उड़ चला मन मेरा
बादलों के पार चला
बादलों को देख कर
पल भर को ठिठक गया
बूंँदें गिरी बारिश की
खुशियों से झूम उठा
तभी किसी लम्हे को
दिल ने फिर याद किया
मन में एक तड़प उठी
तन्हा मेरी ज़िंदगी
चुपके से सिसक उठी
डूब गई यादों में
उन हसीं मुलाकातों में
बहने लगे बारिश संँग
मन के कोमल भाव भी
फिर से हरे हो उठे
मन के पुराने घाव भी
पुरवाई चलने लगी
मन को बहलाने लगी
यादें जो जागी थी
उनको भुलाने लगी
मन को समझा कर
यादों को भूलकर
उड़ने लगा मन फिर से
बादलों के संग झूमकर
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बादलों के पार चला
बादलों को देख कर
पल भर को ठिठक गया
बूंँदें गिरी बारिश की
खुशियों से झूम उठा
तभी किसी लम्हे को
दिल ने फिर याद किया
मन में एक तड़प उठी
तन्हा मेरी ज़िंदगी
चुपके से सिसक उठी
डूब गई यादों में
उन हसीं मुलाकातों में
बहने लगे बारिश संँग
मन के कोमल भाव भी
फिर से हरे हो उठे
मन के पुराने घाव भी
पुरवाई चलने लगी
मन को बहलाने लगी
यादें जो जागी थी
उनको भुलाने लगी
मन को समझा कर
यादों को भूलकर
उड़ने लगा मन फिर से
बादलों के संग झूमकर
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत सुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteलाजवाब रचना अनुराधा जी !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteयही सही है पुरानी दुख भरी बातें भुलाकर बसंत की पुरवाइयों संग मन को उड़ने दें....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...।
बहुत बहुत आभार सखी
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