हे मुरलीधर हे गिरधारी
तेरी महिमा बड़ी निराली
गोकुल में लीला रचाई
रोक अहंकारी इंद्र की पूजा
गोवर्धन की पूजा करवाई
देख कुपित हुए इंद्र अतिभारी
बरसा की फिर झड़ी लगा दी
लगी डूबने गोकुल नगरी
बहने लगे सबके घर द्वार
त्राहि-त्राहि मची गोकुल में
व्यथित हुए सब नर-नारी
देख इंद्र का कोप कृष्ण ने
फिर से एक लीला रचाई
उठा लिया छोटी उंगली पर
गोवर्धन पर्वत विशाल
आन बसा पर्वत के नीचे
पूरा गोकुल धाम
टूटा अंहकार इंद्र का
कर ली अपनी भूल स्वीकार
फैली हर और खुशी की लहर
नाच उठी गोकुल नगरी
हे गोवर्धनधारी तेरी महिमा बड़ी निराली
***अनुराधा चौहान***
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