गायत्री को भी अब सब समझ आने लगा था उसने तुरंत अपनी बेटियों की तरफदारी करते हुए दीदी को घर से निकल जाने को कहा।
बस बहुत हुआ दीदी मैं आपका अपमान करूँ इससे पहले चले जाइए यहाँ... गायत्री तू कालिंदी की बातों पर भरोसा कर अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रही है। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा मैं जयंत को मना लू़ँगी..तू शादी की तैयारी कर.. मैंने कहा न दीदी निकल जाइए मेरे घर से!! चलो भाभी यहाँ से...तुझे तो मैं देख लूँगा कालिंदी।
हाँ जब देखना तब हम भी देख लेंगे कहते हुए नंदा ने मौसी और जयंत के बाहर निकलते ही दरवाजा बंद कर दिया।
दीदी!!! रोते हुए मुक्ता कालिंदी के गले लग जाती है बस बस चुप हो जा मेरे होते हुए कोई मेरी बहनों का बुरा नहीं कर सकता है।
वाह..ताली बजाते हुए नंदा आती है और कालिंदी के गले लग जाती है। दीदी आप तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली.. मतलब तू क्या कहना चाहती है नंदा.. अररे दीदी डर-डर कर रहने वाली आप इतनी बड़ी हिटलर निकलोगी हमें पता ही नहीं था। वाह क्या कमाल किया आपने आज़ मजा आ गया मौसी और जयंत की शक्ल देखने लायक थी।
बस कर नंदा यूँ बड़ों का मज़ाक नहीं उड़ाते हैं माँ क्या हुआ आप चुप क्यों हो ? क्या बोलूँ मैं स्वार्थ में इतनी अँधी हो गई थी अपनी ही बच्ची की ज़िंदगी तबाह करने जा रही थी। गायत्री रोने लगती है माँ चुप हो जाओ"अंत भला तो सब भला" कैसे भूल जाऊँ मैंने दीदी की बातों में आकर तेरे बाबा से झगड़ा नहीं किया होता तो आज़ वह बिस्तर पर न होते मैं गुनाहगार हूँ तुम सबकी।
शांत हो जाओ माँ सब ठीक हो जाएगा..बाबा.. बाबा से याद आया माँ इतना सब घर में हो रहा बाबा शांत कैसे... कालिंदी तुरंत बाबा के पास दौड़ी बाबा!! बाबा..राजवीर बहुत गहरी नींद में सो रहे थे। बाबा उठो...माँ बाबा गायत्री सिर झुका लेती है।
माँ आप कुछ छुपा रही हो बोलो क्या बात है..वो दीदी ने इन्हें प्रसाद में नींद की दवा दी थी ताकि रस्मों के बीच कोई विघ्न न आए।माँ...!!! और तुमने खिलाने दी माँ तीनों बहनों के मुँह से एक साथ एक ही बात निकली। फफक कर रो पड़ी गायत्री मुझे माफ़ कर दो मेरे बच्चों मुझे माफ़ कर दो।
कालिंदी माँ को चुप कराती है सब भूल जाओ माँ आज के बाद इस घर में कोई पुरानी बातें नहीं करेगा। और तुम दोनों कल से कॉलेज जाना शुरू करो..पर दी फीस.. तुम लोगों की एक साल की फीस प्रिंसिपल मैम ने माफ़ कर दी है। और मुझे कॉलेज में अकाउंट टीचर की नौकरी भी देदी है...अब सब ठीक हो जाएगा माँ बाबा को फिजियोथैरेपिस्ट के पास रोज लेकर जाने की जिम्मेदारी अब आपकी है।
धीरे-धीरे सब चीजें सँभलने लगती हैं वक़्त भी अपनी रफ्तार से भागता रहता है।इस तरह पाँच साल बीत गए आज़ नंदा,मुक्ता दोनों ही एक बड़ी कम्पनी में इंटरव्यू के लिए गए हुए थे, राजवीर ठीक हो चुके थे बीमारी के कारण नौकरी तो छूट गयी थी पर घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे थे।
कालिंदी उसी कॉलेज में आज़ भी अकाउंट पढ़ाने जाती थी और उसी बेंच पर गगन की याद में कुछ पल बिताया करती थी
मुग्धा की शादी हो चुकी थी
गायत्री बार-बार कालिंदी से शादी करने की बात कहती तो कालिंदी हर बार मना कर देती।गगन के बारे में कुछ जानकारी नहीं थी कि वो कहाँ है।
कालिंदी बड़ी बेचैनी से खिड़की पर खड़ी दोनों बहनों का इंतजार कर रही थी इस बात से बेखबर कि दो आँखें उसको भी देख रहीं हैं..... क्रमशः
