Tuesday, July 2, 2019

कालिंदी भाग -(1)


कालिंदी ने दहलीज से क़दम बाहर निकाला ही था कि पिताजी के कराहने की आवाज़ सुनकर ठिठक कर रुक गई।
कालिंदी!! क्या बात है रुक क्यों गई? चलो जल्दी हमें कोई देखे उससे पहले ही निकल जाए। कालिंदी की आँखों से मोटे-मोटे आँसू बहने लगे, उसने कुछ सोचकर कदम पीछे ले लिए।
नहीं गगन मुझे माफ़ कर दो मैं नहीं चल पाऊँगी, मुझसे नहीं हो पाएगा हो सके तो मुझे भूल जाना आँखों में तैरती गहरी उदासी लिए कालिंदी ने गगन को घर से भागने को मना कर दिया।
ऐसा मत कहो कालिंदी मैं नहीं जी सकता तुम्हारे बिना सब ठीक हो जाएगा एक बार शादी हो जाए माँ मान जायेगी हम मिलकर सारी समस्या सुलझाने का प्रयास करेंगे।
पर बाबा का क्या गगन.. इस असहाय अवस्था में इतना बड़ा दुःख,मेरी दोनों बहनों की ज़िंदगी,सब तबाह हो जायेगा। नहीं- नहीं इतना बड़ा पाप मुझसे नहीं होगा।जाओ गगन अपनी नयी दुनिया बसाना हो सके तो मुझे भूल जाना।
कहकर कालिंदी वापस अंदर आकर पिता के कराहने की आवाज़ सुनकर पिताजी के पास आकर बैठ गयी। राजवीर जाग रहे थे।
कालिंदी की मनोदशा को बखूबी समझ रहे थे राजवीर पर शरीर से लाचार हो बिस्तर पर पड़े थे। कुछ चाहिए बाबा आप सोए नहीं अभी तक? राजवीर के आँसू बहने लगे वो जानते थे कालिंदी और गगन एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं।
राजवीर को भी गगन बहुत पसंद था पर गायत्री को गगन बिल्कुल नहीं भाता था।
राजवीर सोच रखा था कि गायत्री को समझा-बुझाकर वो कालिंदी और गगन शादी करवा देंगे ।पर उच्च रक्तचाप के कारण उन्हें लकवाग्रस्त होकर बिस्तर पर गिर पड़े और हालात कुछ ऐसे बन गए थे कि कालिंदी और गगन भागकर शादी करने वाले थे।
पर दहलीज पार करते ही राजवीर के कराहने की आवाज़ सुनकर कालिंदी ने कदम रोक लिए।..... क्रमशः
         ***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. बहुत सुंदर शुरूआत आगे का इंतजार ।

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  2. बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति .....

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