दिल मेरा नाज़ुक दर्पण-सा
हाल दिलों के न समझ सका
वार लगे कुछ दिल पर ऐसे
चोट से उनकी न सँभल सका
किर्चें होकर बिखरा फिर भी
अक्स तेरा ही उभरता रहा
दिल मेरा नाज़ुक दर्पण-सा
ठेस लगी तो टूट गया
भूले से भी न भूलेंगे यह
झूठे तेरे कसमें वादे
बेवफ़ाई के किस्से कहते रहेंगे
कब तक सँभालें दिल को अपने
टूट गए जो देखे सपने
होता ग़र जो मन दर्पण-सा
पढ़ लेता यह झूठी वफ़ाएँ
हुआ दीवाना इस सूरत का
हाल दिलों का जान न सका
दिल मेरा नाज़ुक दर्पण-सा
ठेस लगी तो टूट गया
मोहपाश में बँधा कुछ ऐसे
अच्छा-बुरा न सोच सका
दिल मेरा नाज़ुक दर्पण-सा
ठेस लगी तो टूट गया
अब न छलना किसी को ऐसे
मन रखना दर्पण के जैसे
सह न सके कोई घाव यह दिल के
रिसते रहेंगे जख्म यह दिल के
भोले चेहरे में छुपा हुआ यह
पत्थर दिल पहचान न सका
दिल मेरा नाज़ुक दर्पण-सा
ठेस लगी तो टूट गया
दिल मेरा नाज़ुक दर्पण-सा
***अनुराधा चौहान***
टूट गए जो देखे सपने
ReplyDeleteहोता ग़र जो मन दर्पण-सा
पढ़ लेता यह झूठी वफ़ाएँ
हुआ दीवाना इस सूरत का
हाल दिलों का जान न सका
दर्द ही दर्द।
सुंदर सृजन
सहृदय आभार सखी
Deleteएक दिल बेचारा ना जाने कितनी बार टूटता रहा और ना जाने कितनी बार जुड़ संभलता रहा.. अंतः यह विचारा कि अब ना टूटेगा
ReplyDeleteबहुत सुंदर उकेरा गया भाव
आपकी सुंदर प्रतिक्रिया पाकर मेरी मेहनत सफल हो गयी हार्दिक आभार विभा दी
Deleteलाज़बाब!!!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteपत्थर दिल पहचान न सका
ReplyDeleteदिल मेरा नाज़ुक दर्पण-सा
ठेस लगी तो टूट गया
दिल मेरा नाज़ुक दर्पण-सा
बहुत सुंदर, अनुराधा दी।
सस्नेह आभार ज्योति बहन
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