Monday, September 24, 2018

सुप्रभात

सूरज की चंचल किरणों ने
डाला धरती पर अपना डेरा
रात भी चल दी सफर पर
समेट कर अपना बसेरा
डाली डाली चिड़िया चहकी
वन उपवन में खुशबू महकी
चली ठंडी पवन पुरवाई
देखो भोर सुहानी आई
धरती ने छोड़ा शबनमी आवरण
जीवन ने भी शुरू किया विचरण
ली ऊषा ने अंगड़ाई
लो भोर सुहानी आई
चटकती कलियां खिलते फूल
होती उन पर भंवरोें की गूंज
तितलियों की बारात है आई
देखो भोर सुहानी आई
सुर्य देव का रथ है आया
रश्मियाँ अपने साथ लाया
प्रकाशित हो वसुंधरा इठलाई
देखो भोर सुहानी आई
        ***अनुराधा चौहान***
   

2 comments:

  1. सुप्रभातम् अनुराधा जी...मासूम अभिव्यक्ति प्यारी सी कविता है..👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार श्वेता जी

      Delete