Sunday, July 7, 2019

कालिंदी भाग (7)


गायत्री के आँखों से आँसू बहने लगे सोचने लगी काश गगन मिल जाता तो उससे माफी माँगकर कालिंदी और गगन की शादी करा देती,पर गगन अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ गया होगा अपना घर बसा चुका होगा।
क्या सोच रही हो माँ..! कुछ नहीं कालिंदी कुछ भी तो नहीं गायत्री आँसू छुपाकर मुस्कुराते हुए बोली।तो फिर आओ आज़ बहुत खुशी का दिन पार्टी तो बनती है क्यों सही कहा ना नंदा,मुक्ता हाँ दी सही कहा। थोड़ी देर के लिए ही सही  कालिंदी ने माँ का मन दूसरी बातों में उलझा दिया।
एक महिना बीत गया इतवार का दिन... डोरबेल बजती है मैं देखती हूँ माँ कालिंदी दरवाजा खोलती है सामने मुग्धा खड़ी थी।तू.. मेरी जान... कब आई कहाँ है आजकल बिट्टू कैसा है विकास कैसे हैं..? कालिंदी एक साँस में कई सवाल कर देती है। अरे अंदर तो आने दे उसे गायत्री बोली दरवाजे पर ही सारे सवाल करेगी।
हाँ आंटी देखो न मेरी चिंता नहीं विकास कैसे बिट्टू कैसा है मुझे गले लगाना भूल गई। शिकायत भरे लहजे में बोलते हुए मुग्धा गायत्री से गले मिलती है कैसी है बेटा अच्छी हूँ आप कैसी हैं।
मैं भी अच्छी हूँ।
जाओ दोनों कमरे में जाकर बात करो मैं चाय नाश्ता लेकर आती हूँ, जी आंटी मुग्धा कालिंदी के साथ दोनों कमरे में आ जाती हैं। मुग्धा,गगन,कालिंदी तीनों ही बचपन के साथी थे। मुग्धा... बहुत दिनों बाद तुझे देख पुराने दिन याद आ गए ...हम्म मुझे भी।
कालिंदी तूने अपने बारे में क्या सोचा...किस बारे में.. लाइफ में आगे बढ़ने के बारे में..तू मुझसे मिलने आई है या सलाह देने कालिंदी थोड़ा चिढ़ कर बोली।अररे बाबा नाराज क्यों होती है कब-तक यूँ अकेली रहेगी बता..इतने सालों में गगन मिला तुझे क्या पता वो यहाँ है भी या नहीं।
वो यहीं है मेरे आस-पास मुझे उसका अहसास है बस सामने नहीं आना चाहता...पर यह तेरा वहम भी तो हो सकता है क्या पता वो शादी कर चुका हो मुग्धा बोली। नहीं उसने वादा किया है मुझसे मेरा इंतजार करेगा कालिंदी ने कहा। तो मिलने तो आता फोन तो करता... मैंने कसम दी थी जब-तक मैं न कहूँ वो मेरे घर पर नहीं आए और फोन भी न‌ करे.. मैं ही उसे फोन करूँगी.. तो किया कभी... नहीं हिम्मत नहीं हुई।
मौसम बहुत सुहाना हो रहा था माँ चाय-नाश्ता रख गई दोनों सहेलियाँ बालकनी में पुरानी बातों में मग्न थी, तभी गगन की कार वहाँ से गुजरी कालिंदी को देखकर गगन ने कार रोकी ही थी कि कालिंदी की उस पर निगाह पड़ी।
आज इसकी खैर नहीं..तू रुक मैं अभी आती हू़ँ..अरे क्या हुआ बता तो सही.. अरे इस कार वाले ने दिमाग खराब कर रखा है जब भी यहाँ से निकलता है कार साइड में लगाकर मेरी खिड़की में देखता है ‌। अभी बैठे देखा फिर कार रोक दी...अरे जाने दे ना यार तू है ही इतनी खूबसूरत कि कोई भी पागल हो जाए।
घूमने चले कालिंदी..कहाँ... वहीं अपनी फेवरेट जगहों पर बहुत दिन बाद तो मिले हैं बिट्टू भी दो साल का हो गया माँ आराम से सँभाल लेगी। पहले घूमेंगे, फिर शापिंग मॉल और बाद में डिनर के लिए आज का दिन तेरे नाम।
दोनों घूमने निकल पड़ती हैं फिर जैसे ही शापिंग मॉल के अंदर जाने लगी कि कालिंदी उस कार को भी शापिंग मॉल के पार्किंग एरिया में रुकते देखती है। मुग्धा यह तो हमारा पीछा करते हुए यहाँ भी आ गया कौन है यह... क्या चाहता है।
तू अंदर चल कालिंदी में इसको सबक सिखाकर आती हूँ.. मुग्धा गगन की और चल देती है...क्रमशः...
***अनुराधा चौहान***


2 comments:

  1. बहुत सुंदर क्रम बांधा है ,आगे की कहानी जानने की उत्सुकता बड़ रही है अनुराधा जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार ऋतु जी

      Delete