गुनगुनाने लगी हैं हवाएँ
तेरे आने के पैगाम सुनाएँ
महकने लगी मेरे मन की बगिया
खिल उठी हों जैसे जूही की कलियां
बहका-सा आलम महकी फिज़ाएँ
तेरे प्यार की कहानी सुनाएँ
लो चमकने लगा चाँद अब आसमां पर
छेड़ती चाँदनी मुझे लहराकर आँचल
वो टूटा तारा तुमको भी दिखा क्या
जिससे माँगी थी मैंने यह दुआ जब
होती है हलचल तो मचलता है दिल
तुम फिर से न आए
सोचकर डरता है दिल
देखो गुनगुनाने लगे हैं नज़ारे
कहीं बुझ न जाए दीप सारे
अब आ भी जाओ लौटकर घर वापस
घर जैसा सुख और कहीं न मिलेगा
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
अच्छी कविता ...
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Delete