Monday, April 11, 2022

माँ का दर्द

 

सुबह पाँच बजे घड़ी के अलार्म सुनते ही बिस्तर छोड़ते हुए रमा ने नीलू को प्यार भरी नजर से देखा और सिर पर हाथ फेरकर कमरे से बाहर निकल गई।

सास-ससुर और ननद अभी गहरी नींद सो रहे थे।रमा नहाकर सीधे रसोईघर में चली आई और सुबह का नाश्ता और सास-ससुर के लिए दोपहर का खाना बनाकर अपना और ननद नुपुर का टिफिन पैक करके सबको चाय देने लगी।

"नुपुर उठो चाय पी लो..!"

"हम्म भाभी रख दो..! नुपुर ने आँखें खोले बिना जबाव दिया।

"रख दो नहीं,जल्दी से उठ जाओ वरना लेट हो जाओगी..! मैं माँ पापा को चाय देकर निकल जाऊँगी। मैंने तुम्हारा टिफिन पैक कर दिया है तो लेती जाना..!

"ओके भाभी..! नुपुर ने उठते हुए कहा।

"माँ आपकी और पापा की चाय..! मैं जा रही हूँ,आप लोगों के लिए खाना बनाकर रख दिया है।

"हम्म रख दो और जाओ..! सुहासिनी धीरे से बोली।

"नीलू मेरा प्यारा बच्चा..उठ चल नानी के पास.. मम्मा को देर हो रही है।

"ओ नो मम्मा मुझे अभी और सोना है..! नीलू ठिनककर चादर में लिपट गई।

"प्लीज़ बच्चा.. मम्मा लेट हो गई तो उसे भी पनिशमेंट मिलेगी जैसे आपकी टीचर उधम मचाने वाले बच्चों को देती है।आज आपका टेस्ट भी है ना..?

"आज उसका मन नहीं तो रहने दो ना यहीं..! सुहासिनी ने बाथरूम की ओर जाते हुए कहा।

"माँ यहाँ रहेगी तो पूरा दिन आपको तंग करेगी।चल बच्चा देर हो रही है..!

"नहीं परेशान करूँगी मम्मा..! नीलू ने उठते हुए कहा।रमा ने नीलू की बात अनसुनी करते हुए स्कूल ड्रेस बैग में रखी और नीलू को गोद में लेकर निकल गई। सुहासिनी खिड़की में खड़ी उसे जाते देख बड़बड़ाने लगी।

"अब तो रमा के मायके में सब ठीक हो गया फिर यह रमा क्यों नीलू को मायके छोड़ जाती है। इसके कारण पूरे मोहल्ले में मेरी ही चर्चा रहती है कि कैसी सास है जो अपनी पोती को नहीं सँभाल सकती...!"सुहासिनी बड़बड़ाते हुए प्रकाश से बोली।

"भाभी की क्या ग़लती मॉम..? आपने ही नीलू को सँभालने के लिए मना किया था कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती,अपनी बेटी को अपनी माँ के यहाँ छोड़ो फिर ऑफिस देखो।क्यों डैड..?गलत कह रही हूँ ?यही कहा था ना मॉम ने..? नुपुर की बात पर प्रकाश ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

"डैड आप हर बार चुप क्यों हो जाते हो..? चुप रहने की जगह कभी तो माँ को समझाया कीजिए..? और मॉम आप? अब आपको ही उस नन्ही बच्ची को सँभालना भी पसंद नहीं। भैया के सामने तो नीलू पर जान लुटाती थीं आप ?

"देख नूपुर सुबह सुबह स्मुझसे बहस तो कर नहीं..! सुहासिनी उठकर गमलों में पानी डालने लगीं।

मॉम भैय्या जिंदा थे तब तो आप कितना प्यार करती थीं भाभी से और नीलू से,अब क्या हुआ..? पिछले दो साल से भाभी ही हम सबको इस घर का बेटा बनकर सँभाल रही हैं। आप भी तो दादी का फर्ज निभाइए..?

