क्रौध की तपन से
न जलाओ तन और मन
जीवन सफल बनाओं
करके कुछ अच्छे कर्म
शीतल रखो वाणी
शीतल रखो मन
भरलो अपने जीवन में
तुम प्रेम के रंग
कौध की तपन से
जलते जीवन के रंग
दूर होते हैं रिश्ते
नीरस होता है मन
काटने को दौड़ता
केवल अकेलापन
क्रौध की तपन से
यूं न नष्ट करो जिंदगी
अच्छे कर्म के बदले
मिलती है यह जिंदगी
क्यों इस तपन में
खोते हो वजूद अपना
रह जाओगे अकेले
खुशियां बन जाएंगी सपना
करो प्रीत की बारिश
तपन मिटा दो मन की
गले लगा लो सबको
यही पूंजी है जीवन की
***अनुराधा चौहान***
छोड़ रे प्राणी क्रोध का नशा ,
ReplyDeleteवाह सार्थक रचना ।
धन्यवाद सखी
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 नवम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदा जी
Deleteबहुत सुन्दर अनुराधा जी.
ReplyDeleteहम पापी आपके उपदेशों पर चलने की कोशिश करेंगे.
बहुत बहुत आभार आदरणीय आपके मार्गदर्शन की हमें जरूरत है हम भला आपको कैसे उपदेश दे सकते हैं 🙏
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