सूरज की चंचल किरणों ने
डाला धरती पर अपना डेरा
रात भी चल दी सफर पर
समेट कर अपना बसेरा
डाली डाली चिड़िया चहकी
वन उपवन में खुशबू महकी
चली ठंडी पवन पुरवाई
देखो भोर सुहानी आई
धरती ने छोड़ा शबनमी आवरण
जीवन ने भी शुरू किया विचरण
ली ऊषा ने अंगड़ाई
लो भोर सुहानी आई
चटकती कलियां खिलते फूल
होती उन पर भंवरोें की गूंज
तितलियों की बारात है आई
देखो भोर सुहानी आई
सुर्य देव का रथ है आया
रश्मियाँ अपने साथ लाया
प्रकाशित हो वसुंधरा इठलाई
देखो भोर सुहानी आई
***अनुराधा चौहान***
डाला धरती पर अपना डेरा
रात भी चल दी सफर पर
समेट कर अपना बसेरा
डाली डाली चिड़िया चहकी
वन उपवन में खुशबू महकी
चली ठंडी पवन पुरवाई
देखो भोर सुहानी आई
धरती ने छोड़ा शबनमी आवरण
जीवन ने भी शुरू किया विचरण
ली ऊषा ने अंगड़ाई
लो भोर सुहानी आई
चटकती कलियां खिलते फूल
होती उन पर भंवरोें की गूंज
तितलियों की बारात है आई
देखो भोर सुहानी आई
सुर्य देव का रथ है आया
रश्मियाँ अपने साथ लाया
प्रकाशित हो वसुंधरा इठलाई
देखो भोर सुहानी आई
***अनुराधा चौहान***
सुप्रभातम् अनुराधा जी...मासूम अभिव्यक्ति प्यारी सी कविता है..👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार श्वेता जी
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