Tuesday, January 8, 2019

आहट

यह कैसी है आहट
मन को डराए
कहीं दूर पेड़ों के
हिलते हैं साए
सर्द हवाएंँ
कुछ कहती हैं देखो
महकती फिजाओं में
खुशबू के जैसे
कटती नहीं
ज़िंदगी कब तेरे बिन
सुनाई देती नहीं
तेरे कदमों की आहट
घरौंदों में पंछियों का
देखकर बसेरा
याद आता है
तेरे साथ का सबेरा
कलियांँ चटककर
फूल बनने लगी
बदलने लगी हैं
रुख अपना हवाएंँ
आ जाओ अब
कहीं उम्र बीत न जाए
टूट जाए यह दिल 
और आवाज़ न आए
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

8 comments:

  1. वाह !!!! बहुत खूब...... ,अनुराधा जी

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  2. वाह !! प्रेम से सराबोर सुन्दर रचना 👌
    सादर

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  3. आप बहुत अच्छा लिखती हैं।मैं ही स्वरचित रचना के लिए ब्लॉग use कर रही।

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    1. धन्यवाद निधि जी आपका स्वागत है ब्लॉग पर

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  4. सुंदर अति भाव पूर्ण रचना सखी ।
    अप्रतिम ।

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