मत रोको बहने दो
भावों के सुंदर झरने को
मत रोको बहने दो
सरगम सा यह गीत बने
सजनी की इसमें प्रीत जगे
चमकें सदा भावों के मोती
लेकर सदा ज्ञान की ज्योति
वाणी की मधुरता को
मत रोको बहने दो
भावों के सुंदर झरने को
मत रोको बहने दो
भावनाओं का जन्म न होता
सुंदर सरल गीत नहीं बनता
साहित्य की नदिया न बहती
जीवन में सरगम न रहती
मत रोको बहने दो
भावों के सुंदर झरने को
मत रोको बहने दो
इसके प्रवाह में बहकर ही
भावों के सुंदर हार बने
साहित्य के ऋतुराज की
यह अनुपम बहार है
मत रोको बहने दो
भावों के सुंदर झरने को
मत रोको बहने दो
बसंत-सी बहार लिए
रचनाओं का संसार सजे
तेज चमकता सूरज जैसे
भावों के सब मोती ऐसे
साहित्य की यह शान है
मत रोको बहने दो
भावों के सुंदर झरने को
मत रोको बहने दो
***अनुराधा चौहान***
वाह बहुत सुन्दर सृजन सखी मत रोको भावों के झरने को।
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
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