Monday, February 11, 2019

ज़हर का कहर

घुल रहा सांसों में जहर
जिम्मेदार तो हम ही हैं
खो रही रौनक फिज़ाएं
जिम्मेदार तो हम ही हैं
ज़हर भरी चलती हवाएं
क्यों करते अब परवाह
इंसान ही इंसान को मारे
मन में भरकर जहर
नौनिहालों का जीवन
नशा छीन रहा बन जहर
कारखानों से बहते जहर ने
लीला नदियों का जीवन
कल-कल कर बहती नदी
अब आती गंदी नाले सी नजर
रासायनिक मिलावट से हुआ
खाना-पीना भी अब ज़हर
आतंकवाद का जहर लीले है
मासूम लोगो का जीवन
मर रहा है हर आम इंसान
भ्रष्टाचार का जहर है ऐसा
इस जहर को मार सके
वो तोड़ अब कहाँ से लाएँ
इस जहर के कहर से तो
अब ऊपरवाला भी न बचाए
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

8 comments:

  1. बिल्कुल सठीक रचना। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद नीतू जी

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  3. बहुत सुन्दर रचना
    सादर

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  4. बहुत सुन्दर रचना....

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