Thursday, April 18, 2019

झील के किनारे

मेरी दुनिया बदल के रख दी
बस एक मुलाकात ने
जब हम तुम मिले थे
संग जीने के वादे किए थे
चाँद की चाँदनी में
झिलमिलाते तारों के साथ
सर्द हवाओं के झोंके
चलते थे हम हौले-हौले
झील के किनारे
छोड़ते कदमों के निशान
मुझे आज भी याद है 
ज़िंदगी के वो हसीं लम्हे
झील का किनारे
रिमझिम-सी बरसात में
हाथों में हाथ लिए
जाने कितने वादे किए
उमर दबे क़दम बढ़ती रही
संग तेरे नये ख्व़ाब बुनती रही
पीछे छूटे वो क़दमों के निशां
जो कभी थे हमारे प्यार के गवाह
संभाल कर रखें हैं आज भी मैंने
खूबसूरत वो पल ज़िंदगी के
अपने पास दिल के करीब
थोड़ी फ़ुरसत फिर से दे ज़िंदगी
उन लम्हों को फिर से जीने की
बदली जिन लम्हों ने मेरी ज़िंदगी
उन लम्हों को चलो फिर से जी लें
***अनुराधा चौहान***

15 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  2. थोड़ी फ़ुरसत फिर से दे ज़िंदगी
    उन लम्हों को फिर से जीने की
    बदली जिन लम्हों ने मेरी ज़िंदगी
    उन लम्हों को चलो फिर से जी लें
    अनुराधा दी,प्यार भरे पल ऐसे ही होते हैं। इंसान उन पलों को बार बार जीना चाहता हैं। बहुत सुंदर।

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    1. सहृदय आभार ज्योती जी

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  3. थोड़ी फ़ुरसत फिर से दे ज़िंदगी
    उन लम्हों को फिर से जीने की।
    वाह वाह अतिसुन्दर रचना
    दर्द सा लहराया।

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  4. सहृदय आभार सखी

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  5. बहुत सुन्दर रचना ! वाह !

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    1. सहृदय आभार साधना जी

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  6. अच्छा भावनात्मक संस्मरण, प्यार की चाशनी में पगी और याद की कसक में कुरमुरी रचना ...

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