लौटने लगी सारी रौनकें
रंग प्रकृति के साथ में लेकर
उफ़ आ गई गर्मी हुई हालत खराब
सूरज ने बदल लिए हाव-भाव
गर्मी से अब सब घबराएं
सूरज से अपने मुँह छुपाएं
सोचता सूरज यही बार-बार
क्यों उसका इतना तिरस्कार
क्रौध से तमतमाया सूरज
बरसाता अंबर से आग
धूप का बरसे जम कर कहर
चैन मिले बस रात्रि पहर
लगते "लू"के गरम थपेड़े
प्रकृति के नियम से मौसम बदले
पसीने से लथपथ सब बेहाल
गर्मी किया जीना मुहाल
चटकने लगी खेतों की धरती
पड़ने लगी जोरों की गर्मी
घटने लगा जल का स्तर
तड़पते प्यास से बेचारे नभचर
दिन प्रतिदिन बढ़ता पारा
खेतों में जूझता किसान बेचारा
कड़ी धूप में बहाए पसीना
मजदूरों का कष्टकारी है जीना
न एसी,कूलर न पंखा पास
न ढंग की छत न घर है पास
गर्मी करती हाल-बेहाल
इसलिए बहार के जाते ही
सब करते बारिश का इंतजार
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
मेहनतकशों पर बेरहम धूप की मार का यथार्थवादी चित्रण !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteगर्मी की भयावहता का सटीक वर्णन।
ReplyDeleteसार्थक सृजन।
सहृदय आभार सखी
Deleteमजदूरों का कष्टदाई है जीना
ReplyDeleteगर्मी करती बेहाल सच में अनुराधा जी श्रमिक वर्ग को
गर्मी की मार सहनी पड़ती है ना पीने को पानी उस पर बहता पसीना
बहुत बहुत धन्यवाद रितु जी
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