तू अगर झुककर गई तो सारी ज़िंदगी उसकी बातें सुनती रहेगी। मैंने तो पहले ही कहा था उसे तेरी कोई परवाह नहीं है। मेरी बात मानकर रवि से शादी कर लेती तो सुखी रहती।
तू भी दिखा दे उसे, तूने भी उसके बिना जीना सीख लिया है। तुझे भी उसकी जरूरत नहीं।तू कहे तो रवि से बात करूँ वो भी अकेला है तू भी अकेली । विकास को डिवोर्स देकर उससे शादी करले।
हम्म माँ आप सही कह रही हो, मुझे झुकना नहीं चाहिए।पर मैं किसी और से शादी नहीं कर सकती । ज़िंदगी जैसी चल रही है वैसी चलेगी माँ कनक बोली।
मैं उस घर में तो कभी नहीं जाऊँगी यह मेरी ज़िद है।उस घर ने और वहाँ के लोगों ने मेरी खुशियाँ बर्बाद कर दी। कनक ने एक बार फिर अपने मन में पनपते हुए प्रेम पर माँ के कहने से अंहकार की मुहर लगा दी।
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

18 comments:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 07 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. " मैं उस घर में तो कभी नहीं जाऊँगी यह मेरी ज़िद है।उस घर ने और वहाँ के लोगों ने मेरी खुशियाँ बर्बाद कर दी। कनक ने एक बार फिर अपने मन में पनपते हुए प्रेम पर माँ के कहने से अंहकार की मुहर लगा दी।" अपनी जिद के हाथो कितनो ने ही अपना घर बर्बाद कर लिया हैं ,आज के बच्चों के सरपरस्त भी अहंकार रुपी अग्नि में घी डालने का ही काम कर रहे हैं। बहुत ही सुंदर और चिंतनपरक कहानी ,सादर नमन सखी

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  3. कभी कभी गलतफहमी इतनी बढ़ जाती है कि सब विरोधी लगने लगते हैं और इंसान ऐसे निर्णय ले लेता है फिर अहंकार वश चाहकर भी वापस नहीं लौट पाता...
    बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक कहानी..।

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  4. कई बार बेटी के माता पिता की अनावश्यक दखलअंदाजी बेटी का घर बसने में अवरोध पैदा कर देती है। मुझे लगता है कि माता पिता हर संकट में बेटी का साथ दें परंतु सही मार्गदर्शन भी दें, तभी परिवार टूटने से बच सकते हैं।
    कहानी अंत तक बाँधे रखती है।

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    1. जी सही कहा सखी कहानी पसंद करने के लिए आपका हृदयतल से आभार

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  5. अतिसुंदर रचना 🌷🙏

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  6. गलतियो की माफी प्रायश्चित करने से भी नही मिलती ,इसलिए हस्तक्षेप सोच समझ कर ही करना चाहिए ।
    शिक्षा प्रदान करती हुई ,बहुत ही सुंदर रचना ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  7. बहुत बढ़िया कहानी। कई बार महत्वकांक्षाएँ मनुष्य को अपनों से दूर कर देती है ऐसे में सही समन्वय बिठाना ही समझदारी है।

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  8. Anuradha chauhan'जी
    सादर नमस्ते
    कड़वी, सार्थक, बहुत ही सुन्दर एवं उपयोगी कहानी..।
    कहानी अंत तक बाँधे रखती है।
    अपनी लेखन को हम सब से साझा करने के लिए आभार


    कोविड -१९ के इस समय में अपने और अपने परिवार जनो का ख्याल रखें। .स्वस्थ रहे।

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