"तुझे आज ऑफिस नहीं जाना ?बोला न बहस मत करो।बड़ी आई भाभी की चमची।मेरी तो किस्मत ही खराब है जो इस कोरोना ने काल बनकर मेरा प्यारा बेटा छीनकर हमसे सारी खुशियाँ छीन ली और बेटी को अपनी माँ का दर्द नहीं दिखता।हमारा वंश ही मिट गया..!सुहासिनी की आँखों से आँसू छलक पड़े।

"नुपुर क्यों माँ को दुखी कर रही हो..?वो जैसी भी अच्छी है। तुम तो कम से कम अपने और उसके रिश्ते का लिहाज करो।वो माँ है तुम्हारी..! प्रकाश सुहासिनी को रोते देख चुप न रह सके। प्रकाश को नाराज होते देख नुपुर वहाँ से चुपचाप चली गई।

एक गली छोड़कर ही रमा की माँ का घर था।रमा और पियूष एक ही कम्पनी में काम करते थे। वहीं से उनकी पहचान हुई जो जो प्यार में बदल गई।बाद में दोनों ने परिवार वालों की सहमति से शादी कर ली। जिसमें सबकी सहमति थी सिवाय सुहासिनी के।उन्हें रमा नहीं अपनी भाभी की भतीजी अलका बहू के रूप में चाहिए थी।

"रमा मेरी माँ तुमसे ज्यादा देर तक नाराज़ नहीं रहेंगी।वो ऊपर से कड़क पर अंदर से बहुत नर्म दिल हैं। तुम्हें अपना भी लेंगी तो भी ऐसी ही रहेंगी। और एक बात,वो जल्दी अपने जज्बात किसी को दिखाती नहीं।

"पियूष माँ सिर्फ माँ होती है। तुम देखना जल्दी ही वो मुझे दिल से आशीर्वाद देंगी..!

"जरूर देंगी रमा..! तुम हो ही इतनी अच्छी, एक न एक दिन उन्हें भी यह एहसास हो जाएगा कि उनके बेटे ने उनके लिए हीरा चुना है..! पियूष ने रमा को गले लगाते हुए कहा।

शादी के बाद सब बहुत अच्छा चल रहा था।घर में एक नन्ही परी भी आ गई थी। सुहासिनी भी अपनी बहू और पोती के साथ ज़िंदगी का आनंद ले रही थीं। एक दिन पियूष बीमार हो गया। उसने खुद को क्वारंटाइन कर लिया क्योंकि तब तक कोरोना ने अपने पैर पसार लिए थे।

"पियूष प्लीज़ डॉक्टर से दवा ले लिजिए कहीं कोविड का इंफेक्शन तो नहीं हो गया..?रमा चिंतित होकर बोली।

"रमा तुम बेकार ही चिंता कर रही हो। मुझे कुछ नहीं हुआ बस मामूली बुखार है..!"पियूष के लगातार गिरते स्वास्थ्य को देखकर रमा मन ही मन डर रही थी।प्रकाश के समझाने पर भी पियूष नहीं माना तो रमा ने अपने छोटे भाई अमित को फोन करके पियूष की हालत के बारे में बताया।

"जीजू एक हफ्ते से बीमार हैं दी और आप हमें आज बता रही हो..? आप चिंता मत करो दी मैं और पापा अभी गाड़ी लेकर आ रहे हैं और उनके सारे टेस्ट करवाते हैं..! अमित और शर्मा जी पियूष को हॉस्पिटल ले गए और जिस बात का डर था वही हुआ।पियूष को कोविड ही हुआ था।

"दी जीजू को कोविड हुआ है..!

"क्या..? रमा यह सुनकर सिर पकड़कर बैठ गई। पियूष को कोविड..?यह बात जानकर सभी रोने लगे।घर के सभी लोगों का कोविड टेस्ट हुआ पर किसी को भी संक्रमण नहीं हो पाया था क्योंकि पियूष पहले ही क्वारंटाइन हो गया था।

"बहू घबराने की जरूरत नहीं, मैं हूँ ना!सुहासिनी प्लीज़ तुम तो हिम्मत से काम लो, हमारे पियूष को कुछ नहीं होगा। मैं अपनी सारी पूँजी लगा दूँगा पर अपने बेटे को कुछ नहीं होने दूँगा..!कोविड पॉजिटिव सुनकर खुद डरे हुए प्रकाश अपने परिवार को दिलासा दे रहे थे।

पियूष की हालत बिगड़ती जा रही थी।कोविड के कारण पियूष के फेफड़ों में बहुत अधिक संक्रमण फेल गया था जिस वजह से उसे साँस लेने में दिक्कत होने लगी थी। डॉक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी उसे बचाया न जा सका।रमा की खुशियों को कोरोना महामारी ने निगल लिया था।

