मन के भाव लिखती हूँ,कविता लिखती हूँ,कहानी लिखती हूँ,यह भाव है मेरे मन के,अपनी मन की जुबानी लिखती हूँ।
अनुराधा चौहान
Tuesday, September 25, 2018
मन की तृष्णा
मेरे मन की तृष्णा
मुझको डुबो गई
यह यादें तेरी
दिल में मेरे
खंजर चुभो गई
तृष्णाएं मेरे मन की
कैसे बुझाऊं मैं
जितना भुलाऊं
तुझको उतनी
टूट जाऊं मैं
इतना ही था
शायद तेरे मेरे
साथ का बंधन
तूझे भूलने की
खातिर खुद
को भुलाऊं मैं
अनुराधा (अनु )
बहुत सुंदर रचना ...👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद नीतू जी
Deleteउफ तृष्णा।
ReplyDeleteअप्रतिम।
धन्यवाद कुसुम जी
Deleteधन्यवाद आदरणीय
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