Friday, July 5, 2019

कालिंदी भाग (6)

कालिंदी अपनी बहनों के इंतज़ार में खिड़की में खड़ी इस बात से अनजान कि दो आँखें उसे देख रही थी।यह गगन ही था जो उसके घर से कुछ दूर कार में बैठा हुआ था।आँखों पर काला चश्मा,ग्रे कलर का सूट फ्रेंच कट दाढ़ी गगन किसी हीरो से कम नहीं दिख रहा था पुराने गगन से बिल्कुल अलग कालिंदी भी एक नज़र में धोखा खा जाए।
गगन कुछ देर तक कालिंदी को देखता रहा कालिंदी को भी कुछ अहसास हुआ कि कार में बैठा शख्स उसे ही देख रहा है तो वह घर के अंदर आ गई कालिंदी को क्या पता कि गाड़ी के अंदर गगन हो सकता है।
कौन था वो जो इस तरह कार खड़ी करके मुझे देख रहा था
कालिंदी सोच में पड़ गयी।
उधर गगन भी कालिंदी के अंदर जाते ही वहाँ से चला जाता है। नौकरी चली जाने के बाद गगन नौकरी के लिए कई इंटरव्यू दे चुका था पर कहीं भी नौकरी नहीं लग पा रही थी माँ-बाप तो थे नहीं अकेला रहता था और टयुशन का ही सहारा था।
एक दिन एक ऐसी घटना घटी जिसने गगन की ज़िंदगी ही बदल कर रख दी।
गगन के.जी.कंपनी में इंटरव्यू के लिए जा रहा था। हाइवे पर खड़ा टेक्सी का इंतज़ार कर रहा था तभी एक बेकाबू कार ने सिग्नल तोड़ते हुए एक कार को टक्कर मारी तेजी से निकल गई।
कार में सवार दंपती बुरी तरह घायल हो गए थे भीड़ सेल्फी लेने में मगन थी।गगन तुरंत उन लोगों को लेकर हॉस्पिटल भागा दोनों की हालत गंभीर थी ऑपरेशन होना था बिना पैसे डॉक्टर इलाज को तैयार नहीं थे।
गगन ने जितने पैसे उसके पास थे वो डॉक्टर को दिए,बोला आप ऑपरेशन शुरू कीजिए तब-तक वह और पैसे लेकर आता है। गगन ने अपनी माँ के जेवर गिरवी रख पैसे जमा किए। ऑपरेशन खत्म हो चुका था गगन उन लोगो के होश में आने का इंतजार कर रहा था।
मिस्टर गगन उन दोनों को होश आ गया आप उन से मिल सकते डॉक्टर ने गगन से कहा। तुरंत गगन उन लोगों से मिला और उनका सामान पर्स और मोबाइल उन्हें सौंप दिया।
कैसे हैं आप लोग माफ़ कीजिए आपके घरवालों को खबर नहीं कर पाया आपके मोबाइल टूट गए थे।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद बेटा... मैं कीर्ति.. यह गौरव हैं मेरे पति हम लोग अकेले रहते हैं हमारा कोई रिश्तेदार नहीं। आपका नाम..? जी मैं गगन..गगन अग्रवाल!! आप ने हमारी जान बचाई उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद गगन जी। सबसे पहले तो आप मुझे गगन कहिए जी मत लगाइए आप बहुत बड़ी हैं मुझसे और धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं हर जिम्मेदार नागरिक का फर्ज होता है मुसीबत में फंसे लोगों की मदद करे।
बहुत अच्छे विचार हैं तुम्हारे क्या करते हो जी फिलहाल तो बेरोजगार हूँ नौकरी तलाश रहा हूँ। आज़ सुबह इंटरव्यू के लिए जा रहा था तो आपको घायल देख यहाँ ले आया। तभी डॉक्टर आते हैं अभी कैसा लग रहा है।आप लोगों की किस्मत अच्छी थी जो मिस्टर गगन आप लोगों को वक़्त पर अस्पताल ले आए और आपके ऑपरेशन का पूरा खर्च उठाया।