अभी एक हफ्ता भी नहीं हुआ कि एक दिन.."क्या कह रही हो पीहू..? अमित और पापा भी संक्रमित हो गए ?हे भगवान यह सब हमारे साथ ही होना था क्या..?अभी पियूष की चिता की आग ठंडी भी नहीं हो पाई थी कि रमा के पिता और भाई भी हॉस्पिटल में एडमिट हो गए।

"क्या हुआ भाभी..? नुपुर रमा की आवाज सुनकर उसके कमरे में चली आई।

"नुपुर..रमा रोते हुए नुपुर से लिपट गई।

"भाभी आप रो रहे हो..?

"नुपुर पियूष को हॉस्पिटल ले जाने और एडमिट करने तक अमित और पापा पियूष के संपर्क मे थे।इस वजह से वो भी संक्रमित हो गए..!

"क्या..? नुपुर भी यह सुनकर घबरा गई।रमा का परिवार अभी इस संकट की घड़ी से उभरा भी नहीं था कि अमित और शर्मा जी के कोविड पॉजिटिव होने से फिर सब दुखी हो गए।

"मैं माँ के पास जाऊँ माँ..?रमा ने सुहासिनी से पूछा।

"नहीं कोई जरूरत नहीं..! पियूष की जरा-सी लापरवाही ने आज दोनों परिवारों को इतने बड़े संकट में डाल दिया।वो तो हमें ज़िंदगी भर का दर्द देकर चला गया।पर अब कोई लापरवाही नहीं, नीलू अभी तीन साल की छोटी-सी बच्ची है उसे देखो..!कड़क लहजे में इतना कहकर सुहासिनी अपने कमरे में चली गईं।

"मॉम सही ही कह रहीं हैं भाभी..! इतना कहकर नुपुर भी वहाँ से चली गई।इस विकट स्थिति में मायके वालों का सहारा न बन पाने की पीड़ा से रमा के आँसू छलक पड़े।पीहू और कांता जी को हल्के लक्षण थे तो दोनों जल्दी स्वस्थ हो गए पर अमित और शर्मा जी भी काल की भेंट चढ़ गए।रमा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। वहीं कांता किस्मत की दोहरी मार से डिप्रेशन में चली गईं।

रमा इस हालत में उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकती थी तो उन्हें कुछ दिनों के लिए अपने घर ले आई।कांता की हालत देखकर सुहासिनी ने भी उसके फैसले पर कोई प्रश्न नहीं उठाया।

"बहू अब कैसे क्या होगा..? मेरी तो सेविंग भी खत्म हो गई..!रमा से बात करते हुए प्रकाश दुःखी हो रहे थे। अभी तो नीलू का भी एडमिशन कराना है।समधिन जी और पीहू की जिम्मेदारी, नुपुर के एम बी ए फाइनल इयर की फीस, उसके  फाइनल एग्जाम जो बाकी हैं..!

"पापा थोड़े दिन की तकलीफ़ है फिर सब ठीक हो जाएगा। पापा हम दोनों ने ही नीलू के जन्म के बाद से उसके भविष्य के लिए अलग से सेविंग शुरू कर दी थी।तीन साल की बचत में हमारे पास इतना बैलेंस है कि उसमें नुपुर की फीस भी भर जाएगी और नीलू की एडमिशन भी, फिर मेरी तनख्वाह तो है ही,आप चिंता मत करिए सब ठीक हो जाएगा..!

"बेटा तुम अकेले कैसे मैनेज करोगी..?"

"पापा अकेली कहाँ..?यह नुपुर का लास्ट सेमेस्टर है। उसके बाद उसे भी जल्दी ही अच्छी जॉब मिल जाएगी। फिर देखना सब ठीक हो जाएगा..!रमा ने प्रकाश को सांत्वना देते हुए कहा।

"दी..आपके साथ रहते हुए छः महीने हो गए।माँ अब पूरी तरह से ठीक हो चुकी हैं।अब हमें अपने घर चले जाना चाहिए..!

