यह कैसी है आहट
मन को डराए
कहीं दूर पेड़ों के
हिलते हैं साए
सर्द हवाएंँ
कुछ कहती हैं देखो
महकती फिजाओं में
खुशबू के जैसे
कटती नहीं
ज़िंदगी कब तेरे बिन
सुनाई देती नहीं
खुशबू के जैसे
कटती नहीं
ज़िंदगी कब तेरे बिन
सुनाई देती नहीं
तेरे कदमों की आहट
घरौंदों में पंछियों का
देखकर बसेरा
याद आता है
तेरे साथ का सबेरा
घरौंदों में पंछियों का
देखकर बसेरा
याद आता है
तेरे साथ का सबेरा
कलियांँ चटककर
फूल बनने लगी
बदलने लगी हैं
रुख अपना हवाएंँ
आ जाओ अब
कहीं उम्र बीत न जाए
आ जाओ अब
कहीं उम्र बीत न जाए
टूट जाए यह दिल
और आवाज़ न आए
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
वाह !!!! बहुत खूब...... ,अनुराधा जी
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteवाह !! प्रेम से सराबोर सुन्दर रचना 👌
ReplyDeleteसादर
बेहद आभार सखी
Deleteआप बहुत अच्छा लिखती हैं।मैं ही स्वरचित रचना के लिए ब्लॉग use कर रही।
ReplyDeleteधन्यवाद निधि जी आपका स्वागत है ब्लॉग पर
Deleteसुंदर अति भाव पूर्ण रचना सखी ।
ReplyDeleteअप्रतिम ।
बेहद आभार सखी
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