Monday, February 18, 2019

वक़्त की मार

वक़्त की मार
नहीं जीवन से हार
कंघी,धागे,छन्नी
ज़िंदगी से मेरी ठनी
है तारो वाला जूना
भीख नहीं काम को चुना
बेचता हूँ बालों की रबड़
तय करता ज़िंदगी का सफर
हैं बालों वाली चिमटी
ज़िंदगी इन सब में सिमटी
सुबह और शाम
नहीं जीवन में आराम
जिन औलादों को पाला
उन्ही ने घर से निकाला
अब काम मेरी मजबूरी
घर पर पत्नी है बूढ़ी
इस काम से होता गुजारा
जीवन का यही है सहारा
लेलो एक,दो कुछ कंघियां
तो घर में बन जाएं रोटियां
या फिर लेलो एक दो छन्नी
घर में नहीं खोटी अठन्नी
मुन्नी को लेलो चिमटी
तो जल जाए आज अंगीठी
जब तक जीवन है झेलूंगा
पर भीख कभी न मांगूंगा
ज़िंदगी मेहनत में गुजरी
मेहनत में ही जाए बीती
घूम रहा गली-गली
प्रभू ने ही किस्मत लिखी
औलाद होकर भी अकेला
ऊपर वाले का यह खेला
चलो कम पैसे ही देदो
पर कुछ सामान लेलो
ज़िंदगी का क्या कुछ ठिकाना
आज का पता नहीं कल किसने जाना
***अनुराधा चौहान*** चित्रलेखन
फोटो गूगल से साभार

2 comments: