Tuesday, June 25, 2019

तपिश मिटे अब

"आस का पँछी"इत-उत डोले
आसमां में मेघ टटोले
"नीला आकाश"दिखे सूना
"आखिर क्यों"सतावे बदरा
"दिल"को क्यों तरसावे बदरा
आ जाओ अब छा जाओ
मेघों पानी बरसा जाओ
हो"तेरी मेहरबानियाँ"अब
"बारिश"जम कर हो जाने दो
प्रभू"सावन को आने दो"
रिमझिम फुहारों के संग झूमकर
तन-मन को भीग जाने दो
मेघ मल्हार गाए झूमकर
टापुर टुपुर टपके बूँदे
सुन लो"धरती कहे पुकार के"
अब बरखा बहार आ जाओ
थक गई"आँखें" राह निहारे
"बादल"आएँ घिर-घिर जाएँ
"दामिनी" तड़के "दिल"घबराए
"आशा"की ज्योति मन में जगी
बैरी पवन फिर छलने लगी
"आँख-मिचौली"बहुत हुई अब
हो"बरसात"तो तपिश मिटे अब
***अनुराधा चौहान***

5 comments:

  1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  2. "आस का पँछी"इत-उत डोले
    आसमां में मेघ टटोले
    "नीला आकाश"दिखे सूना
    "आखिर क्यों"सतावे बदरा
    "दिल"को क्यों तरसावे बदरा।

    बरखा को स्नेह मनुहार से आमंत्रित करती सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी

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  3. वाह !! सुन्दर प्रयोग...फिल्मों के नामों को कितनी खूबसूरती से संजोया है आपने ... बहुत सुन्दर सृजन अनुराधा जी ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी

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