Tuesday, June 11, 2019

घर एक मंदिर

संस्कारों की नींव पर 
आदर्शों की मजबूत दीवारें
हिला न पाए कोई बाधाएँ
प्रेम विश्वास जड़ें जमाए
बड़ों का आशीष अमृत बरसाए
जड़ों की मजबूत पकड़
बाँधे रिश्तों को बड़े प्यार से
नैतिक नियमों का मूल्य सिखाएँ
इंसानियत का मोल बताएँ
स्त्री का सम्मान जहाँ पर
बेटी की खुशियाँ वहाँ पर
प्रेम जिसका आधार प्रथम हो
बेटों को संस्कार दिए हों
बचपन जहाँ हँसे खुलकर
माँ के पायल की छन-छन
भाभी की चूड़ियों की खनक
बहनों की खुशियाँ झलकें
घर में सदा संगीत बनकर
वह घर सदा मंदिर सा लगे
जहाँ हर रिश्ते को सम्मान मिले
यह सीख नहीं सच्चाई है
बिन रिश्तों के किसने खुशियाँ पाईं है
अमूल्य निधि यह जीवन की
बड़े जतन से रखना सँभालकर
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

10 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १७ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  2. वाह!!क्या बात है ।बहुत सुंदर भाव प्रिय सखी ।

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  3. नैतिक मूल्यों से सजी बहुत सुंदर प्रस्तुति सखी।
    काश समाज का ऐसा ही स्वरूप हो ।
    सस्नेह।

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  4. बिन रिश्तों के किसने खुशियाँ पाईं है
    अमूल्य निधि यह जीवन की
    बड़े जतन से रखना सँभालकर
    सिर्फ रिश्तो के संभाल लेते तो आज सब कुछ सभला होता ,बेहतरीन सीख देता सुंदर रचना ,सखी

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  5. बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति।

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