कालिंदी कॉलेज से निकलकर मुग्धा के पास पहुँचती है। अरे कालिंदी तुम यहाँ तुम तो कल रात गगन के साथ.....क्या हुआ सब ठीक तो है ? सब ठीक है कल रात मैंने अपना फैसला बदल लिया मुझे समझ आ गया है हालात से डरकर नहीं डटकर सामना चाहिए।
अब मैं बाबा की सारी जिम्मेदारी उठाऊँगी,नंदा,मुक्ता भी आगे पढ़ेंगी ।माँ नहीं चाहती मैं गगन से शादी करूँ, नहीं करूँगी पर उस अधेड़ जयंत से तो हरगिज नहीं।
पता नहीं मौसी ने क्या पट्टी पढ़ाई माँ को कि उन्हें वो अधेड़ जयंत अच्छा लगने लगा। तभी मुग्धा के फोन पर नंदा का फोन आता है। मुग्धा दी कालिंदी दीदी का फोन बंद आ रहा है और यहाँ घर पर बवाल मचा हुआ है नंदा ने रोते हुए कहा।
क्या हुआ..? नंदा साफ-साफ कहो... तुम रो क्यों रही हो बाबा ठीक है..? क्या बात हो गई रो मत मैं घर आ रही हूँ कालिंदी ने मुग्धा से फोन लेकर नंदा से कहा और तुरंत घर के लिए निकल गयी।
उधर घर पर मैं तो पहले से ही कहती थी गायत्री तेरी बेटी के लक्षण ठीक नहीं हैं,सुबह से शाम हो गयी कुछ खबर नहीं। भाग गयी होगी इतना अच्छा रिश्ता लाई थी तुम सब मजे करते।
मेरी तो किस्मत ही खराब है अभाव में जीती आई अभाव में ही मरना लिखा है।तू क्यों मरे अभाव में अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा जयंत को कालिंदी पसंद थी ना यह मुक्ता भी तो उसी की परछाई है क्या कहते हो जयंत।
जैसा आप ठीक समझो भाभी जयंत ने गंदी नज़र से मुक्ता को देखते हुए कहा।पर दीदी मुक्ता बहुत छोटी है अभी और जयंत बहुत बड़े हैं उससे... कुछ छोटी नहीं उन्नीस बरस की हो गयी है कोई ज्यादा फर्क नहीं गायत्री पंद्रह,सोलह साल कोई ज्यादा नहीं, पहले के जमाने में भी ऐसे ही शादियाँ होती थी।
गायत्री हाँ कर दे इतना पैसे वाला रिश्ता बार-बार नहीं मिलता मुक्ता यह सुनकर कर चक्कर खाकर गिर पड़ी और नंदा ने मुग्धा को फोन लगा दिया।
गायत्री के दिमाग में सिर्फ दीदी की सीख का असर था माँ की ममता जाने कहाँ चली गयी।मुक्ता को रोके के लिए तैयार करके मौसी ने सगाई की रस्में शुरू ही की थीं कि कालिंदी ने तेजी से आकर सारा सामान उठाकर फेंक दिया।
गायत्री तो कालिंदी का यह रूप देख दंग रह गयी डरी-सहमी रहने वाली कालिंदी इतनी उग्र भी हो सकती है।यह क्या बदतमीजी है गायत्री तुम्हारे घर में मेरा ऐसा अपमान... चलो जयंत यहाँ से..हाँ हाँ जाओ मौसी तुम्हें रोका भी किसने है।
तड़ाक.…. कालिंदी के गाल पर गायत्री ने जोर का चाँटा मारते हुए कहा यह कौन-सा तरीका है मौसी से बात करने का.. कौन-सी मौसी..? माँ!!मौसी का मतलब भी पता है क्या मौसी मतलब माँ जैसी पर इनमें ऐसा कुछ नहीं है।
यह जयंत से मेरी शादी इसलिए कराना चाहती थी ताकि शादी के बाद भी मैं इनसे दबी रहूँ और जयंत की दौलत पर इनके ऐश होते रहें हैं ना मौसी सही कह रही हूँ ना।
आज़ जब मैं गायब थी तो इन्हें लगा मैं भाग गयी हूँ तो यह मुक्ता की बलि चढ़ाने लगी क्योंकि इन्हें मालूम है नंदा किसी से भी न तो डरती है न ही दबती है और मुक्ता सीधी है तो यह उसे आसानी से अपने काबू में कर सकती हैं।
माँ होश में आओ आप माँ हो अपनी बेटियों का भविष्य तबाह करके खुश रह पाओगी बोलो। गायत्री कुछ देर तक चुपचाप बैठी रही शायद अपनी गलतियों का अहसास होने लगा था उन्हें... क्रमशः