***अनुराधा चौहान***
बस बहुत हुआ दीदी मैं आपका अपमान करूँ इससे पहले चले जाइए यहाँ... गायत्री तू कालिंदी की बातों पर भरोसा कर अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रही है। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा मैं जयंत को मना लू़ँगी..तू शादी की तैयारी कर.. मैंने कहा न दीदी निकल जाइए मेरे घर से!! चलो भाभी यहाँ से...तुझे तो मैं देख लूँगा कालिंदी।
हाँ जब देखना तब हम भी देख लेंगे कहते हुए नंदा ने मौसी और जयंत के बाहर निकलते ही दरवाजा बंद कर दिया।
दीदी!!! रोते हुए मुक्ता कालिंदी के गले लग जाती है बस बस चुप हो जा मेरे होते हुए कोई मेरी बहनों का बुरा नहीं कर सकता है।
वाह..ताली बजाते हुए नंदा आती है और कालिंदी के गले लग जाती है। दीदी आप तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली.. मतलब तू क्या कहना चाहती है नंदा.. अररे दीदी डर-डर कर रहने वाली आप इतनी बड़ी हिटलर निकलोगी हमें पता ही नहीं था। वाह क्या कमाल किया आपने आज़ मजा आ गया मौसी और जयंत की शक्ल देखने लायक थी।
बस कर नंदा यूँ बड़ों का मज़ाक नहीं उड़ाते हैं माँ क्या हुआ आप चुप क्यों हो ? क्या बोलूँ मैं स्वार्थ में इतनी अँधी हो गई थी अपनी ही बच्ची की ज़िंदगी तबाह करने जा रही थी। गायत्री रोने लगती है माँ चुप हो जाओ"अंत भला तो सब भला" कैसे भूल जाऊँ मैंने दीदी की बातों में आकर तेरे बाबा से झगड़ा नहीं किया होता तो आज़ वह बिस्तर पर न होते मैं गुनाहगार हूँ तुम सबकी।
शांत हो जाओ माँ सब ठीक हो जाएगा..बाबा.. बाबा से याद आया माँ इतना सब घर में हो रहा बाबा शांत कैसे... कालिंदी तुरंत बाबा के पास दौड़ी बाबा!! बाबा..राजवीर बहुत गहरी नींद में सो रहे थे। बाबा उठो...माँ बाबा गायत्री सिर झुका लेती है।
माँ आप कुछ छुपा रही हो बोलो क्या बात है..वो दीदी ने इन्हें प्रसाद में नींद की दवा दी थी ताकि रस्मों के बीच कोई विघ्न न आए।माँ...!!! और तुमने खिलाने दी माँ तीनों बहनों के मुँह से एक साथ एक ही बात निकली। फफक कर रो पड़ी गायत्री मुझे माफ़ कर दो मेरे बच्चों मुझे माफ़ कर दो।
कालिंदी माँ को चुप कराती है सब भूल जाओ माँ आज के बाद इस घर में कोई पुरानी बातें नहीं करेगा। और तुम दोनों कल से कॉलेज जाना शुरू करो..पर दी फीस.. तुम लोगों की एक साल की फीस प्रिंसिपल मैम ने माफ़ कर दी है। और मुझे कॉलेज में अकाउंट टीचर की नौकरी भी देदी है...अब सब ठीक हो जाएगा माँ बाबा को फिजियोथैरेपिस्ट के पास रोज लेकर जाने की जिम्मेदारी अब आपकी है।
धीरे-धीरे सब चीजें सँभलने लगती हैं वक़्त भी अपनी रफ्तार से भागता रहता है।इस तरह पाँच साल बीत गए आज़ नंदा,मुक्ता दोनों ही एक बड़ी कम्पनी में इंटरव्यू के लिए गए हुए थे, राजवीर ठीक हो चुके थे बीमारी के कारण नौकरी तो छूट गयी थी पर घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे थे।
कालिंदी उसी कॉलेज में आज़ भी अकाउंट पढ़ाने जाती थी और उसी बेंच पर गगन की याद में कुछ पल बिताया करती थी
मुग्धा की शादी हो चुकी थी
गायत्री बार-बार कालिंदी से शादी करने की बात कहती तो कालिंदी हर बार मना कर देती।गगन के बारे में कुछ जानकारी नहीं थी कि वो कहाँ है।
कालिंदी बड़ी बेचैनी से खिड़की पर खड़ी दोनों बहनों का इंतजार कर रही थी इस बात से बेखबर कि दो आँखें उसको भी देख रहीं हैं..... क्रमशः
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteधन्यवाद सुधा जी
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