Friday, July 12, 2019

अनकहे दर्द भाग (2)

प्रज्ञा के कमरे में जाने के बाद विक्रम उठकर बाहर लॉन में झूले पर बैठ गया।
नवंबर का महीना था हल्की-सी ठंड बदन में सिहरन पैदा कर रही थी विक्रम पुरानी यादों में खो जाता है।
मॉडल कॉलेज में आज़ विक्रम का पहला दिन... बीएससी प्रथम वर्ष... कॉलेज लाइफ को लेकर बहुत उत्साह में था।
जी सुनिए....क्या आप बता सकती हैं बीएससी प्रथम वर्ष की क्लासेस किस फ्लोर पर हैं।
आवाज़ सुनकर उसने पलटकर देखा तो कुछ पल के लिए विक्रम उसे देखता रह गया।
धानी कलर की ड्रेस पहने थी मेकअप के नाम पर कानों में लंबे-लंबे इयररिंग्स गले में पतली सोने की चेन,बला की खूबसूरत थी।
न्यू स्टूडेंट... उसने विक्रम तरफ देखते हुए पूछा...हाँ....वो...मैं. क्लास.... जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो मैं घबराकर बोला वो क्लासरूम जानना था।
हाय...मेरा नाम सुगंधा. ... बीए प्रथम वर्ष... आप...मैं भी नयी हूँ... चलो स्टाफ रूम में किसी सर या मैडम से पूछ लेते हैं।
क्लासरूम पता करने के बाद वो अपनी क्लास में दूसरी मंजिल पर मैं पहली मंजिल पर।
मैं उसे जाते देख रहा था तभी अचानक उसने मुड़कर देखा, सुनो... तुमने अपना नाम नहीं बताया.. जी विक्रम।
अच्छा नाम है... अब तो मिलना-जुलना लगा रहेगा। कॉलेज की लाइफ एक अलग ही लाइफ थी एक साल कैसे गुजर गया पता नहीं चला।
कई अच्छे दोस्त मिले जतिन,प्रिया,रोहन, नेहा पर सबसे अलग थी सुगंधा।
बच्चों जैसी हरकतें वैसी ही शरारतें बहुत हँसमुख स्वभाव की थी सबसे बड़े ही प्यार से बोलने बाली बड़ी ही प्यारी लड़की थी सुगंधा ।
कॉलेज में सबसे उसकी दोस्ती थी पर उसका एक ही बेस्ट फ्रेंड था विक्रम जिससे वो हर तरह की बातें करती थी। कभी जींस-टॉप कभी सलवार-सूट कभी गाउन वो जो भी पहनती बहुत सुंदर दिखती थी।
क्या किताबी कीड़े बने रहते हो चलो न कहीं घूमने चलते हैं... नहीं यार एग्जाम सिर पर है मुझे पढ़ाई करनी है... जैसे मेरे तो एग्जाम ही नहीं होते.... हुहह..जा रही हूँ तुम पढ़ो।
अरे-अरे रुको न... तुम बेकार ही बुरा मान गई तुम्हारी बीए की पढ़ाई में बीएससी की पढ़ाई में बहुत अंतर है वैसे भी सब मेरे सिर के ऊपर से जाता है।
हम्म तभी टॉपर बने हो है ना.. शायद तुम्हें मेरा साथ ही नहीं पसंद है इसलिए बहाने करते हो...एक मैं तुम्हारे साथ वक़्त बिताने के बहाने ढूँढा करती हूँ।
मैं जा रही हूँ...पलट कर जाने लगी कुछ दूर जाकर.. मैं जा रही हूँ... तुम्हें फर्क नहीं पड़ता तो अब तुम्हें परेशान नहीं करूँगी..मुझे मुस्कुराते हुए देख गुस्से में गोरा चेहरा लाल हो गया था।
बहुत हँसी आ रही है ना एक दिन तरसोगे हँसने के लिए। सुगंधा रूठकर चल दी विक्रम रूठी सुगंधा को मनाने उसके पीछे-पीछे चल दिया।
अच्छा बाबा माफ़ कर दो...गलती हो गई...कहाँ चलना है.. बोलो...आज जहाँ कहोगी वहाँ चलेंगे।
सच्ची... बच्चों की तरह खुश होते हुए गले से लिपट गई... तो चलें मूवी देखने..हम्म चलो.. और कौन-कौन आ रहा है... कोई नहीं सिर्फ हम दोनों।
एक बात पूछूँ .... प्यार करती हो मुझसे...प्यार और तुमसे...हा हा हा हा....हँसी क्यों...? मैं सीरियसली पूछ रहा हूँ...ऐसा समझ भी मत लेना यह प्यार-व्यार बड़ा सिरदर्द है..तुम्हारा साथ अच्छा लगता है इसलिए फ्री होती हूँ तो तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ।
सच्ची प्यार नहीं करती.. ना नहीं... चलें अब.. चलो.. विक्रम सोचने लगा कैसी पहेली है यह सुगंधा... समझने की कोशिश में उलझकर रह जाता हूँ... क्रमशः
***अनुराधा चौहान***







5 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14 -07-2019) को "ज़ालिमों से पुकार मत करना" (चर्चा अंक- 3396) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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  2. रोचकता लिये अच्छा ताना बाना।

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  3. धन्यवाद आदरणीय

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