"क्यों यहाँ कोई तकलीफ़ है..?रमा ने पूछा।

 "नहीं दी..यहाँ कोई तकलीफ़ नहीं,अब स्थिति काफी हद तक सामान्य हो गई है।सोच रही हूँ अपनी पढ़ाई के साथ साथ ऑनलाइन ट्यूशन शुरू कर दूँ। आप कब तक हम सबको अकेले सँभालती रहेंगी.. ?

"क्यों बेटा होती तो नहीं सँभालती..?रमा बोली।

"बेटा पीहू सही कह रही है। फिर बेटी की ससुराल में हमेशा तो यह नहीं सकते। तेरी हिम्मत देखकर अब हमें भी हालात का सामना करने की हिम्मत आ गई है..! कांता ने कहा।

"माँ..?

"जाने दो बहू..जो सुकून इन्हें वहाँ मिलेगा वो यहाँ कहाँ? वैसे भी अपना घर अपना ही होता है।पीहू भी बड़ी है वो सब सँभाल लेगी।और फिर घर दूर कहाँ जाना है..? कभी कभी तुम भी चक्कर लगा आना..!सुहासिनी बोली तो रमा चुप हो गई। पीहू और कांता अपने घर रहने चले गए।

"मॉम दरवाजा बंद कर लो, मैं ऑफिस जा रही हूँ। नुपुर की आवाज सुनकर सुहासिनी सोच के दायरे से बाहर निकली और उठकर बालकनी में चली गईं।

                     " नानी..! नीलू दौड़कर नानी से लिपट गई।

"आ गई मेरी लाडो..!कांता ने पौधों में पानी डालना छोड़ नीलू को गोद में उठा लिया।

"नानी मैं भी डालूँ पानी..?"

"हाँ हाँ क्यों नहीं,जाओ मैं पानी चालू करती हूँ..!कांता ने नल धीमा चालू कर दिया और नीलू पौधों में पानी डालने लगी।

"माँ पीहू को कहना आज से नीलू के एग्जाम है तो इसे ड्रेस पहनाकर ऑनलाइन बैठाए। और इसमें इसका टाइमटेबल है तो..."अरे दीदी मुझे सब पता है। मैं ही दिन भर पढ़ाती और खिलाती हूँ..!रमा की आवाज सुनकर पीहू भी लॉन में आ गई थी।

"ओके बाबा सॉरी..चलती हूँ माँ..!"

"बेटा ऐसा कब तक चलेगा..?"

"मतलब..? मैं कुछ समझी नहीं..?

"बेटा गलत मत समझना।हम नीलू को सँभालने के विषय में नहीं कह रहे और न कह सकते हैं क्योंकि नीलू में हम लोगों की जान बसती है।पर जो लोग तेरी बच्ची नहीं संभाल सकते, उनके साथ रहने का क्या फायदा..? मैं तो कहती हूँ अपना सामान उठा और आजा मेरे पास..!

"माँ यह आप कह रही हो..? पियूष होते तो क्या तब भी आप मुझे घर छोड़ने को कहती..? नहीं ना..?माँ रिश्ते निभाना मैंने आपसे ही तो सीखा है। पापा तो नीलू को सँभालने को तैयार रहते हैं पर उनका बैकबोन का प्रॉब्लम बढ़ गया है इसलिए उन्हें रेस्ट की जरूरत है। आज तो माँ भी उसे घर छोड़ने को कह रही थीं।पर यह उन्हें परेशान कर डालेगी। मैं तो पूरे दिन के लिए चली जाती हूँ अब आप ही बताइए फिर कैसे इसे वहाँ छोड़ दूँ..?

"रहने दे रहने दे, ज्यादा अपनी सास की तरफदारी मत कर, मैं सब समझती हूँ।जब घर से काम करती थीं तब क्या..?तब भी उनके आराम में खलल न पड़े,इसे पूरा दिन यहाँ छोड़ना पड़ता था..! कांता चिढ़कर बोलीं।

"आपको भी तकलीफ़ है क्या..? अगर हाँ तो कल से नीलू को पालनाघर में छोड़ दिया करूँगी..!

"मेरे कहने का यह मतलब नहीं था रमा ।बेटा मेरी बात को गलत मत समझ, मैं तो बस यह कहना चाह रही थी कि सुहासिनी जी मेरी ही उम्र की हैं। फिर भी एक बच्ची को नहीं सँभाल सकती..?पांँच साल की हो गई नीलू, इतनी प्यारी बच्ची को देख पत्थर भी पिघल जाए और तेरी सास तो पता नहीं किस मिट्टी की बनी है। मैं तो कह रही हूँ सब छोड़कर आजा वापस..!