***अनुराधा चौहान***
अब मैं बाबा की सारी जिम्मेदारी उठाऊँगी,नंदा,मुक्ता भी आगे पढ़ेंगी ।माँ नहीं चाहती मैं गगन से शादी करूँ, नहीं करूँगी पर उस अधेड़ जयंत से तो हरगिज नहीं।
पता नहीं मौसी ने क्या पट्टी पढ़ाई माँ को कि उन्हें वो अधेड़ जयंत अच्छा लगने लगा। तभी मुग्धा के फोन पर नंदा का फोन आता है। मुग्धा दी कालिंदी दीदी का फोन बंद आ रहा है और यहाँ घर पर बवाल मचा हुआ है नंदा ने रोते हुए कहा।
क्या हुआ..? नंदा साफ-साफ कहो... तुम रो क्यों रही हो बाबा ठीक है..? क्या बात हो गई रो मत मैं घर आ रही हूँ कालिंदी ने मुग्धा से फोन लेकर नंदा से कहा और तुरंत घर के लिए निकल गयी।
उधर घर पर मैं तो पहले से ही कहती थी गायत्री तेरी बेटी के लक्षण ठीक नहीं हैं,सुबह से शाम हो गयी कुछ खबर नहीं। भाग गयी होगी इतना अच्छा रिश्ता लाई थी तुम सब मजे करते।
मेरी तो किस्मत ही खराब है अभाव में जीती आई अभाव में ही मरना लिखा है।तू क्यों मरे अभाव में अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा जयंत को कालिंदी पसंद थी ना यह मुक्ता भी तो उसी की परछाई है क्या कहते हो जयंत।
जैसा आप ठीक समझो भाभी जयंत ने गंदी नज़र से मुक्ता को देखते हुए कहा।पर दीदी मुक्ता बहुत छोटी है अभी और जयंत बहुत बड़े हैं उससे... कुछ छोटी नहीं उन्नीस बरस की हो गयी है कोई ज्यादा फर्क नहीं गायत्री पंद्रह,सोलह साल कोई ज्यादा नहीं, पहले के जमाने में भी ऐसे ही शादियाँ होती थी।
गायत्री हाँ कर दे इतना पैसे वाला रिश्ता बार-बार नहीं मिलता मुक्ता यह सुनकर कर चक्कर खाकर गिर पड़ी और नंदा ने मुग्धा को फोन लगा दिया।
गायत्री के दिमाग में सिर्फ दीदी की सीख का असर था माँ की ममता जाने कहाँ चली गयी।मुक्ता को रोके के लिए तैयार करके मौसी ने सगाई की रस्में शुरू ही की थीं कि कालिंदी ने तेजी से आकर सारा सामान उठाकर फेंक दिया।
गायत्री तो कालिंदी का यह रूप देख दंग रह गयी डरी-सहमी रहने वाली कालिंदी इतनी उग्र भी हो सकती है।यह क्या बदतमीजी है गायत्री तुम्हारे घर में मेरा ऐसा अपमान... चलो जयंत यहाँ से..हाँ हाँ जाओ मौसी तुम्हें रोका भी किसने है।
तड़ाक.…. कालिंदी के गाल पर गायत्री ने जोर का चाँटा मारते हुए कहा यह कौन-सा तरीका है मौसी से बात करने का.. कौन-सी मौसी..? माँ!!मौसी का मतलब भी पता है क्या मौसी मतलब माँ जैसी पर इनमें ऐसा कुछ नहीं है।
यह जयंत से मेरी शादी इसलिए कराना चाहती थी ताकि शादी के बाद भी मैं इनसे दबी रहूँ और जयंत की दौलत पर इनके ऐश होते रहें हैं ना मौसी सही कह रही हूँ ना।
आज़ जब मैं गायब थी तो इन्हें लगा मैं भाग गयी हूँ तो यह मुक्ता की बलि चढ़ाने लगी क्योंकि इन्हें मालूम है नंदा किसी से भी न तो डरती है न ही दबती है और मुक्ता सीधी है तो यह उसे आसानी से अपने काबू में कर सकती हैं।
माँ होश में आओ आप माँ हो अपनी बेटियों का भविष्य तबाह करके खुश रह पाओगी बोलो। गायत्री कुछ देर तक चुपचाप बैठी रही शायद अपनी गलतियों का अहसास होने लगा था उन्हें... क्रमशः
***अनुराधा चौहान***
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