Monday, September 24, 2018

रात के मीत


रात में जागे थे रात में ही खो गए

यह मेरे ख्बाव थे जागते ही सो गए

रात भर सैर की सुबह घर हो लिए

रात के मीत थे रात के ही हो लिए

                 अनुराधा चौहान

2 comments:

  1. ख़्वाबों की तरबियत ही कुछ ऐसी है ...
    बहुत उम्दा ...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दिगंबर जी

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