यह नन्हीं सी चिड़िया
नन्हा सा इसका बसेरा
आज यहां कल वहां
कब उठ जाए इसका डेरा
काट दिया उस पीपल को
जिस वृक्ष पर कभी यह रहती थी
टूटा घौंसला बिखरे सपने
चोटिल होकर रोती थी
हाथ बढ़ाया इसको छूने
झट हाथ पर मेरे बैठ गई
जैसे पूंछ रही हो मुझसे
यह किस गलती की सज़ा मिली
कल तक चहकती बच्चों सँग
उन सब से यह बिछड़ गई
अनकहा सा इक रिश्ता
मेरा इसके संग बन गया
उसकी आँखों का दर्द
मेरी आँखों से बह निकला
यूं ही कटते रहे वृक्ष तो
वजूद इनका मिट जाएगा
सिमट रहा अस्तित्व इनका
कल नाम भी इनका मिट जाएगा
क्यों मानव देता है सज़ा
इन निर्दोष पक्षियों को
छीनकर इनसे इनका बसेरा
क्या चैन मिलेगा तुमको भी
जब वृक्ष ही न बचेंगे धरती पर
तो जीवन कैसे संभव है
***अनुराधा चौहान***
(चित्र गूगल से साभार)
(चित्र गूगल से साभार)
बहुत सुन्दर, सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteधन्यवाद सुधा जी
Deleteअच्छे शब्द संयोजन के साथ सशक्त अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteइंसान की चालों के चलते आज इसका ख़त्म होने का दर है संसार से ...
ReplyDeleteकाश इंसान जागे ...
सही कहा आपने बहुत बहुत आभार आदरणीय
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