"माँ यह यहाँ आपको परेशान नहीं करती पर वहाँ बहुत उधम मचाती है। इस नटखट को सँभालने में माँ का ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है और कुछ नहीं, वरना वो भी नीलू पर जान छिड़कती हैं।अच्छा चलती हूँ, अभी इन सब बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है..!!रमा ऑटो पकड़कर ऑफिस के लिए निकल गई।

"दी रुको...! पीहू रमा को आवाज देते हुए बाहर आई तब तक रमा निकल गई।

"क्यों क्या हुआ..? कांता ने पूछा।

"दी जल्दी में सिर्फ ड्रेस दे गईं और बुक्स घर पर भूल गईं।अब कैसे पढ़ाऊँ..?

"तू ले आ जाकर,उस बेचारी को सुबह सुबह बहुत काम रहता है इसलिए भूल गई होगी ?यह छोटे छोटे काम सुहासिनी जी भी कर सकतीं हैं पर करेंगी नहीं..! कांता बड़बड़ाने लगी।

"ठीक है अभी कपड़े चैंज करके जाती हूँ..!यह कहकर पीहू अंदर चली गई।    

                  बाहर हवा अच्छी चल रही थी तो सुहासिनी दरवाजा खुला छोड़ बालकनी में आकर गार्डन में खेलते बच्चों को देखने लगी। प्रकाश भी कुर्सी लेकर उसके पास बैठ गए।

"सुहासिनी बहुत मिस करती हो ना नीलू को..?

"हाँ प्रकाश.. उसके बिना यह घर घर नहीं लगता।शाम को जब तक घर नहीं आ जाती तब तक मेरा दिल उसके लिए तड़पता रहता है।अब कांता जी पूरी तरह ठीक हो गईं हैं।अब रमा को उसे मायके ले जाना बंद कर देना चाहिए..!

"तो तुम कह क्यों नहीं देतीं..?"

"आज भी कहा उससे,पहले भी कई बार कह चुकी हूँ और कैसे कहूँ...?"

"नीलू को कांता जी के पास छोड़ने की बात के पीछे तुम्हारा कितना बड़ा त्याग है यह किसे पता? तुम रमा से मन की बात कहोगी नहीं तो उसे कैसे समझेगा सुहासिनी..? तुमने नीलू को सँभालने को क्यों मना किया,अभी भी यह बात बहू और उसके घरवालों से छुपाने की क्या जरूरत है..?

"क्योंकि मुझे महान नहीं बनना। आपको भी किसी को कारण बताने की कोई जरूरत नहीं कि मैंने कांता जी के अकेलेपन को दूर करने के लिए नीलू को सँभालने से मना किया था। प्रकाश मुझे फर्क नहीं पड़ता कोई मेरे बारे में क्या सोचता है। मैं बुरी तो बुरी सही,पर अब जिस उद्देश्य से मैंने यह निर्णय लिया था वो पूरा हो गया है।तो अब मुझे नीलू का दूर जाना अखरने लगा..!

"जानता हूँ सुहासिनी और तुम पर गर्व भी करता हूँ कि अपने बेटे का दर्द भुलाकर,अपनी लाड़ली पोती को खुद से दूर करके तुमने कांता जी को डिप्रेशन से बाहर आने में बहुत बड़ी मदद की है..!

"माँ हूँ ना..! एक माँ का दर्द दूसरी माँ नहीं समझे तो उसके माँ होने पर धिक्कार है। कांता जी यहाँ ज्यादा रहना नहीं चाहती थीं इसलिए मैंने भी उन्हें जाने से नहीं रोका था।पर अपने घर जाकर फिर से अपने पति और बेटे की याद में रो-रोकर फिर डिप्रेशन में ना चली जाएं इसलिए नीलू की जिम्मेदारी खुद लेने की बजाय उन पर डाल दी ताकि वो व्यस्त रहें..!

"जानता हूँ सुहासिनी..! तुम्हारे इस निर्णय से कांता जी नीलू को सँभालने में व्यस्त रहने लगीं। इससे उनका अकेलापन दूर हुआ और उनकी स्थिति में दिन प्रतिदिन सुधार होता गया और आज वो पूर्णतः स्वस्थ हो गईं हैं..!