डॉक्टर के जाने के बाद गगन मेरे पर्स में मेरा एटीएम कार्ड है जरा निकाल दो।यह लीजिए गगन कार्ड निकाल कर देता है। सुनो बेटा गौरव ने गगन को कार्ड देते हुए कहा मेरा पासवर्ड लिखो और जितना पैसा तुम्हारा खर्च हुआ है वह निकाल कर ले आओ।
यह आप क्या कह रहे हैं और ऐसे कैसे आप मुझे पासवर्ड बता सकते हैं आप तो मुझे जानते नहीं फिर मुझ पर भरोसा कैसे कर सकते हैं। गौरव बोले तुम हमें जानते थे क्या बेटा फिर भी तुमने अपने पैसे खर्च किए ना। तो फिर हम...बस कीजिए आप दोनों वरना मैं यहाँ से चला जाऊँगा।
कीर्ति और गौरव के.जी.कंपनी के मालिक थे आज हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद गगन उन्हें उनके घर छोड़ने आता है तो उनका आलीशान बंगला देखकर दंग रह जाता है। अंदर बैठक में एक चौदह, पंद्रह वर्ष के लड़के की बड़ी-सी तस्वीर लगी थी जिस पर हार टंगा हुआ था।
तस्वीर देख गगन ठिठक कर रुक गया यह...मेरा बेटा नियति ने हमसे छीन लिया आज तुम्हारे जैसा ही होता।ओह माफ करना मैंने आप लोगों को दुखी कर दिया.. अच्छा मैं चलता हूँ।
गगन वापस जाने के लिए मुड़ा ही था गौरव ने आवाज़ दी रुको..गगन। कल आकर मुझसे मिलना यह मेरी कम्पनी का कार्ड है.. गगन कार्ड देखते ही अरे.  इसी कंपनी में तो इंटरव्यू के लिए...आप.....मैं इसका मालिक हूँ के.जी यानि कीर्ति और गौरव। और इस घटना से गगन की ज़िंदगी बदलने लगी।
आज कंपनी का एमडी बन चुका है गगन के सब-कुछ है बस कालिंदी को छोड़कर गगन इन पाँच सालों में कालिंदी से मिला नहीं पर फिर भी उसकी पल-पल की खबर रखता था। कभी कालिंदी किसी मुश्किल में दिखाई देती तो किसी न किसी रूप में उसके पास मदद भेजता रहता था।
आज भी कॉलेज की तरफ से के.जी. कंपनी में नंदा और मुक्ता इंटरव्यू के लिए गयी हैं वो सब गगन की ही रची योजना थी कितना सच्ची और पाक मोहब्बत है गगन की.. इधर कालिंदी भी मन ही मन गगन की यादों में टूटती-बिखरती है पर सबके सामने अपने जज़्बातों को छुपा लेती है।
तभी डोरबेल बजती गायत्री दरवाजा खोलती है और दोनों बहनें माँ से लिपटकर नाचने लगी.. अरे-अरे क्या हुआ तुम दोनों को..? माँ हमें जॉब मिल गयी राजवीर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसने तीनों बेटियों को गले से लगा लिया।अब मुझे मेरी बेटियों की चिंता नहीं है।सब अपने पैरों पर खड़ी हो गयी।
कालिंदी बेटा अब तू भी शादी के लिए मान जा कब-तक यूँ अकेली रहेगी। कालिंदी बिना कुछ कहे वहाँ से उठकर चली जाती है और खिड़की में खड़ी होकर गगन की यादों में खो जाती है।
गायत्री की आँखों से आँसू बहने लगे मेरी गलतियों की सजा मेरी बेटी भुगत रही है काश गगन मिल जाता तो मैं उससे माफी मांगकर उसे..... क्रमशः
***अनुराधा चौहान***

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