हम बच्चों को उनकी शैतानियों को रोकने के लिए किसी न किसी तरह का डर दिखाकर डरा देते हैं पर हम यह नहीं जानते कि कभी-कभी यह डर बेहद डरावना रूप ले लेता है और उसका अंजाम कितना ख़तरनाक हो सकता है।
मेरे बचपन की एक सच्ची घटना है,मैं बहुत छोटी थी यही कोई नौ या दस साल की बहुत शैतान थी स्कूल ज्यादा दूर नहीं था तो मोहल्ले के सारे बच्चे,दीदी,भैया हम सब साथ ही खूब मस्ती करते हुए स्कूल जाते थे।
रास्ते में एक गली पड़ती थी वहाँ एक घर में मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़की अपने माता-पिता के साथ रहती थी शरीर से तो बाईस,तेईस साल की उम्र की पर दिमाग से नन्ही बच्ची। यह बात मुझे बड़े होने पर समझ आई तब तो मैं खुद एक बच्ची थी।
हम बच्चे स्कूल से छूटते तो उधम मचाते हुए जब भी गली से निकलते हमारी आवाज़ से वो जोर-जोर से चिल्लाने लगती थी शायद हम लोगों के साथ वो भी खेलना चाहती थी आखिर मन से तो बच्ची ही थी पर हम बच्चे यह सब कहाँ समझते उसकी आवाज़ की नकल करते भागते थे।
एक दिन स्कूल से लौटते समय उस घर में रहने वाली आंटी बाहर खड़ी मिली वो हम लोगों का इंतज़ार कर रही थी हमारे पास आते ही हम लोगों को रोक कर डराते हुए बोली यहाँ से जब भी निकला करो तो चुपचाप निकला करो... क्यों?? हम बच्चों ने एक साथ पूछा। इस पर आंटी ने कहा यह जो खिड़की दिख रही है ना,उसमें भूतनी रहती है वो तुम बच्चों की आवाज़ से गुस्सा होकर चिल्लाने लगती है इसलिए चुपचाप निकला करो वरना वो तुम लोगों को मार डालेगी ।
हम बच्चे उन आंटी की बात सुनकर बहुत डर गए फिर सब समूह बनाकर स्कूल आने-जाने लगे।
एक दिन किसी कारण से मैं थोड़ा पीछे रह गई और सब लोग आगे निकल गए वैसे पहले भी कई बार घर अकेली आ चुकी थी ज्यादा दूर नहीं था घर बस दो गली छोड़कर ही था। पर उस दिन बहुत डर लग रहा था।
एक तो अकेली ऊपर से आंटी की कही बातें याद आ रही थी डर भी बहुत लग रहा था गली से निकलते हुए निगाहें खिड़की पर थी, धड़कनें तेज थी और उस दिन किस्मत भी धोखा दे गई जैसे ही खिड़की के सामने से निकलने वाली थी कि डरावनी फिल्मों के जैसे अचानक खिड़की खुली और वो दीदी मुझे देखते ही जोर-जोर से चिल्लाने लगी शायद उन्हें मेरे साथ खेलना था।
और जैसे ही मैंने यह नजारा देखा ऐसी भागी सीधे घर जाकर रुकी... डर के मारे रात भर तेज बुखार चढ़ा रहा नींद में भी डर कर चीखने लगती थी उस दिन के बाद इतना डर गई कि स्कूल जाने को ही तैयार नहीं थी मम्मी ने बहुत समझाया उन दीदी से मिलवाया फिर भी मेरी जिद्द पर दूसरे स्कूल में जो घर के एकदम पास था उसमें मेरा दाखिला करवाया।उस हादसे को मैं आज भी नहीं भूली उस दिन की याद आज भी बड़ी डरावनी लगती है।
***अनुराधा चौहान***
मेरे बचपन की एक सच्ची घटना है,मैं बहुत छोटी थी यही कोई नौ या दस साल की बहुत शैतान थी स्कूल ज्यादा दूर नहीं था तो मोहल्ले के सारे बच्चे,दीदी,भैया हम सब साथ ही खूब मस्ती करते हुए स्कूल जाते थे।
रास्ते में एक गली पड़ती थी वहाँ एक घर में मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़की अपने माता-पिता के साथ रहती थी शरीर से तो बाईस,तेईस साल की उम्र की पर दिमाग से नन्ही बच्ची। यह बात मुझे बड़े होने पर समझ आई तब तो मैं खुद एक बच्ची थी।
हम बच्चे स्कूल से छूटते तो उधम मचाते हुए जब भी गली से निकलते हमारी आवाज़ से वो जोर-जोर से चिल्लाने लगती थी शायद हम लोगों के साथ वो भी खेलना चाहती थी आखिर मन से तो बच्ची ही थी पर हम बच्चे यह सब कहाँ समझते उसकी आवाज़ की नकल करते भागते थे।
एक दिन स्कूल से लौटते समय उस घर में रहने वाली आंटी बाहर खड़ी मिली वो हम लोगों का इंतज़ार कर रही थी हमारे पास आते ही हम लोगों को रोक कर डराते हुए बोली यहाँ से जब भी निकला करो तो चुपचाप निकला करो... क्यों?? हम बच्चों ने एक साथ पूछा। इस पर आंटी ने कहा यह जो खिड़की दिख रही है ना,उसमें भूतनी रहती है वो तुम बच्चों की आवाज़ से गुस्सा होकर चिल्लाने लगती है इसलिए चुपचाप निकला करो वरना वो तुम लोगों को मार डालेगी ।
हम बच्चे उन आंटी की बात सुनकर बहुत डर गए फिर सब समूह बनाकर स्कूल आने-जाने लगे।
एक दिन किसी कारण से मैं थोड़ा पीछे रह गई और सब लोग आगे निकल गए वैसे पहले भी कई बार घर अकेली आ चुकी थी ज्यादा दूर नहीं था घर बस दो गली छोड़कर ही था। पर उस दिन बहुत डर लग रहा था।
एक तो अकेली ऊपर से आंटी की कही बातें याद आ रही थी डर भी बहुत लग रहा था गली से निकलते हुए निगाहें खिड़की पर थी, धड़कनें तेज थी और उस दिन किस्मत भी धोखा दे गई जैसे ही खिड़की के सामने से निकलने वाली थी कि डरावनी फिल्मों के जैसे अचानक खिड़की खुली और वो दीदी मुझे देखते ही जोर-जोर से चिल्लाने लगी शायद उन्हें मेरे साथ खेलना था।
और जैसे ही मैंने यह नजारा देखा ऐसी भागी सीधे घर जाकर रुकी... डर के मारे रात भर तेज बुखार चढ़ा रहा नींद में भी डर कर चीखने लगती थी उस दिन के बाद इतना डर गई कि स्कूल जाने को ही तैयार नहीं थी मम्मी ने बहुत समझाया उन दीदी से मिलवाया फिर भी मेरी जिद्द पर दूसरे स्कूल में जो घर के एकदम पास था उसमें मेरा दाखिला करवाया।उस हादसे को मैं आज भी नहीं भूली उस दिन की याद आज भी बड़ी डरावनी लगती है।
***अनुराधा चौहान***
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