कविता लिखतीं हूँ
कहानी लिखतीं हूँ
यह सब मैं कलम की
जुबानी लिखती हूँ
माँ की ममता लिखतीं हूँ
सजनी की प्रीत लिखतीं हूँ
दुश्मन का करों संँहार
वीरों की हुंँकार लिखतीं हूँ
यह सब मैं कलम की
जुबान लिखतीं हूँ
यह कलम नहीं तलवार है
वीरों की ललकार है
आजादी का नारा है
विजय का जयकारा है
जो काम न हो बरछी भालों से
वो होता कलम की ताकत से
जनता की आवाज़ बनती
जनमानस की आग बनती
शहीदों के चरणों में
शत् शत् प्रणाम लिखतीं हूँ
यह सब मैं कलम की
जुबानी लिखतीं हूँ
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी
ReplyDeleteकविता लिखतीं हूँ
ReplyDeleteकहानी लिखतीं हूँ
यह सब मैं कलम की
जुबानी लिखती हूँ
माँ की ममता लिखतीं हूँ
सजनी की प्रीत लिखतीं हूँ
दुश्मन का करों संँहार
वीरों की हुंँकार लिखतीं हूँ...बहुत सुन्दर
सादर
बहुत बहुत आभार सखी
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