"आँटी..!

"पीहू तुम..? इतनी सुबह कैसे..?सब ठीक है..?पीहू की आवाज सुनकर सुहासिनी चौंककर पीछे देखने लगी।

"सब ठीक है आँटी।वो दी आज जल्दीबाजी में नीलू की बुक्स यहीं भूल गईं हैं। मैं जाकर ले लूँ..?

"हम्म जाओ रमा के कमरे से जाकर लेलो..! सुहासिनी धीरे से बोली।

"थैंक यू आँटी..?पीहू सुहासिनी से लिपट गई।

"अरे अरे इसमें लिपटने वाली और थैंक यू कहने वाली क्या बात हो गई...? सुहासिनी इतने सालों में पहली बार पीहू को अपने गले लगने पर आश्चर्यचकित हो गई।

"मेरी माँ का दर्द समझने के लिए थैंक यू आँटी।पर एक बात नहीं समझी आँटी इसमें छुपाने वाली क्या बात थी..? यह बात आप सीधे सीधे दी को बता सकती थीं कि आपने नीलू को माँ के पास छोड़ने का निर्णय क्यों लिया..?

"पियूष के जाने की पीड़ा तो हम तीनों ही झेल रहे थे।पर एक दूसरे की हिम्मत बने रहने के लिए अपने दर्द को दिल में छुपाए थे।रमा तो ऑफिस के काम में व्यस्त हो जाती थी और हम दोनों अकेले पड़ जाते थे। ऐसे में अगर मैं सामने से उसे ऐसा करने को कहती तो वो उलझन में पड़ जाती कि माँ के अकेलेपन का सोचूँ या सास-ससुर के..? इसलिए मैंने ही अपने हाथ पीछे खींच लिए। तुम बताओ रमा सच जानकर क्या करती..?

"दी नीलू को आप लोगों से दूर नहीं रखती,भले ही माँ को ठीक होने में लम्बा वक्त लग जाता। थैंक यू सो मच ऑंटी और साथ में बड़ा वाला सॉरी। सॉरी इसलिए कि हम सब आपके बारे में ग़लत सोचते रहे । हममें से कोई नहीं जानता कि आप हम सबसे बहुत प्यार करतीं हैं..!कहते-कहते हुए पीहू की आँखें भर आईं।

"बस बस ज्यादा लाड़ नहीं..नीलू की क्लास का समय हो रहा है।जाओ कमरे से उसकी बुक्स लेकर और रिवीजन कराओ..! सुहासिनी मुस्कुराकर बोली।

थैंक्स आँटी..!पीहू बुक्स लेकर चली गई।

"किसी ने सच ही कहा है कि सच्चाई और अच्छाई ज्यादा दिन छुप नहीं सकती।सच में आज तुम्हारी अच्छाई सबकी नजर में आ ही गई सुहासिनी..!

"अब चने के झाड़ पर मत चढ़ाइए। मैं अपने चाय बनाने जा रही हूँ आप पियेंगे..? सुहासिनी ने हँसते हुए पूछा तो प्रकाश भी हँस पड़े।दो साल बाद सुहासिनी के चेहरे पर सुकून देख प्रकाश अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहे थे।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित

चित्र गूगल से साभार


12 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-4-22) को "ऐसे थे न‍िराला के राम और राम की शक्तिपूजा" (चर्चा अंक 4398) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. बहुत ही सशक्त कथा, अनुराधा दी। काश हर नारी दूसरे नकारी के दर्द को इसी तरह समझे तो सभी इंसान कितने खुश रहेंगे।

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    1. हार्दिक आभार ज्योति जी।

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  3. सच्चाई और अच्छाई ज्यादा दिन छुप नहीं सकती...
    बहुत ही सुंदर कहानी।

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  4. बहुत सुन्दर कहानी है. सबसे बड़ी बात इसका शिल्प है. सुहासिनी के चरित्र को बड़ी अच्छी तरह विकसित किया गया है. बधाई अनुराधा.

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  5. सुंदर! बहुत सुंदर कथा सखी! भावात्मक ताना बाना एक रहस्य सुखद अंत के साथ।

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  6. पारिवारिक रिश्तों, मूल्यों को सहेजती, संदेशपरक कहानी ।
    बधाई अनुराधा जी ।

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    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

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